Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 866
________________ ज्ञान अध्ययन बीभच्छो रसो जहाअसुइमलभरियनिज्झर सभावदुग्गंधि सव्वकालं पि। धण्णा उ सरीरकलिं बहुमलकसं विमुंचति ॥ ७. रूव-वय- वेस -भासाविवरीयविलंबणासमुप्पन्नो । हासो मणप्पहासो पकासलिंगो रसो होइ ॥ हासो रसो जहा पासुत्तमसीमडियपडिबुद्ध देवर पलोयंती। ही ! जह थणभरकंपणपणमियमज्झा हसइ सामा | ८. पियविप्पयोग बंध वह वाहि विणिवाय संभमुप्पन्नो । सोचिय-विलविय-पव्वाय- रून्नलिंगो रसो कलुणो ॥ कलुणो रसो जहा पज्झातकिलामिय यं बाहागयणप्पुयच्छियं बहु । तस्स वियोगे पुतिय दुब्बलय से मुहं जा यं ॥ ९. निदोसमणसमाहाणसंभवो जो पसंतभावेणं। अधिकारलक्खणी सो रसो पसंतो ति णायव्यौ ॥ पसंतो रसो जहासम्भावनिव्विकार उवसंत पसंत-सोमदिट्ठीय। ही ! जह मुणिणो, सोहइ मुहकमलं पीवरसिरीयं ॥ एए णव कव्वरसा बत्तीसादोसविहिसमुप्पण्णा । गाहाहिं मुणेयव्वा, हवंति सुद्धा व मीसा वा ॥ सेतं नवनामे । १६६. दस णाम विवक्खया गुण णिप्फण्णाई णामा प से किं तं दसनामे ? उ. दसनामे दसविहे पण्णत्ते, तं जहा१. गोणे, ३. आयाणपदेणं, ५. पाहण्णयाए, ७. नामेण ९. संजोगेणं, प. (१) से किं तं गोण्णे ? उ. गोणे - अणु सु. २६२ (१-११) २. नोगोण्णे, ४. पडिपक्यपदेणं, ६. अणादियसिद्धंतेणं, ८. अवयवेणं, १०. पमाणेणं । ७५९ बीभत्सरस का उदाहरण इस प्रकार है अपवित्र मल से भरे हुए (झरनों) शरीर के छिद्रों से व्याप्त और सदा सर्वकाल स्वभावतः दुर्गन्धयुक्त यह शरीर सर्व कलहों का मूल है। ऐसा जानकर जो व्यक्ति उसकी मूर्च्छा का त्याग करते हैं, वे धन्य हैं। ७. रूप, वय, वेष, और भाषा की विपरीतता से हास्यरस उत्पन्न होता है, हास्यरस मन को हर्षित करने वाला है और प्रकाश-मुख नेत्र आदि का विकसित होना, अट्टहास आदि उसके लक्षण है। हास्य रस का उदाहरण इस प्रकार है प्रातः सो कर उठे, कालिमा से काजल की रेखाओं से मंडित देवर के मुख को देखकर स्तनयुगल के भार से नमित मध्यमभाग वाली कोई युवती (भाभी) 'ही-ही' करती हंसती है। ८. प्रिय के वियोग, बंध, वध, व्याधि, विनिपात, पुत्रादि मरण एवं संभ्रम-परचक्रादि के भय आदि से करुणरस उत्पन्न होता है। शोक, विलाप, अतिशय ग्लानता रुदन आदि करुणरस के लक्षण हैं। करुणरस का उदाहरण इस प्रकार है हे पुत्रिके! प्रियतम के वियोग में उसकी वारंवार अतिशय चिन्ता से क्लान्त-मुर्झाया हुआ और आंसुओं से व्याप्त नेत्रों वाला तेरा मुख दुर्बल हो गया है। ९. निर्दोष (हिंसादि दोषों से रहित ) मन की समाधि (स्वस्थता ) से और प्रशान्त भाव से जो उत्पन्न होता है तथा अविकार जिसका लक्षण है, उसे प्रशान्तरस जानना चाहिये । प्रशान्तरस का उदाहरण इस प्रकार हैसद्भाव के कारण निर्विकार, रूपादि विषयों के अवलोकन की उत्सुकता के परित्याग से उपशान्त एवं क्रोधादि दोषों के परिहार से प्रशान्त, सौम्य दृष्टि से युक्त मुनि का मुखकमल अतीव श्री से सम्पन्न होकर सुशोभित हो रहा है। गाथाओं द्वारा कहे गये ये नव काव्यरस अलीकता आदि बत्तीस दोषों से उत्पन्न होते हैं और ये रस कहीं शुद्ध (अमिश्रित) भी होते हैं और कहीं मिश्रित भी होते हैं। यह नवनाम का वर्णन हुआ। १६६. दस नाम की विवक्षा से गुण निष्पन्न आदि नाम प्र. दसनाम क्या है ? उ. दसनाम इस प्रकार के कहे गये हैं, यथा२. नोगौणनाम, ३. आदानपदनिष्यन्नाम, ४. प्रतिपक्षपदनिष्यन्ननाम, १. गौणनाम, ५. प्रधानपदनिष्यन्ननाम ६ अनादिसिद्धान्तनिष्यन्त्रनाम, ७. नामनिष्पन्ननाम, ८. अवयवनिष्पत्रनाम, ९. संयोगनिष्पन्ननाम, १०. प्रमाणनिष्पन्ननाम | प्र. (१) गौण (गुणनिष्पन्न) नाम क्या है? उ. गौणनाम का स्वरूप इस प्रकार है -

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