Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 815
________________ ( ७०८ ७०८ - उ. गोयमा ! नाणी, नो अन्नाणी, नियमा एगनाणी केवलनाणी। सोइंदियलखियाणं जहा इंदियलद्धिया। प. तस्स अलद्धिया णं भंते !जीवा किं नाणी,अन्नाणी? उ. गोयमा ! नाणी वि,अन्नाणी वि। जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी, अत्थेगइया एगनाणी। जे दुन्नाणी ते १.आभिणिबोहियनाणी य, २.सुयनाणी य।. जे एगनाणी ते केवलनाणी। जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी,तं जहा१.मइअन्नाणी य,२.सुयअन्नाणी य। चक्खिदिय-घाणिंदियलद्धियाणं अलद्धियाण य जहेव सोइंदियस्स लखिया अलद्धिया। जिब्भिंदियलद्धियाणं चत्तारि नाणाई, तिण्णि य अन्नाणाणि भयणाए। प. तस्स अलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि। जे नाणी ते नियमा एगनाणी-केवलनाणी। द्रव्यानुयोग-(१)] उ. गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। वे नियमतः (बिना बिकल्प के) एकमात्र केवलज्ञानी हैं। श्रोत्रेन्द्रियलब्धियुक्त जीवों का कथन इन्द्रियलब्धि वाल जीवों के समान हैं। प्र. भन्ते ! श्रोत्रेन्द्रियलब्धिरहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी है? उ. गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, उनमें से कई दो ज्ञान वाले हैं, कई एक ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं, वे-१. आभिनिबोधिकज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी हैं। जो एक ज्ञान वाले हैं, वे केलवज्ञानी हैं। जो अज्ञानी है, वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, यथा१. मति-अज्ञान, २. श्रुत-अज्ञान। चक्षरिन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय-लब्धि युक्त और लब्धिरहित जीवों का कथन श्रोत्रेन्द्रियलब्धि युक्त और लब्धिरहित जीवों के समान है। जिह्वेन्द्रियलब्धि वाले जीवों में चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं। प्र. भन्ते ! जिह्वेन्द्रियलब्धिरहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे नियमतः (बिना विकल्प) एकमात्र केवलज्ञान वाले हैं, जो अज्ञानी हैं वे नियमतः (बिना विकल्प) दो अज्ञान वाले हैं, यथा१. मति-अज्ञान, २. श्रुत-अज्ञान। स्पर्शेन्द्रियलब्धि-युक्त और लब्धिरहित जीवों का कथन इन्द्रियलब्धियुक्त और इन्द्रिय लब्धिरहित जीवों के समान है। १०. उपयोग द्वार प्र. भन्ते ! साकारोपयोग-युक्त जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! उनमें पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं। प्र. भन्ते ! आभिनिबोधिकज्ञान-साकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! उनमें चार ज्ञान भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं। इसी प्रकार श्रुतज्ञान-साकारोपयोग-युक्त जीवों का कथन भी है। अवधिज्ञान-साकारोपयोगयुक्त जीवों का कथन अवधिज्ञान-लब्धियुक्त जीवों के समान है। मनःपर्यवज्ञान-साकारोपयोग-युक्त जीवों का कथन मनःपर्यव-ज्ञानलब्धि युक्त जीवों के समान है। केवलज्ञान-साकारोपयोगयुक्त जीवों का कथन केवलज्ञानलब्धि-युक्त जीवों के समान है। मति-अज्ञान-साकारोपयोगयुक्त जीवों में तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी, तं जहा १. मइअन्नाणी य,२.सुयअन्नाणी य। फासिंदियलद्धियाणं अलद्धियाणं जहा इंदियलद्धिया य अलद्धिया य। -विया. स.८, उ.२, सु.८२-११६ १०. उवओगदारंप. सागारोवउत्ताणं भंते ! जीवा किं नाणी,अन्नाणी? उ. गोयमा ! पंच नाणाई, तिण्णि अन्नाणाई भयणाए। प. आभिणिबोहियनाणसागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा !चत्तारि नाणाई भयणाए। एवं सुयनाणसागारोवउत्ता वि। ओहिनाणसागारोवउत्ता जहा ओहिनाणलद्धिया। मणपज्जवनाणसागारोवउत्ता जहा मणपज्जवनाणलद्धिया। केवलनाणसागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धिया। मइअन्नाणसागारोवउत्ताणं तिण्णि अन्नाणाई भयणाए।

Loading...

Page Navigation
1 ... 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910