Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 838
________________ ज्ञान अध्ययन १-२ नाम-ठवणाओ तहेव प. ३. से किं तं दव्वाणुपुव्वी? उ. दव्वाणुपुव्वी दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. आगमओ य, २. नो आगमओ य। सेसं तहेव जाव जाणयसरीर-भवियसरीरवइरित्ता दव्याणुपुवीदुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. उवणिहिया य, २. अणोवणिहिया य। तत्थ णं जा सा उवणिहिया सा ठप्पा। तत्थं णंजा सा अणोवणिहिया सादुविहापण्णत्ता,तं जहा १.णेगम-ववहाराणं,२.संगहस्सय। प. से किं तं णेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया दव्वाणुपुब्बी? - ७३१ ) १-२ नाम और स्थापना आनुपूर्वी का स्वरूप नाम और स्थापना आवश्यक के समान है। प्र. ३. द्रव्यानुपूर्वी क्या है? उ. द्रव्यानुपूर्वी दो प्रकार की कही गई है, यथा १. आगम से, २. नो आगम से। शेष वर्णन द्रव्यावश्यक के समान यावत् ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी-दो प्रकार की कही गई है, यथा१. औपनिधिकी (क्रम विशेष) द्रव्यानुपूर्वी, २. अनौपनिधिकी (बिना क्रम विशेष) द्रव्यानुपूर्वी। इनमें से औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी स्थापनीय है। अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी दो प्रकार की कही गई है, यथा १. नैगम-व्यवहारनयसम्मत, २. संग्रहनयसम्मत। प्र. नैगमनय व्यवहारनय सम्मत अनीपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी क्या है? उ. नैगम-व्यवहारनयसम्मत द्रव्यानुपूर्वी पांच प्रकार की कही गई है, यथा१. अर्थपदप्ररूपणा (पदार्थ का कयन), २. भंगसमुत्कीर्तनता (भंगों का उच्चारण,) ३. भंगोपदर्शनता (भंगों का दिखाना), ४. समवतार (मिलना), ५. अनुगम (व्याख्या)। १४७. अर्थपद प्ररूपणा प्र. १. नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपद की प्ररूपणा क्या है? उ. त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वी, चतुष्प्रदेशिक आनुपूर्वी यावत् दसप्रदेशिक, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है। उ. णेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया दव्याणुपुव्यी पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा१. अट्ठपयपरूवणया, २. भंगसमुक्कित्तणया, ३. भंगोवदसणया, ४.समोयारे, ५.अणुगमे। -अणु.सु. ९३-९८ १४७. अट्ठपय परूवणा प. १.से किं तं णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया? उ. णेगम ववहाराणं अट्ठपय परूवणया-तिपएसिए आणुपुव्वी, चउपएसिए आणुपुव्वी जाव दसपएसिए आणुपुव्वी, संखेज्जपएसिए आणुपुव्वी, असंखेज्जपएसिए आणुपुव्वी, अणंतपएसिए आणुपुव्वी। परमाणुपोग्गले अणाणुपुव्वी। दुपएसिए अवत्तव्यए। तिपएसिया आणुपुब्बीओ जाव अणंतपएसिया आणुपुव्वीओ। परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वीओ। दुपएसिया अवत्तव्वगाई। से तंणेगम-यवहाराणं अट्ठपयपलवणया। प. एयाए णं णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए कि पओयणं? उ. एयाए णं णेगम-यवहाराणं अट्ठपयपरूयणयाए भंगसमुक्कित्तणया कीरइ। १४८. भंग समुकित्तणा प. २.से कि तंणेगम-वयहाराणं भंग समुक्कित्तणया? उ. णेगम ववहाराण भंग समुक्कितणया परमाणु पुद्गल अनानुपूर्वी रूप है। द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्य है। अनेक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध यावत् अनेक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध अनेक आनुपूर्वियां हैं। अनेक परमाणु अनेक अनानुपूर्वी है। अनेक दिप्रदेशिक स्कन्ध अनेक अवक्तव्य है। यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्रलपणता है। प्र. नैगम-व्यवहारनयसम्मत इस अर्थपदप्ररूपणता द्वारा आनुपूर्वी का क्या प्रयोजन है? उ. इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्रलपणता द्वारा भंगसमुत्कीर्तना (भंगों का कथन) किया जाता है। १४८. भंगों का उच्चारण प्र. २. नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंग समुत्कीर्तन क्या है? उ. नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंग समुत्कीर्तन का स्वरूप इस प्रकार है, यथा१. आनुपूर्वी है, २. अनानुपूर्वी है, ३. अवक्तव्य है, ४. आनुपूर्विया है, ५. अनानुपूर्वियां हैं, ६.(अनेक) अवक्तव्य है। १.अत्थि आणुपुव्वी, २.अस्थि अणाणुपुब्बी, ३. अस्थि अवत्तव्वए, ४. अत्थि आणुपुव्वीओ, ५.अस्थि अणाणुपुव्वीओ, ६.अस्थि अवत्तव्बयाई।

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