Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 808
________________ ज्ञान अध्ययन ७०१ उ. गोयमा ! दो नाणा, दो अन्नाणा नियमा। प. मणुस्सगइया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! तिण्णि नाणाइं भयणाए, दो अन्नाणाई नियमा। देवगइया जहा निरयगइया। प. सिद्धगइया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा !जहा सिद्धा। -विया. स.८, उ. २, सु.३९-४३ xx xx २. इंदियदारंप. सइंदिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! चत्तारि नाणाई तिण्णि अन्नाणाई भयणाए। प. एगिंदिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा पुढविक्काइया। बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाणं दो नाणा, दो अन्नाणा नियमा। पंचेंदिया जहा सइंदिया। उ. गौतम ! वे नियमतः (बिना विकल्प के) दो ज्ञान या दो अज्ञान वाले हैं। प्र. भन्ते ! मनुष्य गति के जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी है ? उ. गौतम ! उनके भजना (विकल्प) से तीन ज्ञान होते हैं और नियमतः दो ज्ञान होते हैं। देवगति के जीवों में ज्ञान और अज्ञान का कथन नरक गति के जीवों के समान है। प्र. भन्ते ! सिद्धगति के जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! उनका कथन सिद्धों के समान है। xx २. इन्द्रिय द्वारप्र. भन्ते ! सेन्द्रिय जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! उनके चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं। प्र. भन्ते ! एक इन्द्रिय वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान है (अर्थात् अज्ञानी हैं) दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय वाले जीवों में नियमतः दो ज्ञान और दो अज्ञान होते हैं। पांच इन्द्रियों वाले जीवों का कथन सेन्द्रिय जीवों की तरह कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! अनिन्द्रिय जीव ज्ञानी है या अज्ञानी है? उ. गौतम ! उनका कथन सिद्धों के समान जानना चाहिए। 1. xx ३. काय द्वारप्र. भन्ते ! सकायिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! सकायिक जीवों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं। पृथ्वीकायिक से वनस्पतिकायिक पर्यन्त ज्ञानी नहीं, अज्ञानी हैं। वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, यथा१. मतिअज्ञान, २. श्रुतअज्ञान। त्रसकायिक जीवों का कथन सकायिक जीवों के समान है। प्र. भन्ते ! अकायिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! इनका कथन सिद्धों के समान जानना चाहिए। प. अणिंदिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा सिद्धा -विया. स. ८, उ. २, सु. ४४-४८ xx ३. कायदारं प. सकाइया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! पंच नाणाणि, तिण्णि अन्नाणाई भयणाए। पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया नो नाणी, अन्नाणी। नियमा दुअन्नाणी,तं जहा१. मइअन्नाणी य,२. सुयअन्नाणी या तसकाइया जहा सकाइया। प. अकाइया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा सिद्धा। -विया. स.८, उ.२, सु. ४९-५२ xx xx ४. सुहुमदारं प. सुहुमा णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा पुढविकाइया। प. बायराणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा सकाइया। प. नो सुहुमानोबायराणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? ४. सूक्ष्म द्वारप्र. भन्ते ! सूक्ष्म जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! इनका कथन पृथ्वीकायिक जीवों के समान है। प्र. भन्ते ! बादर जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! इनका कथन सकायिक जीवों के समान है। प्र. भन्ते ! नो-सूक्ष्म-नो-बादर जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? १. जीवा. पडि.१,सु. १३ (१५)

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