________________
७१२
३. कालओ णं उज्जुमई जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं वि पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं अतीयमणागयं वा कालं जाणइ पासइ, तं चेव विउलमई अब्भहियतरागं जाव वितिमिरतरागं जाणइ पासइ। ४. भावओ णं उज्जुमई अणंते भावे जाणइ पासइ, सव्वभावाणं अणंतभागं जाणइ पासइ,तं चेव विउलमई अब्भहियतरागंजाव वितिमिरतरागं जाणइ पासइ।
द्रव्यानुयोग-(१) ३. काल से ऋजुमति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग को, उत्कृष्ट भी पल्योपम के असंख्यातवें भाग भूत और भविष्यत् काल को जानता व देखता है। उसी काल को विपुलमति उससे कुछ अधिक यावत् सुस्पष्ट जानता व देखता है। ४. भाव से ऋजुमति अनन्त भावों को जानता व देखता है, परन्तु सब भावों के अनन्तवें भाग को ही जानता व देखता है। उन्हीं भावों को विपुलमति कुछ अधिक यावत् सुस्पष्ट
जानता व देखता है। प्र. भन्ते ! केवलज्ञान का विषय कितना कहा गया है? उ. गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है, यथा
१. द्रव्य से, २. क्षेत्र से, ३. काल से, ४. भाव से। १. द्रव्य से केवलज्ञानी सर्वद्रव्यों को जानता व देखता है।
प. केवलनाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा
१. दव्वओ,२. खेत्तओ,३.कालओ, ४.भावओ। १. तत्थ दव्वओ णं केवलनाणी सव्वदव्वाइं जाणइ
पासइ। २. खेत्तओ णं केवलनाणी सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ।
३. कालओणं केवलनाणी सव्वं कालं जाणइ पासइ।
४. भावओणं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ२।
प. मइअण्णाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! से समासओ चउव्विहे पण्णते,तं जहा
१. दव्वओ,२. खेत्तओ, ३. कालओ, ४. भावओ। दव्वओ णं मइअण्णाणी मइअण्णाणपरिगयाई दव्वाई जाणइ पासइ। एवं खेत्तओ कालओ भावओणं मइअण्णाण परिगयाई
खेतं कालं भावाइंच जाणइ पासइ। प. सुयअण्णाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते? 'उ. गोयमा ! से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा
१.दव्वओ,२.खेत्तओ, ३.कालओ,४.भावओ। दव्वओ णं सुयअण्णाणी सुयअण्णाणपरिगयाई दव्वाई आघवेइ पण्णवेइ, परूवेइ। एवं खेत्तओ, कालओ, भावओ णं सुयअण्णाणी सुयअण्णाणपरिगए खेते काले भावे आघवेइ, पण्णवेइ,
परूवेइ। प. विभंगणाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा
१.दव्वओ,२.खेत्तओ,३.कालओ,४.भावओ। दव्वओ णं विभंगणाणी विभंगणाणपरिगयाइं दव्वाई जाणइ पासइ। एवं खेत्तओ कालओ भावओ णं विभंगणाणी विभंगणाणपरिगए खेत्ते काले भावे जाणइ पासइ।
-विया. स.८, उ. २, सु.१४४-१५१
२. क्षेत्र से केवलज्ञानी सर्व क्षेत्र (लोकालोक) को जानता
व देखता है। ३. काल से केवलज्ञानी तीनों भूत, वर्तमान और भविष्यत्
कालों को जानता व देखता है। ४. भाव से केवलज्ञानी सर्व द्रव्यों के सर्व भावों-पर्यायों को
जानता व देखता है। प्र. भन्ते ! मति अज्ञान का विषय कितना कहा गया है? उ. गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है, यथा
१. द्रव्य से, २. क्षेत्र से, ३. काल से, ४. भाव से। द्रव्य से मति अज्ञानी मति अज्ञान-परिगत द्रव्यों को जानता
और देखता है। इसी प्रकार क्षेत्र से काल से भाव से मति अज्ञानी मति अज्ञान
परिगत क्षेत्र काल और भावों को जानता व देखता है। प्र. भन्ते ! श्रुत अज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? उ. गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है, यथा
१. द्रव्य से, २. क्षेत्र से, ३. काल से, ४. भाव से। द्रव्य से श्रुत अज्ञानी श्रुत अज्ञान के विषयभूत द्रव्यों का कथन करता है, बतलाता है और प्ररूपणा करता है। इसी प्रकार क्षेत्र से, काल से और भाव से श्रुत अज्ञानी श्रुत अज्ञान के विषयभूत क्षेत्र काल और भावों का कथन
करता है, बतलाता है और प्ररूपणा करता है। प्र. भन्ते ! विभंगज्ञान का विषय कितना कहा गया है? उ. गौतम ! वह संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है, यथा
१. द्रव्य से, २. क्षेत्र से, ३. काल से, ४. भाव से। द्रव्य की अपेक्षा विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयगत द्रव्यों को जानता-देखता है। इसी प्रकार क्षेत्र काल और भाव की अपेक्षा विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयगत क्षेत्र, काल और भावों को जानतादेखता है।
१. नंदी.,सु.३७
२. नंदी.,सु.४३