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३६. कालिकश्रुत के विच्छिन्न होने की विचारणाप्र. भन्ते ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी
काल में कितने तीर्थकर हुए हैं ? उ. गौतम ! चौवीस तीर्थंकर हुए हैं, यथा
१. ऋषभ यावत् २४. वर्धमान। प्र. भन्ते ! इन चौवीस तीर्थंकरों के जिनान्तर (तीर्थंकरों के
अन्तरकाल) कितने कहे गए हैं? उ. गौतम ! इनके तेईस जिनान्तर कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! इन तेईस जिनान्तरों में से किसमें कितने समय तक
कालिकश्रुत का विच्छेद कहा गया है ? उ. गौतम ! इन तेईस जिनान्तरों में से पहले और पीछे के
आठ-आठ जिनान्तरों में कालिकश्रुत अविच्छिन्न कहा गया है।
मध्य के सात जिनान्तरों में कालिकश्रुत विच्छिन्न कहा गया है। किन्तु दृष्टिवाद तो सभी जिनान्तरों में विच्छिन्न हुआ है।
ज्ञान अध्ययन ३६. कालियसुयस्स विच्छेय वियारणाप. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए
कइ तित्थयरा पण्णत्ता? उ. गोयमा चउव्वीसं तित्थयरा पण्णत्ता,तं जहा
१.उसभ जाव २४ वड्ढमाणा। प. एएसि णं भंते ! चउवीसाए तित्थयराणं कइ जिणंतरा
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! तेवीसं जिणंतरा पण्णत्ता। प. एएसु णं भंते ! तेवीसाए जिणंतरेसु कस्स कहिं
कालियसुयस्स वोच्छेदे पण्णत्ते? गोयमा ! एएसु णं तेवीसाए जिणंतरेसु पुरिमपच्छिमएसु अट्ठसु-अट्ठसु जिणंतरेसु, एत्थ णं कालियसुयस्स अवोच्छेदे पण्णत्ते, मज्झिमएसु सत्तसु जिणंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स वोच्छेदे पण्णत्ते, सव्वस्थ विणं वोच्छिन्ने दिट्ठिवाए।
__-विया. स. २०, उ.८, सु. ८-९ ३७. अंगबाहिरसुयं
प. से किं तं अंगबाहिरं? उ. अंगबाहिरं दुविहं पण्णत्तं,तं जहा-.
१. आवस्सगं, २. आवस्सगवइरित्तं च। प. से किं तं आवस्सगं? उ. आवस्सगं छव्विहं पण्णत्तं, तं जहा
१. सामाइयं, २. चउवीसत्थओ, ३. वंदणयं,
४. पडिक्कमणं, ५. काउस्सग्गो, ६. पच्चक्खाणं।
सेतं आवस्सगं। प. से किं तं आवस्सगवइरित्तं? उ. आवस्सगवइरित्तं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा१. कालियं च, २. उक्कालियं च।२
-नंदी.सु. ८०-८२ ३८. उक्कालियसुयं
प. से किं तं उक्कालियं? उ. उक्कालियं अणेगविहं पण्णत्तं,तं जहा
१. दसवेयालियं, २. कप्पियाकप्पियं, ३. चुल्लकप्पसुयं, ४. महाकप्पसुयं, ५. ओवाइयं,
६. रायपसेणियं, ७. जीवाभिगमो, ८. पण्णवणा, ९. महापण्णवणा, १०. पमायप्पमायं, ११. नंदी,
१२. अणुओगदाराई, १३. देविंदत्थओ, १४. तंदुलवेयालियं, १५. चंदावेज्झयं,
१६. सूरपण्णत्ती,
३७. अंगबाह्यश्रुत
प्र. अंगबाह्य-श्रुत कितने प्रकार का है ? उ. अंगबाह्य-श्रुत दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. आवश्यक, २. आवश्यक व्यतिरिक्त। प्र. आवश्यक-श्रुत क्या है? उ. आवश्यक-श्रुत छह प्रकार का कहा गया है, यथा
१. सामायिक, २. चतुर्विंशतिस्तव, ३. वंदना,
४. प्रतिक्रमण, ५. कायोत्सर्ग, ६. प्रत्याख्यान।
यह आवश्यक श्रुत है। प्र. आवश्यक-व्यतिरिक्त श्रुत कितने प्रकार का है?. उ. आवश्यक-व्यतिरिक्त श्रुत दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. कालिक,
२. उत्कालिक।
३८. उत्कालिकश्रुत
प्र. उत्कालिक श्रुत कितने प्रकार का है? उ. उत्कालिक श्रुत अनेक प्रकार का कहा गया है, यथा
१. दशवैकालिक, २. कल्पिताकल्पित, ३. चुल्लकल्पश्रुत, ४. महाकल्पश्रुत, ५. औपपातिक, ६. राजप्रश्नीय, ७. जीवाभिगम, ८. प्रज्ञापना, ९. महाप्रज्ञापना, १०. प्रमादाप्रमाद, ११. नन्दी,
१२. अनुयोगद्वार, १३. देवेन्द्रस्तव, १४. तन्दुलवैचारिक, १५. चन्द्रविद्या, १६. सूर्यप्रज्ञप्ति
१. ठाणं. अ.२, उ.१, सु. ६०/२२
२. ठाणं अ.२, उ.१, सु. ६०/२३