Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 882
________________ ज्ञान अध्ययन ७७५ प. (१) से किं तं ससमयवत्तव्वया? उ. जत्थ णं ससमए आघविज्जइ पण्णविज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जइ निदसिज्जइ उवदंसिज्जइ। से तं ससमयवत्तव्वया। प. (२) से किं तं परसमयवत्तव्वया? उ. जत्थ णं परसमए आघविज्जइ जाव उवदंसिज्जइ। से तं परसमयवत्तव्यया। प. (३) से किं तं ससमयपरसमयवत्तव्यया? उ. जत्थ णं ससमए परसमए आघविज्जइ जाव उवदंसिज्जइ। से तं ससमयपरसमयवत्तव्वया। -अणु.सु.५२१-५२४ १७७. वत्तव्वयाए नय परूवणा प. इयाणिं कोणओ कं वत्तव्ययमिच्छइ? उ. तत्थ णेगम संगह ववहारा तिविहं वत्तव्वयं इच्छंति, तं जहा१. ससमयवत्तव्वयं, २. परसमयवत्तव्वयं, ३. ससमयपरसमयवत्तव्वयं। २. उज्जुसुओ दुविहं वत्तव्वयं इच्छइ,तं जहा प्र. (१) स्वसमयवक्तव्यता क्या है? उ. अविरोधी रूप से स्वसिद्धान्त का कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन करने को स्वसमयवक्तव्यता कहते हैं। यह स्वसमयवक्तव्यता है। प्र. (२) परसमयवक्तव्यता क्या है? उ. जिस वक्तव्यता में अन्य मत के सिद्धान्त का कथन यावत् उपदर्शन किया जाता है, उसे परसमयवक्तव्यता कहते हैं। यह परसमयवक्तव्यता है। प्र. (३) स्वसमय-परसमयवक्तव्यता क्या है? उ. जिस वक्तव्यता में स्वसिद्धान्त और परसिद्धान्त दोनों का कथन यावत् उपदर्शन किया जाता है, उसे स्वसमयपरसमयवक्तव्यता कहते हैं। यह स्वसमय-परसमयवक्तव्यता है। १७७. वक्तव्यता में नय का प्ररूपण प्र. कौन-सा नय किस वक्तव्यता को स्वीकार करता है? उ. नैगम, संग्रह और व्यवहार नय तीनों प्रकार की वक्तव्यता को स्वीकार करते हैं, यथा१. स्वसमयवक्तव्यता, २. परसमयवक्तव्यता, ३. स्वसमय-परसमयवक्तव्यता। २. ऋजुसूत्रनय स्वसमय और परसमय-इन दो प्रकार की वक्तव्यताओं को ही मान्य करते है, यथा१. स्वसमयवक्तव्यता, २. परसमयवक्तव्यता। क्योंकि इस नय की अपेक्षा से तीसरी मिश्र वक्तव्यता स्वसमय-वक्तव्यता प्रथम भेद (स्वसमयवक्तव्यता) में, और परसमय की वक्तव्यता द्वितीय भेद (परसमयवक्तव्यता) में अन्तर्भूत हो जाती है। इसलिए वक्तव्यता के दो ही प्रकार हैं, किन्तु त्रिविध वक्तव्यता नहीं है। ३. तीनों शब्दनय एक स्वसमयवक्तव्यता को ही मान्य करते हैं। उनके मतानुसार परसमयवक्तव्यता नहीं है। प्र. कैसे? उ. क्योंकि परसमय अनर्थ, अहेतु, असद्भाव, अक्रिय, उन्मार्ग, अनुपदेश और मिथ्यादर्शन रूप है। इसलिए सभी वक्तव्यता स्वसमय की ही है। किन्तु परसमयवक्तव्यता नहीं है और न ही स्वसमय-परसमयवक्तव्यता है। यह वक्तव्यता का वर्णन है। १७८.अर्थाधिकार का स्वरूप प्र. अर्थाधिकार क्या है अर्थात् सामायिक आदि छः अध्ययनों का क्या अर्थ है ? उ. जिस अध्ययन का जो अर्थ (वर्णित विषय) है उसका कयन . अर्थाधिकार कहलाता है, यथा १. ससमयवत्तव्वयं, २. परसमयवत्तव्वयं। तत्थ णं जा सा ससमयवत्तव्वया सा ससमयं पविट्ठा, जा सा परसमयवत्तव्वया सा परसमयं पविट्ठा, तम्हा दुविहा वत्तव्बया, णत्थि तिविहा वत्तव्वया। ३. तिण्णि सद्दणया एगं ससमयवत्तव्ययं इच्छंति, णत्थि परसमयवत्तव्वया। प. कम्हा? उ. जम्हा परसमए अणढे अहेऊ असब्भावे अकिरिया उम्मग्गे अणुवएसे मिच्छादसणमिति कटु, तम्हा सव्या ससमयवत्तव्वया, णत्थि परसमयवत्तव्वया, णत्थि ससमयपरसमयवत्तव्यया। सेतं वत्तव्यया। -अणु.सु.५२५ १७८.अत्थाहिगार सरूवं प. से किं तं अस्थाहिगारे? उ. अत्थाहिगारे जो जस्स अज्झयणस्स अत्थाहिगारे, तं जहा

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