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ज्ञान अध्ययन
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प. दं. २३-२४. अपज्जत्ता जोइसिय वेमाणिया णं भंते !
किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! तिण्णि नाणा, तिण्णि अन्नाणा नियमा। प. नो पज्जत्तगा-नो अपज्जत्तगाणं भंते ! जीवा किं नाणी,
अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा सिद्धा। -विया. स. ८, उ. २, सु. ५६-७०
प्र. दं.२३-२४. भन्ते ! अपर्याप्त ज्योतिष्क और वैमानिक देव
ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! उनमें तीन ज्ञान या तीन अज्ञान नियमतः होते हैं। प्र. भन्ते ! नो पर्याप्त-नो-अपर्याप्त जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
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६. भवत्थदारंप. निरयभवत्था णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नागी? उ. गोयमा ! जहा निरयगइया।
प. तिरियभवत्था णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! तिण्णि नाणा, तिण्णि अन्नाणा भयणाए।
उ. गौतम ! इनका कथन सिद्ध जीवों के समान है।
xx ६. भवत्थ द्वारप्र. भन्ते ! भवस्थ नैरयिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी है ? उ. गौतम ! इनके विषय में नरक गति के जीवों के समान कहना
चाहिए। प्र. भन्ते ! भवस्थ तिर्यंच जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! उनमें तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से
होते हैं। प्र. भन्ते ! भवस्थ मनुष्य जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! वे सकायिक जीवों के समान हैं। प्र. भन्ते ! भवस्थ देव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! इनका कथन भवस्थ नैरयिक जीवों के समान है।
अभवस्थ जीवों का कथन सिद्धों के समान है।
प. मणुस्सभवत्था णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा सकाइया। प. देवभवत्था णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा निरयभवत्था।
अभवत्था जहा सिद्धा। -विया. स.८, उ. २, सु.७१-७५
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७. भवसिद्धियदारंप. भवसिद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा सकाइया। प. अभवसिद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! नो नाणी अन्नाणी, तिण्णि अन्नाणाई भयणाए।
७. भवसिद्धिक द्वारप्र. भन्ते ! भवसिद्धिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! वे सकायिक जीवों के समान हैं। प्र. भन्ते ! अभवसिद्धिक जीव ज्ञनी हैं या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! ये ज्ञानी नहीं हैं, किन्तु अज्ञानी हैं। इनमें तीन
अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं। प्र. भन्ते ! नो भवसिद्धिक-नो अभवसिद्धिक जीव ज्ञानी हैं या
अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! वे सिद्ध जीवों के समान हैं।
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प. नो भवसिद्धिया-नो अभवसिद्धिया णं भंते ! जीवा किं
नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा सिद्धा। -विया. स.८, उ. २, सु.७६-७८ 1 xx
xx ८. सन्निदारप. सण्णी णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! जहा सइंदिया।
असण्णी जहा बेइंदिया। नो सण्णी, नो असण्णी जहा सिद्धा।
-विया.स.८,उ.२,सु.७९-८१ xxxx ९. लद्धिदारंप. कइविहाणं भंते ! लद्धी पण्णता? उ. गोयमा ! दसविहा लद्धी पण्णत्ता,तं जहा
१. नाणलद्धी, २. दंसणलद्धी, ३. चरित्तलद्धी, ४. चरित्ताचरित्तलद्धी ५. दाणलद्धी, ६. लाभलद्धी,
८. संज्ञी द्वारप्र. भन्ते ! संज्ञी जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! सेन्द्रिय जीवों के समान हैं।
असंज्ञी जीव द्वीन्द्रिय जीवों के समान हैं। नो-संज्ञी-नो-असंज्ञी जीव सिद्ध जीवों के समान है।
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९. लब्धि द्वारप्र. भन्ते ! लब्धि कितने प्रकार की कही गई हैं ? उ. गौतम ! लब्धि दस प्रकार की कही गई हैं, यथा
१. ज्ञानलब्धि, २. दर्शनलब्धि, . ३. चारित्रलब्धि, ४. चारित्राचारित्रलब्धि, ५. दानलब्धि, ६. लाभलब्धि,