________________
ज्ञान अध्ययन
७४५
अंति य इंति य उंति य अंता उणसगस्स बोद्धव्या। एएसिं तिण्हं पिय वोच्छामि निदंसणे एत्तो॥
आकारंतो राया ईकारंतो गिरी य सिहरी य। ऊकारंतो विण्हू दुमो ओ अंताओ पुरिसाणं ।
आकारता माला ईकारंता सिरी य लच्छी य। ऊकारंता जंबू वहू य अंता उ इत्थीणं॥ अंकारंतं धन्नं इंकारत नपुंसक अच्छिं। ऊंकारंतं पीलुं च महुंच अंता णपुंसाणं॥
से तंतिणामे।
-अणु.सु.२२६ १६०. चउणाम विवक्खया आगम लोवाइणा सद्द णिप्फत्ति
प. से किं तं चउणामे? उ. चउणामे चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा
१. आगमेणं, २. लोयेणं,
३. पयइए, ४. विगारेणं। प. (१) से किं तं आगमेणं? उ. आगमेणं पउमानि पयासि कुण्डानि।
सेतं आगमेणं। प. (२) से किं तं लोवेणं? उ. लोवेणं ते अत्र-तेऽत्र, पटो अंत्र-पटोऽत्र, घटो अत्र
घटोऽत्र, रथो अत्र-रथोऽत्र।
सेतं लोवेणं। प. (३) से किं तं पगतीए? उ. पगतीए अग्नी एतो, पट् इमो,शाले एते, माले इमे।
सेतं पगतीए। प. (४) से किं तं विकारेणं? उ. विकारेणं दंडस्य अग्रं-दण्डाग्रम्, सा आगता
साऽऽगता, दधि इदं-दधीदम्, नदी ईहते-नदीहते, मधु उदकं मधूदकम्, बहु ऊहते बहूहते। से तं विकारेणं। सेतं चउणाम।
. -अणु.सु.२२७-२३१ १६१. पंचनाम विवक्खया ओवसग्गियाइ नाम
प. से किं तं पंचणामे? उ. पंचणामे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा
१. नामिकं, २. नैपातिकं, ३. आक्खाइयं, ४. ओवसग्गिय,५.मिस्सं य। अश्व इति नामिकम्, खल्विति नैपातिकम्, धावतीत्याख्यातिकम्, परि-इत्यौपसर्गिकम्, संयत इति मिश्रम्। सेतं पंचणामे
-अणु.सु. २३२
जिन शब्दों के अन्त में अं, इं या उं स्वर हों, उनको नपुंसकलिंग वाला समझना चाहिए। अब इन तीनों के उदाहरण कहते हैंआकारान्त पुरुष नाम का उदाहरण "राया" है। ईकारान्त का “गिरी" तथा "सिहरी" (शिखरी) है। ऊकारान्त का विण्हू (विष्णु) और ओकारान्त का दुमो (द्रुम-वृक्ष) है। स्त्रीनाम में "माला" यह पद आकारान्त का, "सिरी" और "लच्छी" पद ईकारान्त का, "जम्बू" और "वहू" ऊकारान्त नारी जाति के उदाहरण है। "धन्न" यह प्राकृतपद अंकारान्त नपुंसक नाम का उदाहरण है। "अच्छिं" यह इंकारान्त नपुंसकनाम का तथा “पीलु" "महु" ये ऊंकारान्त नपुंसक के पद हैं।
यह त्रिनाम है। १६०. चतुर्नाम की विवक्षा से आगम, लोप आदि द्वारा शब्द
निष्पत्तिप्र. चतुर्नाम क्या है? उ. चतुर्नाम चार प्रकार के गहे गये हैं, यथा
१. आगमनिष्पन्ननाम, २. लोपनिष्पन्ननाम,
३. प्रकृतिनिष्पन्ननाम, ४. विकारनिष्पन्ननाम। प्र. (१) आगमनिष्पन्ननाम क्या है ? उ. पद्मानि, पयांसि, कुण्डानि आदि,
यह सब आगमनिष्पन्ननाम है। प्र. (२) लोपनिष्पन्ननाम क्या है? उ. ते + अत्र-तेऽत्र, पटो + अत्र-पटोऽत्र, घटो + अत्र
घटोऽत्र, रथो + अत्र - रथोऽत्र,
यह लोपनिष्यन्ननाम है। प्र. (३) प्रकृतिनिष्पन्ननाम क्या है? उ. अग्नी, एतौ, पट्-एमो, शाले-एते, माले–इमे इत्यादि,
यह प्रकृतिनिष्पन्ननाम है। प्र. (४) विकारनिष्पन्ननाम क्या है? उ. दण्डस्य + अग्रं = दण्डाग्रम्, सा + आगता = साऽऽगता,
दधि + इदं = दधीदं, नदी + ईहते = नदीहते, मधु + उदकं = मधूदकं, बहु + ऊहते =बहूहते, यह सब विकारनिष्पन्ननाम हैं।
यह चतुर्नाम है। १६१. पांच नाम की विवक्षा से औपसर्गिक आदि नाम
प्र. पंचनाम क्या है? उ. पंचनाम पांच प्रकार के कहे गये है, यथा
१.नामिक, २. नैपातिक, ३. आख्यातिक, ४. औपसर्गिक, ५.मिश्र। जैसे "अश्व" यह नामिकनाम का , “खलु-नैपातिकनाम का, “धावति" आख्यातिकनाम का “परि" औपसर्गिक और "संयत" यह मिश्रनाम का उदाहरण है। यह पंचनाम का स्वरूप है।
मित्रा