Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 830
________________ ज्ञान अध्ययन - ७२३ ) ३. अणुजोगी, ३. अनुयोगी-व्याख्या के लिए पूछा जाने वाला। ४. अणुलोमे, ४. अनुलोम-कुशलकामना से पूछा जाने वाला। ५. तहणाणे, ५. तथाज्ञान-स्वयं जानते हुए भी दूसरों की ज्ञानवृद्धि के लिए पूछा जाने वाला। ६. अतहणाणे -ठाणं अ.६,सु.५३४ ६. अयथाज्ञान-स्वयं न जानने की स्थिति में पूछा जाने वाला। १३०. विवक्खया हेऊ-अहेऊ भेय परूवणं १३०. विवक्षा से हेतु-अहेतु के भेदों का प्ररूपण१. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा १. पांच हेतु (अनुमान व्यवहारी) कहे गए हैं, यथा१. हेऊण जाणइ, १. हेतु को नहीं जानता, २. हेऊण पासइ, २. हेतु को नहीं देखता, ३. हेऊण बुज्झइ, ३. हेतु पर श्रद्धा नहीं करता, ४. हेऊ णाभिगच्छइ, ४. हेतु को प्राप्त नहीं करता, ५. हेऊं अन्नाणमरणं मरइ। ५. अध्यवसाय के द्वारा अज्ञानमरण से मरता है। २. पंच हेऊ पण्णत्ता,तं जहा २. पांच हेतु कहे गए हैं, यथाहेउणा ण जाणइ जाव हेउणा अन्नाणमरणं मरइ। १.हेतु से नहीं जानता यावत् ५. अज्ञानमरण से मरता है। ३. पंच हेऊ पण्णत्ता,तं जहा ३. पांच हेतु कहे गए है, यथा__ हेऊ जाणइ जाव हेउं छउमत्थमरणं मरइ। १. हेतु को जानता है यावत् ५. सहेतुक छद्मस्थ मरण मरता है। ४. पंच हेऊ पण्णत्ता,तं जहा ४. पांच हेतु (अनुमान) कहे गए हैं, यथाहेउणा जाणइ जाव हेउणा छउमत्थमरणं मरइ। १. हेतु से जानता है यावत् ५. सहेतुक छद्मस्थ मरण से मरता है। १. पंच अहेऊ पण्णत्ता,तं जहा १. पांच अहेतु कहे गए हैं, यथाअहेउंण जाणइ जाव अहेउं छउमत्थमरणं मरइ। १. अहेतु को नहीं जानता है यावत् ५. अहेतुक छद्मस्थ मरण मरता है। २. पंच अहेऊ पण्णत्ता,तं जहा २. पांच अहेतु कहे गए हैं, यथाअहेउणा ण जाणइ जाव अहेउणा छउमत्थमरणं मरइ। १. अहेतु से नहीं जानता है यावत् ५. अहेतुक छद्मस्थ मरण से मरता है ३. पंच अहेऊ पण्णत्ता,तं जहा ३. पांच अहेतु कहे गए हैं, यथाअहेउ जाणइ जाव अहेउं केवलिमरणं मरहार १. अहेतु को जानता है यावत् ५. अहेतुक केवली मरण मरता है। ४. पंच अहेऊ पण्णत्ता,तंजहा ४. पांच अहेतु कहे गए हैं, यथाअहेउणा जाणइ जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ। १. अहेतु से जानता है यावत् ५. अहेतुक केवली मरण से ___-ठाणं. अ. ५, उ. १, सु. ४१० मरता है। १३१. पगारान्तरेण हेऊ भेय परूवणं १३१. प्रकारान्तर से हेतु के भेदों का प्ररूपणहेऊ चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा हेतु चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. जावए, १. यापक-विशेषण बहुल हेतु-जिसे प्रतिवादी शीघ्र न समझ सके, २. थावए, २. स्थापक-साध्य को शीघ्र स्थापित करने वाला हेतु, ३. वंसए, ३. व्यंसक-प्रतिवादी को छलने वाला हेतु, ४. लूसए। ४. लूषक-छल का निराकरण करने वाला हेतु। अहवा हेऊ चउविहे पण्णत्ते,तं जहा हेतु चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. पच्चक्खे, २. अणुमाणे, १. प्रत्यक्ष, २. अनुमान, ३. ओवम्मे, ४. आगमे। ३. उपमान, ४. आगम। १. ठाणं. अ. ३, उ. २, सु. १७१ २. विया. स. ५, उ. ७, सु. ३७-४४ ३. अणु. सु. ४३६

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