Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 886
________________ ज्ञान अध्ययन ७७९ उ. जाणयसरीरदव्वज्झयणे-अज्झयणपयत्थाहिगार जाणयस्स-जं सरीरयं ववगय-चुत-चइय-चत्तदेह जाव अहो! णं इमेणं सरीर-समुस्सएणं 'अज्झयणे'त्ति पदं आघवियं जाव उवदंसियं ति। प. जहा को दिळंतो? उ. अयं घयकुंभे आसी, अयं महुकुंभे आसी। से तं जाणयसरीरदव्यज्झयणे। प. से किं तं भवियसरीरदव्यज्झयणे? उ. भवियसरीरदव्यज्झयणे-जे जीवे जोणीयजम्मण निक्खंते इमेणं चेव आंदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिङेणं भावेणं अज्झयणे ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ ण ताव सिक्खइ। प. जहा को दिळंतो? उ. अयं घयकुंभे भविस्सइ, अयं महुकुंभे भविस्सइ। से तं भवियसरीरदव्यज्झयणे। प. से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्यज्झयणे? उ. जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वज्झयणे पत्तय पोत्थयलिहियं। से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरिते दय्वज्झयणे। से तंणो आगमओदव्यज्झयणे।से तं दव्यज्झयणे। प. से किं तं भावज्झयणे? | उ. भावज्झयणे-दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. आगमओ य, २. णो आगमओ य। प. से किं तं आगमओ भावज्झयणे? उ. जाणए उवउत्ते। उ. अध्ययन पद के अधिकार के ज्ञाता का व्यपगतचैतन्य, च्युत, च्यवित त्यक्तदेह को यावत् देखकर कोई कहे कि अहो ! इस शरीर रूप पुद्गलसंघात से “अध्ययन" इस पद का कथन किया था यावत् उपदर्शित किया था वह शरीर ज्ञायकशरीरद्रव्य-अध्ययन है। प्र. इस विषय का कोई दृष्टान्त है? उ. (जैसे घड़े में से घी या मधु के निकाल लिए जाने के बाद भी) यह घी का घड़ा था, यह मधुकुम्भ था ऐसा कहा जाता है। यह ज्ञायकशरीरद्रव्य-अध्ययन है। प्र. भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन क्या है? उ. जन्मकाल प्राप्त होने पर जो जीव योनिस्थान से बाहर निकला है। उसी प्राप्त शरीर के द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार “अध्ययन" इस पद को सीखेगा, लेकिन अभी वर्तमान में नहीं सीख रहा है। प्र. इसका कोई दृष्टान्त है? उ. (जैसे किसी घड़े में अभी मधु या घी नहीं भरा गया है, तो भी उसको) यह घृतकुम्भ होगा, यह मधुकुम्भ होगा ऐसा कहना। यह भव्यशरीरद्रव्याध्ययन है। प्र. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त-द्रव्याध्ययन क्या है? उ. पत्र या पुस्तक में लिखे हुए अध्ययन को ज्ञायकशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्त-द्रव्याध्ययन कहते हैं। यह ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्याध्ययन है। यह नो आगमद्रव्याध्ययन है। यह द्रव्याध्ययन है। प्र. भाव-अध्ययन क्या है? उ. भाव-अध्ययन दो प्रकार का कहा गया है, यथा.. १. आगमभाव-अध्ययन २. नो आगमभाव-अध्ययन। प्र. आगमभाव-अध्ययन क्या है? उ. जो अध्ययन के अर्थ का ज्ञाता होने के साथ उसमें उपयोगयुक्त भी हो, यह आगमभाव-अध्ययन है। प्र. नो आगमभावअध्ययन क्या है? उ. नो आगमभाव-अध्ययन इस प्रकार है सामायिक आदि अध्ययन में चित्त को लगाने, उपार्जित कर्मों का क्षय करने और नवीन कर्मों का बंध नहीं होने देने का कारण होने से अध्ययन कहा जाता है। यह नो आगमभाव-अध्ययन है। यह भाव-अध्ययन है। यह अध्ययन है। १९३. “अक्षीण" (अक्षय) का निक्षेप प्र. (२) अक्षीण क्या है? उ. अक्षीण चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. नाम-अक्षीण, २. स्थापना-अक्षीण, ३. द्रव्य-अक्षीण, ४. भाव-अक्षीण। नाम और स्थापना अक्षीण पूर्ववत् है। सेतं आगमओ भावज्झयणे। प. से किं तं नो आगमओ भावज्झयणे? उ. नो आगमओ भावज्झयणे अज्झप्पस्सा णयणं, कम्माणं अवचओ उवचियाणं । अणुवचओ य नवाणं. तम्हा अज्झयणमिच्छति ॥ १२५ ॥ से तंणो आगमओ भावज्झयणे।से तं भावज्झयणे। सेतं अज्झयणे। -अणु.सु.५३६-५४६ १८३. अज्झीण-निक्खेवो प. (२) से किं तं अज्झीणे? उ. अज्झीणे-चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा १. णामज्झीणे, २. ठवणज्झीणे, ३. दव्यज्झीणे, ४. भावज्झीणे। णाम-ठवणाओ पुव्ववण्णियाओ।

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