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ज्ञान अध्ययन
अत्थेगइए देवं पि पासइ जाणं पिपासइ
अत्थेगइए नो देवं पासइ, नो जाणं पासइ प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा देविं वेउव्वियसमुग्धाएणं
समोहयं जाणरूवेणं जायमाणिं जाणइ पासइ?
उ. गोयमा !१.अत्थेगइए देवि पासइ,णो जाणं पासइ,
२. अत्यंगइए जाणं पासइ, नो देविं पासइ, ३. अत्थेगइए देवि पि पासइ, जाणं पिपासइ,
४.अत्थेगइए नो देविं पासइ, नो जाणं पासइ। प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा देवं सदेवीयं
वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहए जाणरूवेणं जायमाणं
जाणइ पासइ? उ. गोयमा ! १. अत्थेगइए देवं सदेवीयं पासइ, णो जाणं
पासइ, २. अत्थेगइए जाणं पासइ,णो देवं सदेवीयं पासइ,
३. अत्थेगइए देवं सदेवीयं पिपासइ,जाणं पि पासइ,
४. अत्थेगइएणो देवं सदेवीयं पासइ,णो जाणं पासइ।
-विया. स. ३, उ. ४, स. १-३ १२४. भावियप्पमणगारेणं रुक्खस्स अंतो-बाहिं पासण परूवणं
। ७१९ ) कोई देव को भी देखता है और यान को भी देखता है,
कोई न देव को देखता है और न यान को देखता है। प. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार, वैक्रिय समुद्घात से
समवहत हुई और यानरूप से जाती हुई देवी को
जानता-देखता है? उ. गौतम !१. कोई देवी को तो देखता है, किन्तु यान को नहीं
देखता है, २.कोई यान को देखता है, किन्तु देवी को नहीं देखता है, ३. कोई देवी को भी देखता है और यान को भी देखता है,
४. कोई न देवी को देखता है और न यान को देखता है, प. भन्ते ! क्या भावितात्मा अनगार, वैक्रिय समुद्घात से
समवहत तथा यानरूप से जाते हुए, देवीसहित देव को
जानता-देखता है? उ. गौतम !१. कोई देवीसहित देव को तो देखता है किन्तु यान
को नहीं देखता है, २. कोई यान को देखता है किन्तु देवीसहित देव को नहीं
देखता है, ३. कोई देवीसहित देव को भी देखता है और यान को भी
देखता है, ४. कोई न देवीसहित देव को देखता है और न यान को
देखता है। १२४. भावितात्मा अनगार द्वारा वृक्ष के अन्दर और बाहर देखने
का प्ररूपणप. भन्ते ! भावितात्मा अनगार क्या वृक्ष के आन्तरिक भाग को
देखता है या बाह्य भाग को देखता है ? उ. गौतम ! १. कोई वृक्ष के आन्तरिक भाग को तो देखता है, किन्तु बाह्य भाग को नहीं देखता है, २. कोई वृक्ष के बाह्य भाग को देखता है, किन्तु आन्तरिक
भाग को नहीं देखता है, ३. कोई वृक्ष के आन्तरिक भाग को भी देखता है और बाहर
भाग को भी देखता है, ४. कोई वृक्ष के आन्तरिक भाग को नहीं भी देखता है और
बाह्य भाग को भी नहीं देखता है। १२५. भावितात्मा अनगार द्वारामूलादि देखने का प्रखपण- .
प. भन्ते ! भावितात्मा अनगार क्या वृक्ष के मूल को देखता है
या कन्द को देखता है? उ. गौतम ! कोई मूल को तो देखता है, किन्तु कन्द को नहीं
देखता है, कोई कन्द को देखता है, किन्तु मूल को नहीं देखता है, कोई मूल को भी देखता है और कन्द को भी देखता है,
कोई न मूल को देखता है और न कन्द को देखता है। प्र. भन्ते ! भावितात्मा अणगार क्या वृक्ष के मूल को देखता है
या स्कन्ध को देखता है? उ. गौतम ! चार-चार भंग पूर्ववत् कहने चाहिए। ...
प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं अंतो पासइ,
बाहिं पासइ? उ. गोयमा !१.अत्थेगइए रुक्खस्स अंतो पासइ,णो बाहिं
पासइ, २. अत्थेगइए रुक्खस्स बाहिं पासइ,णो अंतो पासइ,
३. अत्थेगइए रुक्खस्स अंतो पि पासइ, बाहिं पि
पासइ, ४. अत्थेगइए रुक्खस्स णो अंतो पासइ, णो बाहिं पासइ।
-विया. स.३, उ.४, सु.४/१ १२५. भावियप्पमणगारेणं मूलाई पासण परूवणं
प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं मूलं पासइ,
कंदं पासइ? उ. गोयमा ! १. अत्थेगइए रुक्खस्स मूलं पासइ, णो कंद
पासइ, २. अत्थेगइए रुक्खस्स कंदं पासइ,णो मूलं पासइ, ३. अत्थेगइए रुक्खस्स मूलं पिपासइ, कंदं पिपासइ,
४. अत्थेगइए रुक्खस्स णो मूलं पासइ,णो कंदं पासइ। प. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं मूलं पासइ,
खंधं पासइ? उ. गोयमा ! चउभंगो।