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ज्ञान अध्ययन
कागण्यवेक्खया चत्तारि कागणीओ कम्ममासओ।
तिण्णि निप्फावा कम्ममासओ, एवं चउक्को कम्ममासओ।
बारस कम्ममासया मंडलओ, एवं अडयालीसाए कागणीए मंडलओ।
- ७७१ ) काकणी की अपेक्षा चार काकणियों का एक कर्ममाष होता है। तीन निष्पाव का एक कर्ममाष होता है। इस प्रकार कर्ममाषक चार प्रकार से निष्पन्न (चतुष्क) होता है। बारह कर्ममाषकों का एक मंडलक होता है। इसी प्रकार अड़तालीस काकणियों के बराबर एक मंडलक होता है। सोलह कर्ममाषक अथवा चौसठ काकणियों का एक स्वर्ण
(सोनैया) होता है। प्र. इस प्रतिमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है? उ. इस प्रतिमानप्रमाण के द्वारा सुवर्ण, रजत, मणि, मोती,
संख, शिला,प्रवाल आदि द्रव्यों का परिमाण जाना जाता है।
सोलस कम्ममासया सुवण्णो एवं चउसट्ठीए कागणीए
सुवण्णो। प. एएणं पडिमाणप्पमाणे णं किं पयोअणं? उ. एएणं पडिमाणप्पमाणेणं सुवण्ण-रजत-मणि-मोत्तिय
संख-सिलप्पवालादीणं दव्याणं पडिमाणप्पमाण-निव्वत्तिलक्खणं भवइ। से तं पडिमाणे। से तं विभागनिष्फण्णे। से तं दव्वपमाणे।
-अणु.सु.३२८-३२९ १७५. भावप्पमाणे संखप्पमाणभेया
प. से किं तं संखप्पमाणे? उ. संखप्पमाणे-अट्ठविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. नामसंखा, २. ठवणासंखा, ३. दव्वसंखा, ४. ओवमसंखा, ५. परिमाणसंखा, ६. जाणणासंखा,
७.गणणासंखा, ८.भावसंखा। प. (१) से किं तं नामसंखा? उ. नामसंखा-जस्स णं जीवस्स वा, अजीवस्स वा, जीवाण
वा, अजीवाण वा, तदुभयस्स वा, तदुभयाण वा संखा ति णामं कज्जइ।
से तं नामसंखा। प. (२) से किं तं ठवणासंखा? उ. ठवणासंखा-जण्णं कठ्ठकम्मे वा, पोत्थकम्मे वा,
चित्तकम्मे वा, लेप्पकम्मे वा, पंथिकम्मे वा, वेढिमे वा, पूरिमे वा, संघाइमे वा, अक्खे वा, वराडए वा, एक्को वा, अणेगा वा, सब्भावठवणाए वा, असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ।
से तं ठवणासंखा। प. नाम-ठवणाणं को पइविसेसो? उ. नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा,
आवकहिया वा होज्जा। प. (३) से किं तं दव्यसंखा? उ. दव्वसंखा-दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१.आगमओ य,२.नो आगमओ य। प. (क) से किं तं आगमओ दव्वसंखा?
यह प्रतिमानप्रमाण है। यह विभागनिष्पन्नप्रमाण है।
यह द्रव्यप्रमाण है। १७५. भावप्रमाण में संख्याप्रमाण के भेद
प्र. शंख प्रमाण कितने प्रकार का है? उ. शंख प्रमाण आठ प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. नामसंख्या, २. स्थापनासंख्या, ३. द्रव्यसंख्या, ४. औपम्यसंख्या, ५. परिमाणसंख्या, ६. ज्ञान संख्या,
७.गणनासंख्या,८. भावसंख्या। प्र. (१) नामसंख्या क्या है? उ. जिस जीव का या अजीव का,जीवों का अथवा अजीवों का,
तदुभय (जीवाजीव) का अथवा तदुभयों (जीवाजीवों) का "शंख" ऐसा नामकरण कर लिया जाता है।
यह नामशंख्या है। प्र. (२) स्थापनासंख्या क्या है? उ. जिस काष्ठकर्म में, पुस्तककर्म में, चित्रकर्म में, लेप्यकर्म में,
ग्रन्थिकर्म में, वेष्टित में, पूरित में, संघातिम में, अक्ष में अथवा वराटक (कौड़ी) में एक या अनेक रूप में सद्भूतस्थापना या असद्भूतस्थापना द्वारा "शंख" इस प्रकार से स्थापन कर लिया जाता है।
यह स्थापनाशंख्या है। प्र. नाम और स्थापना में क्या अन्तर है? उ. नाम यावत्कथिक होता है लेकिन स्थापना इत्वरिक भी होती
है और यावत्कथिक भी होती है। प्र. (३) द्रव्यशंखा क्या है? उ. द्रव्यशंखा दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. आगमद्रव्यशंखा, २. नो आगमद्रव्यशंखा। प्र. (क) आगमद्रव्यशंखा क्या है?
१. क्षेत्र प्रमाण और काल प्रमाण गणितानुयोग में देखें।