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ज्ञान अध्ययन
उ. हंता, गोयमा ! पव्वावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा ।
प्र तस्स णं भंते ! पसिस्सा वि पव्वावेज्ज वा मुंडावेज वा ?
उ. हंता, गोयमा ! पव्वावेज्ज वा मुंडावेज वा
"
प से णं भंते! सिज्झइ जाव सव्वदुक्खाणमंत करेइ ? उ. हंता, गोयमा सिज्झइ जाब सव्यदुक्खाणमंत करेइ ।
प. तस्स णं भंते! सिस्सा वि सिज्झति जाव अंतं करेंति ?
उ. हंता, गोयमा सिज्ांति जाब अंतं करेति ।
प. तस्स णं भंते पसिस्सा वि सिज्यंति जाय अंतं करेति ?
उ. हंता गोयमा सिज्झति जाब अंत करेति ।
से णं भंते! किं उड्ड होज्जा एवं पुच्छा जहेब असोच्चाए ।
प. ते णं भंते! एकसमएणं केवइया होज्जा ?
"
उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा, दो वा तिष्णि वा, उक्कोसेणं अट्ठस
से तेणणां गोयमा ! एवं दुच्चइ
सोच्चा णं केवलिस्स वा जाव केवलिउवासियाए वा जाव अत्थेगइए केवलनाणं उप्पाडेज्जा । अत्थेगइए केवलनाणं नो उप्पाडेज्जा ।।
- विया. स. ९, उ. ३१, सु. ३२-४४ ११९. जीव चउवीसदंडएसु सिद्धेसु य नाणानाणित्त परूवणं
प. जीवा णं भंते! किं नाणी, अन्नाणी ? उ. गोयमा ! जीवा नाणी वि, अन्नाणी वि। अत्थेगझ्या एगनाणी ।
जे नाणी ते अल्वेगइया दुत्राणी.
अत्येगइया तिन्नाणी, अत्येगइया चउनाणी,
जे एगनाणी ते नियमा केवलनाणी ।
दुन्नाणी ते १. आभिणिबोहियनाणी य २. सुयनाणी य
जे तिन्नाणी ते १. आभिणवोहियनाणी य
२. सुयनाणी य, ३. ओहिनाणी य ।
अहवा १. आभिणिबोहियनाणी य, २. सुयनाणी य, ३. मणपज्जवनाणी य ।
जे चउनाणी ते १. आभिणिबोहियनाणी य, २. सुयनाणी य, ३. ओहिनाणी य, ४. गणपज्जवनाणी य
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उ. हां, गौतम ! उनके शिष्य भी प्रव्रजित करते हैं और मुण्डित भी करते हैं।
प्र. भन्ते ! क्या उनके प्रशिष्य भी किसी को प्रब्रजित और मुति करते हैं?
उ. हां, गौतम ! उनके प्रशिष्य भी प्रव्रजित करते हैं और मुण्डित करते हैं।
प्र. भन्ते ! वे सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? उ. हां, गौतम ! वे सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं।
प्र. भन्तं ! क्या उनके शिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ?
उ. हां, गौतम ! वे भी सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं।
प्र. भन्ते ! क्या उनके प्रशिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ?
उ. हाँ, गौतम ! वे भी सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं।
भन्ते ये ऊर्ध्वलोक में होते हैं इत्यादि प्रश्न और उत्तर "असोच्चा" के समान जानना चाहिए।
प्र. भन्ते ! वे एक समय में कितने होते हैं ?
उ. गौतम ! वे एक समय में जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट एक सौ आठ होते हैं।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
"केवली यावत् केवलिपाक्षिक उपासिका से धर्म श्रवण कर यावत् कोई जीव केवलज्ञान उपार्जन करता है और कोई जीव केवलज्ञान उपार्जन नहीं करता है।
११९. जीव चौबीसडकों और सिद्धों में ज्ञानित्व अज्ञानित्व का
प्ररूपण
प्र. भन्ते ! जीव ज्ञानी है या अज्ञानी है ?
उ. गौतम ! जीव ज्ञानी भी है और अज्ञानी भी है।
कुछ जीव एक ज्ञान वाले हैं।
जो जीव ज्ञानी हैं, उनमें से कुछ जीव दो ज्ञान वाले हैं,
कुछ जीव तीन ज्ञान वाले हैं,
कुछ जीव चार ज्ञान वाले हैं,
जो एक ज्ञान वाले हैं, वे नियमतः केवलज्ञानी है।
जो दो ज्ञान वाले हैं, वे १ आभिनियोधिज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी हैं।
जो तीन ज्ञान वाले हैं, वे - १. आभिनिबोधिकज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी ३ अवधिज्ञानी है।
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अथवा १. आभिनिबोधिकज्ञानी २ श्रुतज्ञानी,
३. मनः पर्यवज्ञानी हैं।
जो चार ज्ञान वाले हैं, वे १. आभिनियोधिकज्ञानी,
२. श्रुतज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी, ४. मनः पर्यवज्ञानी हैं।