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ज्ञान अध्ययन
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रण्णो भगिणीवइ।
से तं संजोगनामे। प. ५.से किं तं समीवनामे? उ. समीवनामे
गिरिस्स समीवेणगरं गिरिणगरं, विदिसाए समीवेणगरं वेदिसं, बेन्नाए समीवे णगरं बेनायडं, तगराए समीवेणगरं तगरायडं।
से तं समीवनामे। प. ६.से किं तं संजूहनामे? उ. संजूहनामे
तरंगवतिकारे, मलयवतिकारे, अत्ताणुसट्ठिकारे, बिंदुकारे।
से तं संजूहनामे। प. ७. से किं तं ईसरियनामे? उ. ईसरियनामे
राईसरे तलवरे माडंबिए कोडुबिए इब्धे सेट्ठी सत्थवाहे सेणावइ।
से तं ईसरियनामे। प. ८. से किं तं अवच्चनामे? उ. अवच्चनामे
तित्थयरमाया, चक्कवट्टिमाया, बलदेवमाया, वासुदेवमाया,रायमाया, गणिमाया, वायगमाया। सेतं अवच्चनामे। से तं तद्धिते।
-अणु.सु.३०२-३१० १७२. (३) धाउय-परूवणा
प. से किं तं धाउए? उ. धाउए
भू सत्तायां परस्मेभाषा, एध वृद्धो, स्पर्द्ध,संहर्षे, गा प्रतिष्ठा-लिप्सयोर्ग्रन्थे च, बाधलोडने।
राजा का बहनोई-राजकीय बहनोई।
यह संयोगनाम है। प्र. ५. समीपनाम क्या है? उ. समीपनाम का स्वरूप इस प्रकार है
गिरि के समीप का नगर गिरिनगर, विदिशा के समीप का नगर वैदिशा, वेन्ना के समीप का नगर वेन्नातट, तगरा के समीप का नगर तगरातट।
ये समीपनाम है। प्र. ६. संयूथनाम क्या है? उ. संयूथ (संकलन कर्ता) नाम इस प्रकार है
तरंगवतीकार, मलयवतीकार, आत्मानुषष्ठिकार, बिन्दुकार।
ये संयूथनाम है। प्र. ७. ऐश्वर्यनाम क्या है? उ. ऐश्वर्यनाम का स्वरूप इस प्रकार है
ऐश्वर्य (धोतक) नाम-राजेश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सार्थवाह, सेनापति इत्यादि।
ये ऐश्वर्यनाम हैं। प्र. ८. अपत्यनाम क्या है? उ. अपत्यनाम का स्वरूप इस प्रकार है
तीर्थकरमाता, चक्रवर्तीमाता, बलदेवमाता, वासुदेवमाता, राजमाता, गणिमाता, वाचकमाता। ये सब अपत्यनाम है।
यह तद्धितप्रत्ययजन्य नाम है। १७२. (३) धातुओं (क्रियाओं) की प्रस्तपणा
प्र. थातुजनाम क्या है? उ. धातुजनाम का स्वरूप इस प्रकार है
परस्मैपदी सत्तार्थक 'भू' धातु, वृद्ध्यर्थक एध् धातु, संघर्षार्थक ‘स्पर्द्ध' धातु, प्रतिष्ठा, लिप्सा या संचय अर्थक 'गाधृ' धातु और विलोडनार्थक बाधृ' धातु आदि से निष्पन्न।
यह धातुजनाम है। १७३. (४) निरुक्ति (व्युत्पत्ति) की प्ररूपणा
प्र. निरुक्तिज नाम क्या हैं? उ. निरुक्तिज नाम का स्वरूप इस प्रकार है
जैसे-मया शेते-महिष-पृथ्वी पर जो शयन करे वह महिषि-भैंसा, भ्रमति रौति इति भ्रमर-भ्रमण करते हुए जो शब्द करे वह भ्रमर, मुहुर्मुहुर्लसति इति मुसलं-जो बारम्बार ऊंचा-नीचा हो वह मूसल, कपिरिव लम्बते तथेति च करोति इति कपित्थं-कपि-बंदर के समान वृक्ष की शाखा पर चेष्टा करता है वह कपित्थ,
-अणु.सु.३११
से तं धाउए। १७३. (४) निरुत्तिए परूवणा
प. से किं तं निरुत्तिए? उ. निरुत्तिए
मह्यां शेते महिषः,
भ्रमति च रौति च भ्रमरः,
मुहुर्मुहुर्लसति मुसलं,
कपिरिव लम्बते त्थच्च करोति कपित्थं,