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तदुभयसमोयारेणं सव्वदव्येसु समोयरइ आयभावे य। एत्थ संगहणि गाहाकोहे माणे माया लोभे रागेय मोहणिज्जे य। पगडी भावे जीवे जीवत्थि य सव्वदव्या य॥१२४॥ से तं भावसमोयारे।सेतं समोयारे।सेतं उवक्कमे।
-अणु-सु.५३३ १८०. निक्खेव अणुओगदारस्स भेयप्पभेया
प. से किं तं निक्खेवे? उ. निक्खेवे तिविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. ओहनिप्फण्णेय, २. नामनिप्फण्णे य, ३. सुत्तालावगनिष्फण्णे य।
-अणु.सु.५३४ १८१. (१) ओहनिष्फण्णनिक्खेवो
प. से किं तं ओहणिफण्णे? उ. ओहणिप्फण्णे-चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा
१. अज्झयणे, २. अज्झीणे, ३. आए
४. झवणा।
-अणु.सु.५३५ १८२. अज्झयण-निक्खेवो
प. (१)से किं तं अज्झयणे? उ. अज्झयणे-चउविहे पण्णत्ते, तं जहा
१. णामज्झयणे, २. ठवणज्झयणे, ३. दव्वज्झयणे, ४. भावज्झयणे। णाम-ठवणाओ पुष्ववणियाओ।
द्रव्यानुयोग-(१) तदुभयसमवतार की अपेक्षा सभी द्रव्यों में और आत्मभाव में भी रहते हैं। इनकी संग्रहणी गाथा इस प्रकार हैक्रोध, मान, माया, लोभ, राग, मोहनीयकर्म, प्रकृतिभाव, जीव, जीवास्तिकाय और सर्वद्रव्य रहते हैं। यह भावसमवतार है। यह समवतार है। यह उपक्रम प्रथम
द्वार है। १८०. निक्षेप अनुयोग द्वार के भेद-प्रभेद
प्र. निक्षेप क्या है? उ. निक्षेप तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. ओघनिष्पन्न, २. नामनिष्पन्न,
३. सूत्रालापकनिष्पन्न। १८१. (१) ओघनिष्पन्न निक्षेप
प्र. ओघनिष्पन्ननिक्षेप क्या है? उ. ओघनिष्पन्ननिक्षेप चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. अध्ययन, २. अक्षीण, ३. आय,
४. क्षपणा।
प. से किं तं दव्यज्झयणे? उ. दव्वज्झयणे-दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
, १. आगमओ य, २. णो आगमओय। प. से किं तं आगमओ दव्वज्झयणे? उ. आगमओ-दव्यज्झयणे जस्स णं 'अज्झयणे' त्ति पदं सिक्खितं ठितं जितं मितं परिजितं जाव जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइयाई दव्वज्झयणाई। एवमेव ववहारस्स वि। संगहस्सणं एगोवा,अणेगोवा,तंचेव भाणियव्यं ।
१८२. “अध्ययन" का निक्षेप
प्र. (१) अध्ययन क्या है? उ. अध्ययन चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. नाम-अध्ययन, २. स्थापना-अध्ययन, ३. द्रव्य-अध्ययन, ४. भाव-अध्ययन। नाम और स्थापना अध्ययन का स्वरूप पूर्ववर्णित जैसा ही
जानना चाहिए। प्र. द्रव्य-अध्ययन क्या है? उ. द्रव्य-अध्ययन दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. आगम से, २. नो आगम से। प्र. आगम से द्रव्य-अध्ययन क्या है? उ. जिसने 'अध्ययन' इस पद को सीख लिया है, अपने में स्थिर
कर लिया है, जित, मित और परिजित कर लिया है यावत् जितने भी उपयोग से शून्य है, वे आगम से द्रव्य-अध्ययन है। इसी प्रकार व्यवहार का भी मत है, संग्रहनय के मत से एक या अनेक आत्माएँ एक आगमद्रव्यअध्ययन है, इत्यादि समग्र वर्णन आगमद्रव्य- आवश्यक जैसा जानना चाहिए।
यह आगमद्रव्य-अध्ययन है। प्र. नो आगमद्रव्य-अध्ययन क्या है? उ. नो आगमद्रव्य-अध्ययन तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. ज्ञायकशरीरद्रव्य-अध्ययन, २. भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन,
३. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-अध्ययन। . प्र. ज्ञायकशरीरद्रव्य-अध्ययन क्या है? .
सेतं आगमओ दव्यज्झयणे। प. से किं तंणो आगमओ दव्यज्झयणे? उ. णो आगमओ दव्वज्झयणे-तिविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. जाणयसरीरदव्यज्झयणे, २. भवियसरीरदव्वज्झयणे,
३. जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झयणे। प. से किं तं जाणयसरीरदव्वज्झयणे?