Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 863
________________ ७५६ उवणीयं सोवयारंच, मितं महुरमेव य॥ ९. सममद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं। तिण्णि वित्तप्पयाराई,चउत्थं नो पलब्भइ॥ १०. सक्कया पायया चेव, दुहा भणिईओ आहिया। सरमंडलंमि गिज्जते, पसत्था इसिभासिया॥ प्र. केसी गायइ महुरं? केसी गायइ खरंच रुक्खंच। केसी गायइचउरं? केसी विलंबं दुतं केसी॥ विस्सरं पुण केरिसी? उ. सामा गायइ महुरं, काली गायइ खरंच रुक्खं च। गोरी गायइ चउरं, काणी विलंबं दुयं अंधा ।। द्रव्यानुयोग-(१) ५. उपनीत-उपसंहार युक्त होना, ६. सोपचार-अविरुद्ध अलज्जनीय अर्थ का प्रतिपादन करना, ७. मित-अल्पपद और उसके अक्षरों से परिमित होना, ८. मधुर-शब्द अर्थ और प्रतिपादन की दृष्टि से प्रिय होना, ९. वृत्त छन्द तीन प्रकार का कहा गया है १. सम-जिसमें चारों चरण और अक्षर समान हों, २. अर्द्धसम-जिसमें चरण और अक्षर विषम हो, ३. सर्वविषम-जिसके चारों चरण और अक्षर सभी विषम हों। इसके अतिरिक्त चौथा प्रकार नहीं पाया जाता। १०. भणितियां (गीत की भाषाएँ) दो प्रकार की कही गई हैं, यथा१. संस्कृत, २. प्राकृत। ये दोनों प्रशस्त और ऋषिभाषित हैं ये स्वरमण्डल में गाई जाती हैं। प्र. १. मधुर स्वर में कौन गीत गाती हैं ? २. कर्कश और रूक्ष स्वर में कौन गीत गाती हैं ? ३. चतुरता से कौन गीत गाती हैं ? ४. विलम्ब स्वर में कौन गीत गाती हैं? ५. द्रुत शीघ्र स्वर में कौन गीत गाती हैं? ६. विस्वरता से कौन गीत गाती हैं ? उ. १. श्यामा स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है, २. काली स्त्री कर्कश और रूक्ष स्वर में गीत गाती है, ३. गौरी स्त्री चतुरता से गीत गाती है, ४. काणी स्त्री विलम्ब स्वर में गीत गाती है, ५.अंधी स्त्री द्रुत स्वर में गीत गाती है, ६. पिंगला स्त्री विस्वरता से गीत गाती है। ११. इन सात स्वरों के नाम इस प्रकार हैं१. अक्षरसम-ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत अक्षरों के अनुरूप स्वर, २. पदसम-राग के अनुरूप पद विन्यास वाला स्वर, ३. तालसम-ताल वादन के अनुरूप गाया जाने वाला स्वर, ४. लयसम-राग रागनी के अनुरूप स्वर, ५. ग्रहसम-वीणा आदि वाद्यों के अनुरूप स्वर, ६. श्वासोच्छ्वास सम-श्वांस लेने-छोड़ने के योग्य स्थान पर रुकने वाला स्वर, ७. संचार सम-वाद्यों पर अंगुली आदि के संचार के अनुरूप स्वर, १२. इस प्रकार गीत स्वर तन्त्री आदि से सम्बन्धित होकर सात प्रकार का हो जाता है। सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूर्च्छनाएं होती हैं। प्रत्येक स्वर सात तानों से गाया जाता है, इसलिए उनके सात गुणित सात करने पर उनचास (४९) भेद हो जाते हैं, इस प्रकार स्वरमण्डल का वर्णन समाप्त हुआ। यह सात नाम का वर्णन हुआ। विस्सरं पुण पिंगला ॥ ११. अक्खरसमं पयसमं तालसमं लयसमं गहसमंच। निस्ससिय उस्ससियसम, संचारसमं सरा सत्त। १२. सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एकविंसइ। ताणा एकूणापण्णासा,समत्तं सरमंडलं॥ -अणु.सु.२६०(१-११) से तं सत्तणामे। १. ठाणं अ.७ सु.५५३

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