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ज्ञान अध्ययन
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प. दं. १७.बेइंदिया णं भंते! किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि।
जे नाणी ते नियमा दुनाणी,तं जहा१.आभिणिबोहियनाणी य,२.सुयनाणी य। जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी,तं जहा१.आभिणिबोहियअन्नाणी य, २. सुयअन्नाणी य'। दं.१८-१९.एवं तेइंदिया चउरिंदिया विरे।
प. दं. २०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया णं, भंते! किं,
नाणी,अन्नाणी? उ. गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि।
जे नाणी ते अत्थेगइया दुनाणी, अत्थेगइया तिन्नाणी। एवं तिण्णि नाणाणि तिण्णि अण्णाणाणि य भयणाए।
-विया. स.८, उ.२, सु.३१-३४ प. सम्मुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खजोणिय जलयराणं भंते !
किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! णाणी वि, अण्णाणी वि,
जे नाणी ते नियमा दुन्नाणी,तं जहा१.आभिणिबोहिय णाणी य,२.सुयणाणी य, जे अण्णाणी ते नियमा दुअन्नाणी,तं जहा१.आभिणिबोहिय अन्नाणी य, २. सुय अन्नाणि य। थलयराणं खहयराणं एवं चेव।
प्र. दं. १७. भन्ते ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं।
जो ज्ञानी हैं, वे बिना विकल्प के दो ज्ञान वाले हैं, यथा१.आभिनिबोधिकज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी। जो अज्ञानी हैं, वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, यथा१. आभिनिबोधिकअज्ञानी, २. श्रुत-अज्ञानी। दं. १८-१९. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और १९: चतुरिन्द्रिय
जीवों के लिए जानना चाहिए। प्र. दं. २०. भन्ते ! पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव ज्ञानी हैं या
अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं।
जो ज्ञानी हैं, उनमें से कितने ही दो ज्ञान वाले हैं
और कितने ही तीन ज्ञान वाले हैं। इस प्रकार तीन ज्ञान और तीन अज्ञान (विकल्प) से.
जानने चाहिए। प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर क्या
ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं,
जो ज्ञानी हैं वे नियमतः दो ज्ञान वाले है, यथा१. आभिनिबोधिक ज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी, जो अज्ञानी हैं वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, यथा१. आभिनिबोधिक अज्ञानी. २. श्रुत अज्ञानी (सम्मूर्छिम) स्थलचरों खेचरों के लिए भी इसी प्रकार
कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर क्या ज्ञानी हैं
या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं।
जो ज्ञानी हैं वे कितने ही दो ज्ञान वाले हैं और कितने ही तीन ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं वे नियमतः १. आभिनिबोधिक ज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे नियमतः १.आभिनिबोधिक ज्ञानी, २.श्रुतज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी हैं। इसी प्रकार अज्ञानी भी जानने चाहिए। (गर्भज) स्थलचरों खेचरों के लिए भी इसी प्रकार कहना चाहिए। दं.२१. जिस प्रकार औधिक जीवों का कथन है उसी प्रकार मनुष्यों में भी पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान विकल्प से कहने
चाहिए। प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम मनुष्य क्या ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! ज्ञानी नहीं हैं, किन्तु अज्ञानी हैं। वे नियमतः दो
अज्ञान वाले हैं, यथा
प. गब्भवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिक्खजोणिय जलयराणं भंते
! किं नाणी अन्नाणी? उ. गोयमा ! णाणी वि, अण्णाणी वि।
जे णाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी, अत्थेगइया तिन्नाणी।
जे दुन्नाणी ते णियमा-१. आभिणिबोहियणाणी य, २.सुयणाणी य । जे तिण्णाणी ते नियमा-१. आभिनिबोहियणाणी, २.सुयणाणी,३.ओहिणाणी य। एवं अण्णाणि वि। थलयराणं खहयराणं एवं चेव।
-जीवा. पडि.3, सु. ३५-४० दं. २१. मणुस्सा जहा जीवा तहेव, पंच नाणाणि तिण्णि अण्णाणाणि य भयणाए। -विया. स. ८, उ. २, सु.३५
प. सम्मुच्छिम मणुस्सा णं भन्ते ! किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! णो णाणी, अण्णाणी ते नियमा दु अण्णाणि,
तं जहा
१. जीवा पडि.१,सु.२८ २. जीवा.पडि.१,सु.२९-३०
३. जीवा. पडि.३, सु. ९७(१) ४. जीवा.पडि.१,सु.४१