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ज्ञान अध्ययन
प. तस्स अलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी?
उ. गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि।
जे नाणी ते नियमा एगनाणी, केवलनाणी। जे अन्नाणी तेसिं तिण्णि अन्नाणाई भयणाए। ।
एवं सुयनाणलद्धीया वि।
तस्स अलद्धीया वि जहा आभिणिबोहियनाणस्स
अलद्धीया। प. ओहिनाणलद्धीया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! नाणी, नो अन्नाणी।
अत्थेगइया तिण्णाणी अत्थेगइया चउनाणी। जे तिण्णाणी ते १.आभिणिबोहियनाणी,२. सुयनाणी, ३.ओहिनाणी। जे चउनाणी ते १.आभिणिबोहियनाणी,२. सुयनाणी,
३.ओहिनाणी,४.मणपज्जवनाणी। प. तस्स अलद्धीया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी?
उ. गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि।
ओहिनाणवज्जाइं चत्तारि नाणाई तिण्णि अन्नाणाई
भयणाए। प. मणपज्जवनाणलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी,
अन्नाणी? उ. गोयमा ! नाणी, नो अन्नाणी।
अत्थेगइया तिण्णाणी, अत्थेगइया चउनाणी। जे तिण्णाणी ते-१.आभिणिबोहियनाणी, २.सुयनाणी,३.मणपज्जवनाणी। जे चउनाणी ते-१.आभिणिबोहियनाणी,
२.सुयनाणी,३.ओहिनाणी,४. मणपज्जवनाणी। प. तस्स अलद्धीया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी?
७०५ प्र. भन्ते ! आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि-रहित जीव ज्ञानी है या
अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी है।
जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः एकमात्र केवलज्ञानी हैं। जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं। श्रुतज्ञानलब्धि वाले जीवों का कथन भी इसी प्रकार आभिनिबोधिक ज्ञानलब्धि वाले जीवों के समान है। श्रुतज्ञानलब्धिरहित जीवों का कथन आभिनिबोधिक
ज्ञानलब्धिरहित जीवों के समान है। प्र. भन्ते ! अवधिज्ञानलब्धियुक्त जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी है ? उ. गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं।
उनमें से कई तीन ज्ञान वाले हैं और कई चार ज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं, वे-१. आभिनिबोधिकज्ञान, २. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान वाले हैं, जो चार ज्ञान वाले हैं, वे-१. आभिनिबोधिकज्ञान,
२. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान, ४. मनःपर्यवज्ञान वाले हैं। प्र. भन्ते ! अवधिज्ञानलब्धि से रहित जीव ज्ञानी हैं या ___अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं।'
उनमें अवधिज्ञान के सिवाय चार ज्ञान और तीन अज्ञान
भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं। प्र. भन्ते ! मनःपर्यवज्ञानलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं या
अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं है।
उनमें से कितने ही तीन ज्ञान वाले हैं, कितने ही चार ज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं, वे-१. आभिनिबोधिकज्ञान, २. श्रुतज्ञान ३. मनः पर्यवज्ञान वाले हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं, वे-१. आभिनिबोधिकज्ञान,
२. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान, ४. मनःपर्यवज्ञान वाले हैं। प्र. भन्ते ! मनःपर्यवज्ञान लब्धि से रहित जीव ज्ञानी हैं या
अज्ञानी है? उ. गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं।
उनमें मनःपर्यवज्ञान के सिवाय चार ज्ञान और तीन अज्ञान
भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं। प्र. भन्ते ! केवलज्ञानलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं वे नियमतः एकमात्र
केवलज्ञान वाले हैं। प्र. भन्ते ! केवलज्ञानलब्धिरहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी.भी हैं। उनमें केवलज्ञान को छोड़कर शेष चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं।
उ. गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि,
मणपज्जवनाणवज्जाइं चत्तारि नाणाइं तिण्णि अन्नाणाई
भयणाए। प. केवलनाणलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! नाणी, नो अन्नाणी, नियमा
एगनाणी-केवलनाणी। प. तस्स अलद्धिया णं भंते !जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि।
केवलनाणवज्जाइं चत्तारि नाणाई तिण्णि अन्नाणाई भयणाए।