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ज्ञान अध्ययन
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७. भाषाविचय, ८. पूर्वगत, ९. अनुयोगगत, १०.सर्वप्राण-भूत-जीव- सत्वसुखावह।
७. भासाविजए इवा, ८. पुव्वगइ इवा, ९. अणुजोगगए इवा, १०.सव्वपाण-भूय जीव-सत्तसुहावहे इ वा।
-ठाणं, अ. १0, सु.७४२ (ग) दिट्ठिवायस्स माउया पयादिट्ठिवायस्स णं छायालीसं माउयापया पण्णत्ता।
-सम.सम.४६,सु.१ ३१. गणिपिडगो
प. पवयणं भंते ! पवयणं, पावयणी पवयणं?
(ग) दृष्टिवाद के मातृका पददृष्टिवाद अंग के छियालीस मातृका पद कहे गए हैं।
उ. गोयमा ! अरहा ताव नियम पावयणी,
पवयणं पुण दुवालसंगे गणिपिडगे,तं जहा
१.आयारो जाव १२. दिट्ठिवाओ।-विया. स. २०, उ. ८, सु. १५ प. कइविहे णं भंते ! गणिपिडए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुवालसंगे गणिपिडए पण्णत्ते,तं जहा१.आयारो जाव १२.दिट्ठिवाओ।
-विया. स.२५, उ.३, सु.११५ ३२. गणिपिडगस्स सासयभावो
दुवालसंगे णं गणिपिडगे ण कयावि णासि, ण कयाइ णत्थि, ण कयाई ण भविस्सइ,
३१. गणिपिटक
प्र. भन्ते ! प्रवचन को ही प्रवचन कहते हैं, अथवा प्रवचनी को __ प्रवचन कहते हैं ? उ. गौतम ! अरिहन्त अवश्य प्रवचनी है (प्रवचन नहीं है)
किन्तु द्वादशाग गणिपिटक प्रवचन है, यथा
१. आचारांग यावत् १२ दृष्टिवाद। प्र. भन्ते ! गणिपिटक कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! गणिपिटक द्वादशांग रूप कहा गया है, यथा
१.आचारांग यावत् १२ दृष्टिवाद।
भुविंच, भवइ य, भविस्सइय।
धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे।
से जहाणामए पंच अस्थिकाया ण कयाइ ण आसि, ण कयाइ णत्थि,ण कयाइ ण भविस्संति,
३२. गणि-पिटक का शाश्वत भाव
यह द्वादशांग गणि-पिटक भूतकाल में कभी नहीं था, ऐसा नहीं है, वर्तमान काल में कभी नहीं है, ऐसा भी नहीं है और भविष्यकाल में कभी नहीं रहेगा ऐसा भी नहीं है। किन्तु भूतकाल में भी यह द्वादशांग गणि-पिटक था, वर्तमान काल में भी है और भविष्यकाल में भी रहेगा। क्योंकि यह द्वादशांग गणि-पिटक (मेरु पर्वत के समान) ध्रुव है, लोक के समान नियत है, काल के समान शाश्वत है, निरन्तर वाचना देने पर भी क्षय नहीं होने के कारण यह अक्षय है, गंगा-सिन्धु नदियों के प्रवाह के समान अव्यय है, जम्बूद्वीपादि के समान अवस्थित है और आकाश के समान नित्य है। जिस प्रकार पांच अस्तिकाय द्रव्य भूतकाल में कभी नहीं थे ऐसा नहीं है, वर्तमान काल में कभी नहीं है ऐसा भी नहीं है और भविष्यकाल में कभी नहीं रहेंगे ऐसा भी नहीं है। किन्तु ये पांचों अस्तिकाय द्रव्य भूतकाल में भी थे, वर्तमान काल में भी हैं और भविष्यकाल में भी रहेंगे। अतएव ये ध्रुव हैं, नियत हैं, शाश्वत हैं, अक्षय हैं, अव्यय है, अवस्थित हैं और नित्य हैं। इसी प्रकार यह द्वादशांग गणि-पिटक भूतकाल में कभी नहीं था ऐसा नहीं है, वर्तमान काल में कभी नहीं है ऐसा भी नहीं है और भविष्यकाल में कभी नहीं रहेगा ऐसा भी नहीं है। किन्तु भूतकाल में भी यह था, वर्तमान काल में भी यह है और भविष्य काल में भी रहेगा। अतएव यह ध्रुव है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है।
भुविं च भवंति य भविस्संति य।
धुवा णितिया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा।
एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे ण कयाइ ण आसि, ण कयाइ णस्थि,ण कयाइण भविस्सइ,
भुविं च भवइ य भविस्सइ य।
धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे।
-सम.सु. १४८ (३)
१.
सम.सम.सु.१३६
२. नंदी. सु.११४