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ज्ञान अध्ययन
१६४. अट्ठ नाम विवक्खया अट्ठवयण विभत्तिप से किं तं अट्ठनामे ?
उ. अट्ठनामे अट्ठविहा वयणविभत्ती पण्णत्ता, तं जहा
१. निद्देसे पढमा होइ,
२. बिइया उवदेसणे,
३. तइया करणम्मि कया,
४. चउत्थी संपयावणे,
५. पंचमी य अपायाणे,
६. छट्ठी सस्सामिवायणे,
७. सत्तमी सष्णिधाणत्थे,
८. अट्ठमाऽऽमंतणी भवे।
१. तत्थ पढमा विभत्ती, निद्देसे सो इमो अहं वत्ति।
२. बिइया पुण उचदेसे, भण कुणसु इमं व तं वत्ति ।'
३. तइया करणम्मि कया भणियं व कयं व तेण व मए वा ।
४. हंदि णमो साहाए हवइ चउत्थी पयाणम्मि ।
५. अवणय गिण्ह य एत्तो, इत्तो त्ति वा पंचमी अपायाणे।
६. छट्ठी तस्स इमस्स व, गयस्स वा सामिसंबंधे।
७. हवइ पुण सत्तमी तं इमग्गि आधार काल भावे य ।
८. आमंतणी भवे अट्ठमी उ जह है जुवाण ति ।
सेतं अट्ठणामे
- अणु. सु. २६१ १६५. नवनाम विवक्खया नव कव्वरसाणं परूवणंप से किं तं नवनामे ?
उ. नवनामे णव कव्वरसा पण्णत्ता, तं जहा१. वीरो, २. सिंगारो, ३. अब्दुओ य, ४. रोद्दो य होइ बोधव्यो। ५. बैलणाओ ६. बीभच्छी ७. हासो ८. को ९. पसंती ॥
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१६४. अष्ट नाम विवक्षा से आठवचन विभक्तिप्र. अष्टनाम क्या है ?
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उ. आठ प्रकार की वचनविभक्तियों को अष्टनाम कहते हैं,
यथा
१. निर्देश प्रतिपादक अर्थ में प्रथमा विभक्ति होती है।
२. उपदेश क्रिया के प्रतिपादन में द्वितीया विभक्ति होती है।
३. क्रिया के प्रति साधकतम कारण के प्रतिपादन में तृतीया विभक्ति होती है।
४. संप्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है।
५. अपादान (पृथक्ता) बताने के अर्थ में पंचमी विभक्ति होती है।
६. स्व-स्वामित्वप्रतिपादन करने के अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती है।
७. सन्निधान (आधार) का प्रतिपादन करने के अर्थ में सप्तमी विभक्ति होती है।
८. संबोधित आमंत्रित करने के अर्थ में अष्टमी विभक्ति होती है।
१. निर्देश में प्रथमा विभक्ति होती है, जैसे- वह, यह, अथवा मैं,
२. उपदेश में द्वितीया विभक्ति होती है, जैसे- इसको कहो, उसको करो आदि।
३. करण में तृतीया विभक्ति होती है, जैसे उसके और मेरे द्वारा कहा गया अथवा उसके और मेरे द्वारा किया गया।
४. संप्रदान, नमः तथा स्वाहा: अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है, जैसे 'विप्राय गां ददाति ब्राह्मण को (के लिये) गाय देता है 'नमो जिनाय' जिनेश्वर के लिये मेरा नमस्कार हो 'अग्नये स्वाहा- अग्नि देवता को दिया जाता है।
५. अपादान में पंचमी विभक्ति होती है जैसे वहां से दूर करो अथवा इससे ले लो।
६. स्वस्वामीसम्बन्ध बतलाने में षष्ठी विभक्ति होती है, जैसे- उसकी अथवा इसकी यह वस्तु है।
७. आधार काल और भाव में सप्तमी विभक्ति होती है, जैसे ( वह इसमें है।
८. आमंत्रण अर्थ में अष्टमी विभक्ति होती है, जैसे है युवान् !
यह अष्टनाम है।
१६५. नव नाम की विवक्षा से नौ काव्य रसों का प्ररूपणप्र. नवनाम क्या है?
उ. नवनाम के नौ काव्य रस कहे गए हैं, यथा
१. वीररस, २. श्रृंगाररस, ३. अद्भुतरस, ४ रौद्ररस, ५. व्रीडनकरस, ६. बीभत्सरस, ७. हास्यरस, ८. कारुण्यरस, ९. प्रशांतरस ये नवरसों के नाम जानने चाहिए।