Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 884
________________ ज्ञान अध्ययन ७७७ तदुभयसमोयारेणं अट्ठभाइयाए समोयरइ आयभावे य। अट्ठभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं चउभाइयाए समोयरइ आयभावे य। चाउभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं अद्धमाणीए समोयरइ आयभावे य। अद्धमाणी आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं माणीए समोयरइ आयभावे य। से तं जाणयसरीरभवियसरीर वइरित्तेदव्वसमोयारे। से तं नो आगमओ दव्यसमोयारे। सेतं दव्यसमोयारे। प. (४). से किं तं खेत्तसमोयारे? उ. खेत्तसमोयारे-दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १.आयसमोयारे य,२. तदुभयसमोयारे य। भरहेवासे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं जंबुद्दीवे समोयरइ आयभावे य। जंबुद्दीवे दीवे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं तिरियलोए समोयरइ आयभावे य। तदुभयसमवतार की अपेक्षा अष्टभागिकी में तथा अपने निजरूप में भी रहती है। अष्टभागिका आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में रहती है, . तदुभयसमवतार की अपेक्षा चतुर्भागिका में भी समवतरित होती है और अपने निजरूप में भी समवतरित होती है। आत्मसमवतार की अपेक्षा चतुर्भागिका आत्म-भाव में और तदुभयसमवतार से अर्धमानिका में समवतीर्ण होती है एवं आत्मभाव में भी होती है आत्मसमवतार से अर्धमानिका आत्मभाव में एवं तदुभयसमवतार की अपेक्षा मानिका में तथा आत्मभाव में भी समवतीर्ण होती है। यह ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार है। यह नो आगमद्रव्यसमवतार है। यह द्रव्यसमवतार है। प्र. (४). क्षेत्रसमवतार क्या है? उ. क्षेत्रसमवतार दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. आत्मसमवतार, २. तदुभयसमवतार। आत्मप्तमवतार की अपेक्षा भरतक्षेत्र आत्मभाव में रहता है, तदुभयसमवतार की अपेक्षा जम्बूद्वीप में भी रहता है और आत्मभाव में भी रहता है। आत्मसमवतार की अपेक्षा जम्बूद्वीप आत्मभाव में रहता है, तदुभयसमवतार की अपेक्षा तिर्यक्लोक में भी समवतरित होता है और आत्मभाव में भी समवतरित होता है। आत्मसमवतार से तिर्यक्लोक आत्मभाव में समवतीर्ण होता है, तदुभयसमवतार की अपेक्षा लोक में भी समवतरित होता है और आत्मभाव निजरूप में भी समवतरित होता है। आत्मसमवतार से लोक आत्मभाव में समवतीर्ण होता है, तदुभयसमवतार की अपेक्षा अलोक में भी समयतरित होता है और आत्मभाव निजरूप में भी समवतरित होतो है। यह क्षेत्र समवतार है। प्र. (६). भावसमवतार क्या है? उ. भावसमवतार दो प्रकार का कहा गया है, यथा १.आत्मसमवतार, २. तदुभयसमवतार। आत्मसमवतार की अपेक्षा क्रोध आत्मभाव में रहता है और तदुभयसमवतार से मान में और आत्मभाव में भी समवतीर्ण होता है। इसी प्रकार मान, माया, लोभ, राग, मोहनीय और अष्टकर्म प्रकृतियां आत्मसमवतार से आत्मभाव में तथा तदुभयसमवतार से छह प्रकार के भावों में और आत्मभाव में भी रहती है। इसी प्रकार जीव और जीवास्तिकाय आत्मसमवतार की अपेक्षा निजस्वरूप में रहते हैं, तिरियलोए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं लोए समोयरइ आयभावे य। लोए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं अलोए समोयरइ आयभावे य। से तं खेत्तसमोयारे। -अणु.सु.५२७-५३१ प. (६). से किं तं भावसमोयारे? उ. भावसमोयारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. आयसमोयारे य,२. तदुभयसमोयारे य। कोहे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं माणे समोयरइ आयभावे य। एवं माणे माया लोभे रागे. मोहणिज्जे अट्ठकम्मपगडीओ आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति। तदुभयसमोयारेणं छव्विहे भावे समोयरति आयभावे य। एवं जीवे जीवत्थिकाए आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, १. ५-काल समवतार (सु. ५३२) गणि. ६९१ पृ. पर देखें।

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