Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 835
________________ ७२८ प. जइ सुयणाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स-उद्देसो जाव अणुओगो य पवत्तइ? अहवा अंगबाहिरस्स? उ. अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि, इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च अंगबाहिरस्स अणुओगो। प. जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, किं कालियस्स उद्देसो जाव अणुओगो य पवत्तइ? अहवा उक्कालियस्स? उ. कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, उक्कालियस्स वि, इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च उक्कालियस्स अणुओगो। द्रव्यानुयोग-(१) ) प्र. यदि श्रुतज्ञान में उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होते हैं तो क्या वे उद्देश यावत् अनुयोग अंगप्रविष्ट श्रुत में होते हैं अथवा अंगबाह्य श्रुत में होते हैं? उ. अंगप्रविष्ट श्रुत में भी उद्देश, समुद्देश अनुज्ञा और अनुयोग होते हैं और अंगबाह्य श्रुत में भी होते हैं। किन्तु यहाँ अंग बाह्य की अपेक्षा अनुयोग किया जाता है। प्र. यदि अंगबाह्य श्रुत में उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होते हैं तो क्या वे उद्देश यावत् अनुयोग कालिकश्रुत में होते हैं अथवा उत्कालिक श्रुत में होते हैं ? उ. कालिकश्रुत में भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होते हैं और उत्कालिकश्रुत में भी होते हैं। किन्तु यहाँ उत्कालिक श्रुत की अपेक्षा अनुयोग किया जाता है। यदि उत्कालिक श्रुत के उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग होते हैं तो क्या वे उद्देश यावत् अनुयोग आवश्यक के होते हैं अथवा आवश्यकव्यतिरिक्त श्रुत के होते हैं ? उ. आवश्यक सूत्र के भी उद्देश, समुद्देश अनुज्ञा और अनुयोग होते हैं और आवश्यक से भिन्न श्रुत के भी होते हैं। किन्तु यहाँ आवश्यक का अनुयोग प्रारम्भ किया जाता है। प. जइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ, किं आवस्सगस्स-उद्देसो जाव अणुओगो य पवत्तइ? अहवा आवस्सगवइरित्तस्स? उ. आवस्सगस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ,आवस्सगवइरित्तस्स वि, इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च आवस्सगस्स अणुओगो। -अणु.सु.२-५ १४३. आवस्सयाइपयनिक्खेवपइण्णाप. जइ आवस्सयस्स अणुओगो आवस्सयण्णं किमंगं अंगाई? सुयक्खंधो, सुयक्खंधा? अज्झयणं, अज्झयणाई? उद्देसगो, उद्देसगा? उ. आवस्सयण्णं णो अंगं, णो अंगाई, सुयक्खंधो,णो सुयक्खंधा, णो अज्झयणं,अज्झयणाई, णो उद्देसगो,णो उद्देसगा। तम्हा आवस्सयं णिक्खिविस्सामि, १४३. आवश्यक आदि पद के निक्षेपकी प्रतिज्ञा प्र. यदि आवश्यक का अनुयोग है तो क्या वह आवश्यक-एक अंग रूप है या अनेक अंग रूप है? एक श्रुतस्कन्ध वाला है या अनेक श्रुतस्कन्ध वाला है? एक अध्ययन वाला है या अनेक अध्ययन वाला है? एक उद्देशक वाला है या अनेक उद्देशक वाला है ? उ. आवश्यक श्रुत एक अंग नहीं है और अनेक अंग भी नहीं है, वह एक श्रुतस्कन्ध वाला है, अनेक श्रुतस्कन्ध वाला नहीं है, एक अध्ययन वाला नहीं है, अनेक अध्ययन वाला है, एक उद्देशक वाला भी नहीं है, अनेक उद्देशक वाला भी नहीं है। आवश्यकसूत्र एक श्रुतस्कन्ध और अनेक अध्ययन वाला है, इसलिए आवश्यक का निक्षेप करूंगा। श्रुत का निक्षेप करूंगा, स्कन्ध का निक्षेप करूंगा, अध्ययन का निक्षेप करूंगा। यदि निक्षेपों का ज्ञाता वस्तु के सभी निक्षेपों को जानता हो तो उसे उन सबका निरूपण करना चाहिए और यदि सभी निक्षेपों को न जानता हो तो चार (नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव) निक्षेप तो करने ही चाहिए। १४४. सामायिक अध्ययन का अनुयोग (आवश्यक सूत्र में) प्रथम सामायिक अध्ययन है और इसके ये चार अनुयोगद्वार है, यथा१. उपक्रम (स्वरूप जानना), २. निक्षेप (स्थापना करना), ३. अनुगम (व्याख्या करना),४. नय (वस्तु के अनेक धर्मों में से एक धर्म का कथन करना)। सुयं णिक्खिविस्सामि, खंधं णिक्खिविस्सामि, अज्झयणं णिक्खिविस्सामि। जत्थ यणंजाणेज्जा,णिक्खेवं णिक्खिवे णिरवसेसं। जत्थ वि य न जाणेज्जा, चउक्कयं निक्खिवे तत्थ ॥१॥ -अणु.सु.६-८ १४४. सामाइय अज्झयणस्स अणुओगो तत्थ पढमज्झयणं सामाइयं तस्स णं इमे चत्तारि अणुओगद्दारा भवति,तं जहा१.उवक्कमे, २.णिक्खेवे,३.अणुगमे, ४.णए। -अणु.सु.७५

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