Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 856
________________ ज्ञान अध्ययन उ. पारिणामिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. साइपारिणामिए य, २. अणाइपारिणामिए य प से किं तं साइपारिणामिए ? उ. साइपारिणामिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहाजुण्णसुरा जुण्णगुलो जुण्णघयं जुण्णतंदुला चेव । अब्भा य अब्भरुक्खा संज्ञा गंधव्वणगरा य । उक्कावाया दिसादाया गज्जियं विज्जू णिग्घाया जूवया जक्खादित्ता भूमिया महिया रयुग्धाओ चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा पडिचंदया पडिसूरया इंदधणू उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा वासधरा गामा णगरा घरा पव्वया पायाला भवणा निरया रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा सोहम्मे ईसाणे जाव आणए पाणए आरणे अच्चुए गेवेज्जे अणुत्तरोबवाइया ईसीपधारा परमाणुपोग्गले दुपदेसिए जाव अणतपदेसिए। सेतं साइपारिणामिए । प से किं तं अणाइपारिणामिए ? उ. अणाइपारिणामिए धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्यिकाए जीवत्यिकाए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए लोए अलोए भवसिद्धिया अभयसिद्धिया । सेतं अणाइपारिणामिए से तं पारिणामिए। ६. सण्णिवाइए भावे प से किं तं सण्णिवाइए? - अणु. सु. २४८-२५० उ. सण्णिवाइए एएसिं चेव उदइय-उवसमिय-खइयखओवसमिय-पारिणामियाणं भावाणं दुयसंजोएणं तियसंजोएणं चउक्कसंजोएणं पंचगसंजोएणं जे निप्फज्जति सव्वे ते सन्निवाइए नामे । तत्थ णं दस दुगसंजोगा, दस तिगसंजोगा, पंच चक्कसंजोगा, एक्के पंचगसंजोगे। तत्थ णं जे से दस दुगसंजोगा से णं इमे१. अत्थि णामे उदइए उवसमनिप्फण्णे, २. अस्थि णामे उदइए खयनिष्फण्णे, ३. अत्थि णामे उदइए खओवसमनिप्फण्णे, ४. अत्थि णामे उदइए पारिणामियनिप्फण्णे, ५. अस्थि णामे उचसमिए स्पयनिष्कण्णे, ६. अत्थि णामे उवसमिए खओवसमनिप्फन्ने, ७. अत्थि णामे उवसमिए पारिणामियनिप्फन्ने, ८. अत्थि णामे खइए खओवसमनिप्फन्ने, ७४९ उ. पारिणामिकभाव दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. साविचारिणामिक, २. अनादिपारिणामिक प्र. सादिपारिणामिक भाव क्या है ? उ. सादिपारिणामिक भाव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथाजीर्ण सुरा, जीर्ण गुड़, जीर्ण घी, जीर्ण तंदुल, अन्न, अप्रवृक्ष, संध्या गंधर्वनगर। तथा उल्कापात, दिग्दाह, मेघगर्जना, विद्युत् निर्घात, यूपक, यक्षदिप्त, धूमिका, , महिका, रजोद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष प्रतिचन्द्र प्रतिसूर्य इन्द्रधनुष उदकमलय, कपिहसित, अमोघ वर्ष (भरतादि क्षेत्र) वर्षधर (हिमवान् पर्वत आदि ) ग्राम, नगर, घर, " पर्वत, पातालकलश, भवन, नरक, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा, तमस्तमः प्रभा सौधर्म, ईशान पावत् आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, ग्रैवेयक, अनुत्तरोपपातिक देवविमान, ईषयाग्भारा पृथ्वी परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध चावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध इत्यादि, यह सादिपारिणामिकभाव है। प्र. अनादिपारिणामिकभाव क्या है ? उ. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धासमय, लोक, अलोक, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक। यह अनादि पारिणामिक भाव है। यह पारिणामिकभाव है। ६. सान्निपातिक भाव प्र. सान्निपातिकभाव क्या है? उ. औदयिक, औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन पांचों भावों के द्विक्संयोग, त्रिकसंयोग चतुं संयोग और पंञ्चसंयोग से जो भाव निष्पन्न होते हैं वे सब सान्निपातिकभाव नाम हैं। उनमें से द्विक्संयोगज दस, त्रिकसंयोगज दस, चतु:संयोगज पांच और पंचसंयोगज एक भंग होता हैं (इस प्रकार सब मिलाकर ये छब्बीस सान्निपातिकभाव है।) दो-दो के संयोग से निष्पन्न दस भंगों के नाम इस प्रकार हैं१. औदयिक औपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव, २. औदयिक क्षायिक के संयोग से निष्पन्न भाव, ३. औदधिक क्षायोपशमिक के संयोग से निष्यन्न भाव ४. औदधिक पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव, ५. औपशमिक क्षायिक के संयोग से निष्पन्न भाव, ६. औपशमिक क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव, ७. औपशमिक-पारिणमिक के संयोग से निष्पन्न भाव, ८. क्षायिक क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव,

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