________________
ज्ञान अध्ययन
तत्थ णं जे से एक्के पंचकसंजोगे से णं इमे
अत्थि नामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिष्कन्ने ।
प. कयरे से नामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामिय निप्फन्ने ?
उ. उदए ति मणूसे, उवसंता कसाया खइय सम्मतं, खओवसमियाई इंदियाई, पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिष्फन्ने। १
से तं सन्निवाइए, से तं छण्णामे अणु. सु. २५१-२५९ १६३. सत्त णाम विवक्खया-सर मंडलस्स वित्थरओ परूवणं
प से कि त सत्तनामे ?
उ. सत्तनामे सत्त सरा पण्णत्ता, तं जहा
१. सज्जे, २. रिसभे, ३. गंधारे, ४. मज्झिमे, ५. पंचमे सरे । ६. धेवए चेव, ७. णेसाए सरा सत्त वियाहिया ।
"
एएसि णं सत्तण्डं सराणं सत्त सरट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा
१. सज्ज तु अग्गजिभाए
२. उरेण रिसभं सरं
-
३. कंठुग्गएण गंधारं
४. मज्झजिब्भाए मज्झिमं ।
५. णासाए पंचमं बूया
६. दंतोट्ठेण य धेवयं ।
७. मुद्धाणेण य णेसा य, सरट्ठाणा वियाहिया ॥ सतसरा जीवनिस्सिया पण्णत्ता, तं जहा
१. स रबड़ मऊरो।
२. कुक्कुडो रिसभं सरे ।
३. हंसो णदइ गंधारं ।
४. मज्झिमं तु गवेलगा
५. अह कुसुमसंभवे काले कोइला पंचमं सरं ।
६. छच सारसा कौंचा।
७. णेसायं सत्तमं गयो ।
सत्त सरा अजीवनिस्सिया पण्णत्ता, तं जहा
१. सज्जं रवइ मुहंगो ।
२. गोमुही रिसभं सरं
३. संखो णदइ गंधारं ।
४. मज्झिमं पुण झल्लरी |
५. चउचलणपइट्ठाणा गोहिया पंचम सरं ।
१. (क) विया. स. २५, उ, ५, सु. ४७-४८
७५३
पंचसंयोगज सान्निपातिकभाव का एक भंग इस प्रकार हैऔदयिक औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक पारिणामिकनिष्पन्नभाव ।
प्र. औदधिक- औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्न भाव क्या है ?
उ. औदयिक भाव में मनुष्यगति, औपशमिक भाव में उपशांतकषाय, क्षायिक भाव में क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक भाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व यह औदयिक औपशमिक शायिक क्षायोपशमिक
,
पारिणामिक निष्पन्न भाव है।
यह सान्निपातिकभाव है। यह छह नाम हुआ।
१६३. सप्त नाम की विवक्षा से स्वर मंडल का विस्तार पूर्वक
प्ररूपण
प्र. सप्त नाम क्या है ?
उ. सप्त नाम सात ( प्रकार के) स्वर कहे गए हैं, यथा
१. षड्ज, २. ऋषभ, ३. गांधार, ४. मध्यम, ५. पंचम, ६. धैवत, ७. निषाद (ये सात स्वर हैं)
इन सात स्वरों के सात स्वरस्थान कहे गए हैं, यथा
१. षड्ज का स्थान जिह्वा का अग्र भाग है।
२. ऋषभ स्वर का स्थान वक्षस्थल है।
३. गांधार स्वर का स्थान कंठ है।
४. मध्यम स्वर का स्थान जिह्वा का मध्य भाग है।
५. पंचम स्वर का स्थान नासिका है।
६. धैवत स्वर का स्थान दंतोष्ठ संयोग है।
७. निषाद स्वर का स्थान मूर्धा (सिर) है। जीवनिःश्रित सात स्वर कहे गए हैं, यथा१. मयूर षड्ज स्वर में बोलता है।
२. कुक्कुट (मुर्गा ) ऋषभ स्वर में बोलता है।
३. हंस गांधार स्वर में बोलता है।
४. गवेलक (गाय और भेड़ ) मध्य स्वर में बोलता है।
५. कोयल बसन्तऋतु में पंचम स्वर में बोलता है।
६. क्रौंच और सारस पक्षी धैवत स्वर में बोलते हैं। ७. हाथी निषाद स्वर में बोलता है। अजीवनिःश्रित सात स्वर कहे गए हैं, यथा१. मृदंग से षड्ज स्वर निकलता है। २. गोमुखी वाद्य से ऋषभ स्वर निकलता है।
३. शंख से गांधार स्वर निकलता है।
४. झालर से मध्यम स्वर निकलता है।
५. चार चरणों पर प्रतिष्ठित गोधिका से पंचम स्वर निकलता है।
(ख) विया. स. १७, उ. १, सु. २८-२९