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अहवा हेऊ चउव्यिहे पण्णत्ते, तं जहा
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१. अत्थि तं अत्थि सो हेऊ,
२. अत्थि तं णत्थि सो हेऊ, ३. णत्थि त अत्थि सौ हेऊ, ४. णत्थि तं णत्थि सो हेऊ। १३२. दसविह वाददोसाणं परूवणं
दसविहे दोसे पण्णले, तं जहा१. तज्जातदोसे,
२. मतिभंगदोसे,
३. पसत्थारदोसे,
४. परिहरणदोसे
५. सलक्खण,
६. कारण,
७. हेउदोसे,
८. संकामणं,
९. निग्गह,
१०. वत्युदोसे ॥ १३३. वादस्स विसिद्ध दोसाणं परूवणं
दसविहे विसेसे पण्णत्ते, तं जहा
१. वधु, २. तज्जायदोसे य ३. दोसे
४. एगट्ठिए इ य
५. कारणेय,
६. पडुप्पन्ने,
७. दोसे निच्चे,
८. अहियअट्ठमे
,
- ठाणं. अ. ४, उ. ३, सु. ३३६
९. अत्तणा, १०. उवणीए य विसेसेड य ते दस
- ठाणं अ. १०, सु. ७४४
- ठाणं अ. १०, सु. ७४४
१३४. दसविहे सुख्यायाणुओगे पलवणंदसविहे सुद्धवायाणुओगे पण्णत्ते, तं जहा
१. चकारे.
द्रव्यानुयोग - (१)
अथवा हेतु चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. विधि-साधक - विधि हेतु,
२. विधि साधक निषेध हेतु.
३. निषेध-साधक - विधि हेतु, ४. निषेध साधक निषेध हेतु ।
१३२. दस प्रकार के वाद-दोषों का प्ररूपण
दस प्रकार के दोष कहे गए हैं, यथा
१. तज्जातदोष-प्रतिवादी के वचन को सुनकर मौन हो जाना। २. मतिभंगदोष-समय पर उत्तर नहीं सूझना ।
३. प्रशस्तदोष- सभ्य या सभानायक की ओर से होने वाला
दोष |
४. परिहरणदोष-स्व सिद्धान्त से विपरीत बात का कथन करना।
५. स्वलक्षणदोष अव्याप्ति अतिव्याप्ति, असम्भव दोषों से
,
युक्त लक्षण का कथन करना ।
६. कारणदोष- साध्य के बिना भी कारण का रह जाना ।
७. हेतुदोष - असिद्ध, विरुद्ध, अनैकांतिक दोषों से युक्त का
कथन करना।
८. संक्रमणदोष- प्रस्तुत विषय को छोड़ कर अप्रस्तुत विषय की चर्चा करना ।
९. निग्रहदोष -छल आदि के द्वारा प्रतिवादी को पराजित करना।
१०. वस्तुदोष - दोष युक्त पक्ष का कथन करना । १३३. वाद के विशिष्ट दोषों का प्ररूपण
दस प्रकार के विशेष (दोष) कहे गए हैं, यथा१. वस्तुदोष विशेष पक्ष दोष के विशेष प्रकार । २. तज्जातदोषविशेष-व्यक्तिगत स्खलनों को प्रगट करना । ३. दोषविशेष- अतिभंग आदि दोषों के विशेष प्रकार ।
४. एकार्थिकविशेष-पर्यायवाची शब्दों में निरुक्त्यर्थ से होने वाला दोष ।
५. कारणविशेष उपादान और निमित्त को छोड़कर दूसरे को कारण मानना ।
६. प्रत्युत्पन्नदोषविशेष- जिस दोष का सम्बन्ध वर्तमान काल से हो।
७. नित्यदोषविशेष-वस्तु को सर्वथा नित्य या अनित्य मानने पर प्राप्त होने वाले दोष ।
८. अधिकदोषविशेष - वादकाल में दृष्टान्त निगमन आदि का अतिरिक्त प्रयोग करना ।
९. आत्मकृतदोषविशेष- स्वयं द्वारा कृत दोष ।
१०. उपनीतदोषविशेष - जो दोष दूसरे के द्वारा दूषित किया गया है।
१३४. दस प्रकार के शुद्ध वचनानुयोग का प्ररूपण
शुद्धवचन ( वाक्य निरपेक्ष पदों) का अनुयोग (व्याख्या) दस प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. चंकार अनुयोग - चकार के अर्थ का विचार ।