Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 880
________________ ज्ञान अध्ययन ७७३ उ. अयं घयकुंभे आसि। सेतं जाणयसरीरदव्यसंखा। प. (२) से किं तं भवियसरीरदव्वसंखा? उ. भवियसरीरदव्वसंखा-जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्टेणं भावेणं 'संखा' ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, यह घृतकुम्भ-घी का घड़ा था। यह ज्ञायकशरीरद्रव्यशंखा है। प्र. (२) भव्यशरीरद्रव्यशंखा क्या है? उ. जन्म समय प्राप्त होने पर जो जीव योनि से बाहर निकला है और वह भविष्य में उसी शरीर द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार “शंख" पद को सीखेगा ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीरद्रव्यशंखा है। प्र. इसका कोई दृष्टान्त है? उ. यह घृतकुम्भ-घी का घड़ा होगा। यह भव्यशरीरद्रव्यशंखा है। प्र. (३) ज्ञायकशरीरभव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यशंखा क्या है? प. जहा को दिर्सेतो? उ. अयं घयकुंभे भविस्सइ। से तं भवियसरीरदव्वसंखा। प. (३) से किं तं जाणयसरीरभवियसरीर वइरित्ता दव्वसंखा? उ. जाणयसरीरभवियसरीर वइरित्ता दव्यासंखा-तिविहा पण्णत्ता,तं जहा १.एगभविए,२. बद्धाउए, ३.अभिमुहणामगोत्ते य। प. एगभविए णं भंते ! एगभविए त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। प. बद्धाउए णं भंते ! बताउए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीतिभागं। प. अभिमुहणामगोत्ते णं भंते ! अभिमूहणामगोते ति ____ कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। प. इयाणिं को णओ कं संखं इच्छइ ? उ. ज्ञायकशरीरभव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यशंखा तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. एकभविक, २. बद्धायुष्क, ३. अभिमुखनामगोत्र। . प्र. भन्ते ! एकभविक शंख “एकभविक" रूप में कितने समय तक रहता है? उ. गौतम ! एकभविक शंख जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट एक पूर्व कोटि पर्यन्त रहता है। प्र. भन्ते ! बद्धायुष्क जीव बद्धायुष्क रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट एक पूर्वकोटि वर्ष के तीसरे भाग तक रहता है। प्र. भन्ते ! अभिमुखनामगोत्र वाला शंख अभिमुखनामगोत्र रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल रहता है। प्र. कौन-सा नय (इन तीन शंखों में से) किस शंख को मानता है? उ. नैगमनय, संग्रहनय और व्यवहारनय इन उक्त तीनों प्रकार के शंखों को शंख मानते हैं, यथा१. एक भविक, २. बद्धायुष्क, ३. अभिमुखनामगोत्र। ऋजुसूत्रनय ये दो प्रकार के शंख स्वीकार करता है, यथा१. बद्धायुष्क, २. अभिमुखनाम गोत्र तीनों शब्दनय मात्र अभिमुखनामगोत्र शंख को ही शंख मानते हैं। यह ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यशंखा है। यह नो आगमद्रव्यशंखा है। यह द्रव्यसंखा है। प्र. (४) औपम्यशंखा क्या है? उ. औपम्यशंखा चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. सद्वस्तु को सद् वस्तु की उपमा देना, २. सद्वस्तु को असद् वस्तु की उपमा देना, ३. असद्वस्तु को सद् वस्तु की उपमा देना, ४. असद्वस्तु को असद् वस्तु की उपमा देना। उ. तत्थ णेगम-संगह-यवहारा तिविहं संखं इच्छइ,तं जहा २. एक्कभवियं,२. बद्धाउयं, ३. अभिमुहणामगोत्तं च। उज्जुसुओ दुविहं संखं इच्छइ,तं जहा१.बद्धाउयं च, २.अभिमुहणामगोत्तं च। तिण्णि सद्दणया अभिमुहणामगोत्तं संखं इच्छति । से तं जाणयसरीरभवियसरीर वइरिता दव्यसंखा। से तं नो आगमओ दव्यसंखा, सेतं दव्वसंखा। प. (४) से किं तं ओवमसंखा? उ. ओवमसंखा-चउव्विहा पण्णत्ता,तं जहा १. अस्थि संतयं संतएणं उवमिज्जइ, २. अस्थि संतयं असंतएणं उवमिज्जइ, ३. अस्थि असंतयं संतएणं उवमिज्जइ, ४. अस्थि असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ।

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