________________
७१६
उ. गोयमा !१. सव्वत्थोवा मणपज्जवनाणपज्जवा,
२. विभंगनाणपज्जवा अणंतगुणा, ३. ओहिनाणपज्जवा अणंतगुणा, ४. सुयअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा, ५. सुयनाणपज्जवा विसेसाहिया, ६. मइअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा, ७. आभिणिबोहियनाणपज्जवा विसेसाहिया, ८. केवलनाणपज्जवा अणंतगुणा।
-विया. स. ८, उ. २, सु. १५६-१६२ १२१. भावियप्पणो मिच्छद्दिट्ठिस्स ऽणगारस्स जाणणं पासणं-
प. अणगारे णं भन्ते ! भावियप्पा मायी मिच्छद्दिट्ठी
वीरियलद्धीए, वेउव्वियलद्धीए, विभंगनाणलद्धीए वाणारसिं नगरिं समोहए, समोहण्णित्ता रायगिहे नगरे
रूवाई जाणइ पासइ? उ. हंता, गोयमा ! जाणइ,पासइ।
द्रव्यानुयोग-(१) उ. गौतम ! १. सबसे अल्प मनःपर्यवज्ञान के पर्याय है,
२. (उनसे) विभंगज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, ३. (उनसे) अवधिज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, ४. (उनसे) श्रुत अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, ५. (उनसे) श्रुतज्ञान के पर्याय विशेषाधिक हैं, ६. (उनसे) मति-अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, ७. (उनसे) आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्याय विशेषाधिक है, ८. (उनसे) केवलज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं।
प. से भन्ते ! किं तहाभाव जाणइ पासइ ? अण्णहाभावं
जाणइ पासइ ? उ. गोयमा ! णो तहाभावं जाणइ पासइ, अण्णहाभावं
जाणइ पासइ। प. से केणढेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ
“णो तहाभावं जाणइ पासइ, अण्णहाभावं जाणइ
पासइ ?" उ. गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ
एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए, समोहण्णित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाई जाणामि पासामि, से से दंसणे विवच्चासे भवइ, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"णो तहाभावं जाणइ पासइ, अण्णहाभावं जाणइ
पासइ।" प. अणगारे णं भन्ते ! भावियप्पा मायी मिच्छद्दिट्ठी जाव
रायगिहे नगरे समोहए, समोहण्णित्ता वाणारसीए
नगरीए रूवाइं जाणइ पासइ ? उ. हता, गोयमा !जाणइ, पासइ।
ते चेव जाव तस्स णं एवं होइ‘एवं खलु अहं वाणारसी ए नगरीए समोहए, रायगिहे नगरे रूवाई जाणामि पासामि, से से दसणे विवच्चासे भवइ, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ“णो तहाभाव जाणइ पासइ, अण्णहाभावं जाणइ पासइ।"
१२१. भावितात्मा मिथ्यादृष्टि अनगार का जानना-देखना
प्र. भन्ते ! राजगृह नगर में रहा हुआ मायी मिथ्यादृष्टि
भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धि से, वैक्रियलब्धि से और विभंगज्ञानलब्धि से वाराणसी नगरी की विकुर्वणा करके
क्या तद्गत रूपों को जानता-देखता है ? उ. हाँ, गौतम ! वह (उन पूर्वोक्त रूपों को) जानता और
देखता है। प्र. भन्ते ! क्या वह यथाभाव से जानता-देखता है, या
अन्यथाभाव से जानता-देखता है ? उ. गौतम ! वह यथाभाव से नहीं जानता-देखता, किन्तु
अन्यथाभाव से जानता-देखता है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
वह यथाभाव से नहीं जानता-देखता, किन्तु अन्यथाभाव से
जानता- देखता है? उ. गौतम ! उसके मन में इस प्रकार का विचार होता है कि
"वाराणसी नगरी में रहे हुए मैंने राजगृह नगर की विकुर्वणा की है और मैं तद्गत रूपों को जानता-देखता हूँ।" इस प्रकार उसका दर्शन विपरीत होता है। इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि“वह तथाभाव से नहीं जानता-देखता, किन्तु अन्यथाभाव
से जानता-देखता है। प्र. भन्ते ! वाराणसी में रहा हुआ मायी मिथ्यादृष्टि भावितात्मा
अनगार यावत् राजगृह नगर की विकुर्वणा करके वाराणसी
के रूपों को जानता और देखता है ? उ. हाँ, गौतम ! वह उन रूपों को जानता और देखता है यावत
उस साधु के मन में इस प्रकार का विचार होता है कि"राजगृह नगर में रहा हुआ मैं वाराणसी नगरी की विकुर्वणा करके तद्गत रूपों को जानता और देखता हूँ।" इस प्रकार उसका दर्शन विपरीत होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"वह यथाभाव से नहीं जानता-देखता, किन्तु अन्यथाभाव से जानता-देखता है।"