Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 843
________________ ७३६ प. ८. णेगम-ववहाराणं आणुपुब्बीदव्वाई कयरम्मि भावे होज्जा? किं उदइए भावे होज्जा? उवसमिए भावे होज्जा? खइए भावे होज्जा? खाओवसमिए भावे होज्जा? पारिणामिए भावे होज्जा? सन्निवाइए भावे होज्जा? उ. णियमा साइपारिणामिए भावे होज्जा। अणाणुपुव्विदव्वाणि अवत्तव्वयदव्वाणि य एवं चेव भाणियव्याणि। प. ९. एएसि णं भंते! णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाणं अणाणुपुव्वीदव्वाणं अवत्तव्वयदव्वाण य दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा! सव्वत्थोवाई णेगम-ववहाराणं अवत्तव्वयदव्वाइं दव्वट्ठयाए, अणाणुपुव्वीदव्वाइंदव्वट्ठयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्वीदव्वाई दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणाई। पएसट्ठयाए णेगम-ववहाराणंसव्वत्थोवाइं अणाणुपुव्वीदव्वाइं अपएसट्ठयाए, अवत्तव्वयदव्वाइं पएसट्ठयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्वीदव्वाई पएसट्ठयाए अणंतगुणाई। दव्बट्ठ-पएसट्ठयाए सव्वत्थोवाइं णेगम-ववहाराणंअवत्तव्वयदव्वाइं दव्वट्ठयाए, अणाणुपुव्वीदव्वाइं दव्वट्ठयाए अपएसट्ठयाए विसेसाहियाई, अवत्तव्वयदव्वाई पएसट्ठयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्वीदव्वाइं दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणाई ताई चेव पएसट्ठयाए अणंतगुणाई। से तं अणुगमे। से तंणेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया दव्याणुपुव्वी। -अणु.सु.११०-११४ १५२. संगहणय सम्मय अणोवणिहिया आणुपुव्वी प. से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया दव्वाणुपुव्वी? उ. संगहस्स अणोवणिहिया दव्वाणुपुव्वी पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा१.अट्ठपयपरूवणया,२.भंगसमुक्कित्तणया, ३.भंगोवदंसणया, ४.समोयारे, ५.अणुगमे। द्रव्यानुयोग-(१)) प्र. ८. नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य किस भाव में विद्यमान होते हैं? क्या औदयिक भाव में, औपशमिक भाव में, क्षायिक भाव में, क्षायोपशमिक भाव में, पारिणामिक भाव में अथवा सान्निपातिक भाव में विद्यमान हैं ? उ. समस्त आनुपूर्वीद्रव्य सादि पारिणामिक भाव में होते हैं। अनानुपूर्वीद्रव्यों और अवक्तव्यद्रव्यों के लिए भी इसी प्रकार कथन करना चाहिए। प्र. ९. भन्ते! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य, अनानुपूर्वीद्रव्य औरअवक्तव्यद्रव्य द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेश की अपेक्षा और द्रव्यप्रदेश की अपेक्षा कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम! द्रव्य की अपेक्षा नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यद्रव्य सबसे अल्प हैं, (उनसे) अनानुपूर्वीद्रव्य, द्रव्य की अपेक्षा विशेषाधिक हैं, (उनसे) आनुपूर्वीद्रव्य द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणे है। प्रदेश की अपेक्षा नैगम-व्यवहारनयसम्मतअनानुपूर्वीद्रव्य अप्रदेशी होने से सबसे अल्प हैं, अनसे प्रदेशों की अपेक्षा अवक्तव्यद्रव्य विशेषाधिक हैं (उनसे) आनुपूर्वीद्रव्य प्रदेशों की अपेक्षा अनन्तगुणे हैं। द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा-जैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यद्रव्य द्रव्य की अपेक्षा सबसे अल्प है. (उनसे) द्रव्य और अप्रदेश की अपेक्षा अनानुपूर्वीद्रव्य विशेषाधिक हैं, (उनसे) प्रदेश की अपेक्षा अवक्तव्यद्रव्य विशेषाधिक हैं, (उनसे) आनुपूर्वीद्रव्य द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं, और वे ही प्रदेश की अपेक्षा अनन्तगुणे हैं। यह अनुगम का स्वरूप है। यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनीपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का कथन हुआ। १५२. संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी आनुपूर्वी प्र. संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी क्या है? उ. संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी पांच प्रकार की कही गई है, यथा१. अर्थपदप्ररूपणता (पदार्थों का कथन) २. भंगसमुत्कीर्तनता (भंगों का उच्चारण), ३. भंगोपदर्शनता (भंगों की स्थापना), ४. समवतार (समावेश), ५. अनुगम (व्याख्या)। प्र. १. संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणा क्या है? उ. संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप इस प्रकार है त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आनुपूर्वी है यावत् दसप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, असंख्यात-प्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, परमाणपुद्गल अनानुपूर्वी है और द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्य है। प. १. से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया? उ. संगहस्स अट्ठपयपरूवणया-तिपएसिया आणुपुव्वी, चउप्पएसिया आणुपुव्वी जाव दसपएसिया आणुपुव्वी, संखेज्जपएसिया आणुपुव्वी, असंखेज्जपएसिया आणुपुव्वी, अणंतपएसिया आणुपुदी, परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वी, दुपएसिया अवत्तव्वए।

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