Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 805
________________ ६९८ जे अन्नाणी ते अत्थेगइया दुअन्नाणी, अत्थेगइया तिअन्नाणी। जे दुअन्नाणी ते १.मइअन्नाणी य, २.सुयअन्नाणीय। जे तिअन्नाणी ते १. मइअन्नाणी य, २.सुयअन्नाणी य,३.विभंगनाणी य। -विया. स. ८ उ.२, सु.२९ द्रव्यानुयोग-(१) जो अज्ञानी हैं, उनमें से कुछ जीव दो अज्ञान वाले हैं, कुछ जीव तीन अज्ञान वाले हैं। जो जीव दो अज्ञान वाले हैं, वे-१. मति-अज्ञानी, २. श्रुतअज्ञानी है। जो जीव तीन अज्ञान वाले हैं, वे-१. मति-अज्ञानी, २. श्रुत-अज्ञानी, ३. विभंगज्ञानी हैं। xx xx प्र. दं.१. भन्ते ! नैरयिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! नैरयिक जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। उनमें जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः तीन ज्ञान वाले हैं, यथा१. आभिनिबोधिकज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी। जो अज्ञानी हैं उनमें से कुछ दो अज्ञान वाले हैं, कुछ तीन अज्ञान वाले हैं। इस प्रकार तीन अज्ञान (विकल्प) से जानने चाहिए। प. दं.१.नेरइया णं भंते ! किं नाणी, अन्नाणी? उ. गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि। जे नाणी ते नियमा तिन्नाणी,तं जहा१. आभिणिबोहियनाणी य, २. सुयनाणी य, ३. ओहिनाणी य। जे अन्नाणी ते अत्थेगइया दुअन्नाणी, अत्थेगइया तिअन्नाणी। एवं तिण्णि अण्णाणाणि भयणाए। -विया. स.८, उ.२, सु.३० प. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया किं णाणी अण्णाणी? उ. गोयमा !णाणी वि, अण्णाणी वि। जेणाणी ते णियमा तिण्णाणी,तं जहा१.आभिणिबोहियणाणी,२.सुयणाणी,३.ओहिणाणी जे अण्णाणी ते अत्थेगइया दु अण्णाणि, अत्थेगइया ति अन्नाणी। जे दु अन्नाणी ते णियमा १. मइअन्नाणी य, २.सुय-अण्णाणी य। जे ति अन्नाणी ते नियमा १. मइ-अण्णाणी, २. सुय-अण्णाणी, ३. विभंगणाणी वि। सेसाणं णाणी वि, अण्णाणी वि तिण्णि प्र. भन्ते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे निश्चय से तीन ज्ञान वाले हैं, यथा१. आभिनिबोधिकज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी। जो अज्ञानी हैं उनमें कोई दो अज्ञान वाले हैं और कोई तीन अज्ञान वाले हैं। जो दो अज्ञान वाले हैं वे नियम से १. मति-अज्ञानी और २. श्रुत-अज्ञानी हैं। जो तीन अज्ञान वाले हैं वे नियम से १. मति-अज्ञानी, २. श्रुत-अज्ञानी और ३. विभंगज्ञानी है। शेष पृथ्वियों के नैरयिक ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं पूर्ववत् तीनों हैं, इसी प्रकार अधः सप्तम पृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं.२. भन्ते ! असुरकुमार ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं? उ. गौतम ! नैरयिकों के समान असुरकुमारों के लिए भी कथन करना चाहिए। दं.३-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं.१२. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं। वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, यथा१. मति-अज्ञानी, २. श्रुत-अज्ञानी। दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त जानना चाहिए। एवं जाव अहेसत्तमाए। -जीवा. पडि. ३, सु. ८८(२) प. दं.२. असुरकुमारा णं भंते! किं नाणी, अन्नाणी ? उ. गोयमा ! जहेव नेरइया तहेव असुरकुमारा। दं.३-११.एवं जाव थणियकुमारा। प. दं. १२. पुढविकाइया णं भंते! किं नाणी, अण्णाणी? उ. गोयमा ! नो नाणी, अन्नाणी ते नियमा दु अण्णाणि, तं जहा१. मइअन्नाणी य,२.सुय अन्नाणी य२। दं.१३-१६.एवं जाव वणस्सइकाइया। १. जीवा. पडि.१,सु.३२ २. जीवा. पडि.१,सु.१३ (१५) ३. जीवा. पडि.१,सु.१४-२६

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