________________
६६०
उ. नो आगमओ भावसुयं दुविहं पण्णत्तं तं जहा१. लोइयं, २. लोउत्तरियं च ।
प. से किं तं लोइयं भावसुयं ?
उ. लोइयं भावसुयं जं इमं अण्णाणिएहिं मिच्छादिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धि-मविगप्पियं तं जहा
"
भारहं जाव नाडगादी,
अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि य वेदा संगोवंगा ।
सेतं लोइयं भावसुर्य
प. से किं तं लोगोतरियं भावसुर्य ?
उ. लोगोत्तरियं भावसुयं जं इमं अरहंतेहिं भगवतेहिं उपपन्ननाण- दंसणधरेहिं तीत पप्पन्न मणागत जाणएहि, सव्वन्नूहिं सव्वदरिसीहिं, तेलोक्कवहिय, महिय-पूइएहिं अपडिहयवरणाण दंसणधरेहिं पणीयं दुवासंगं गणिपिडगं तं जहा
आयारो जाव दिट्ठवाओ य ।
से तं लोगोत्तरियं भावसुयं ।
से तं नो आगमओ भावसुर्य सेतं भावसु ।
७८. सुयस्स परियायसद्दा
तस्स णं इमं एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामज्जा
भवति, तं जहा
सुय सुत्त गंथ सिद्धंत सासणे आण वयण उवदेसे पण्णवण आगमेया
एगट्ठा पज्जवा सुत्ते ॥४॥
- अणु. सु. ४६-५०
सेतं सूर्य ७९. सुपपरिमाणसंखा
प से किं तं परिमाणसंखा ?
उ. परिमाणसंखा-दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
- अणु. सु. ५१
१. कालियसुयपरिमाणसंखा,
२. दिवायसुयपरिमाणसंखा य
प से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा ? उ. कालियसुवपरिमाणसंखा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा
"
पज्जयसंखा अक्खरसंखा, संघायसंखा, पदसंखा, पादसंखा, गाहासंखा, सिलोगसंखा, सिलोगसंखा, वेढसंखा, निज्जुत्तिसंखा, अणुओगदारसंखा, उद्देसगसंख्या, अज्झयणसंखा, सुयवबंधसंखा, अंगसंखा सेतं कालियसुयपरिमाणसंखा ।
प. से किं तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा ? उ. दिव्वायसुयपरिमाणसंखा
तं जहा
अणेगविहा पण्णत्ता,
द्रव्यानुयोग - (१)
उ. नो आगमभावश्रुत दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. लौकिक, २. लोकोत्तरिक ।
प्र. लौकिक भावश्रुत का क्या स्वरूप है ?
उ. अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचित जो लौकिक भावश्रुत है वह इस प्रकार है, यथामहाभारत यावत् नाटक आदि ।
अथवा बहत्तर कलाएं और सांगोपांग चार वेद ये लौकिक नो आगमभावश्रुत है।
यह लौकिक भावश्रुत का स्वरूप है।
प्र.
लोकोत्तरिक भावश्रुत का क्या स्वरूप है ?
उ. उत्पन्न केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करने वाले, भूत-भविष्यत् और वर्तमान कालिक पदार्थों को जानने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा अवलोकित, महित पूजित, अप्रतिहत श्रेष्ठ ज्ञान-दर्शन के धारक अरिहन्त भगवन्तों द्वारा प्रणीत लोकोत्तर द्वादशांग गणिपिटक भावश्रुत है, वह इस प्रकार हैं, यथा
आचारांग सूत्र यावत् दृष्टिवाद।
यह लोकोत्तरिक भावश्रुत का स्वरूप है।
यह नो आगम भावश्रुत का स्वरूप है। यह भावश्रुत का वर्णन है।
७८. श्रुत के पर्यायवाची शब्द
उदात्तादि विविध स्वरों तथा ककारादि अनेक व्यंजनों से युक्त उस श्रुतके एकार्थवाचक नाम इस प्रकार हैं, यथा
१. श्रुत, २. सूत्र, ३. ग्रन्थ, ४ सिद्धान्त, ५. शासन, ६. आज्ञा,
७. वचन, ८. उपदेश, ९. प्रज्ञापना, १०. आगम,
सभी श्रुतके एकार्थक (समानार्थक) पर्याय हैं।
यह श्रुत का स्वरूप है।
७९. श्रुतपरिमाणसंखा
प्र. परिमाणसंख्या कितने प्रकार की है ?
उ. परिमाणसंख्या दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या,
२. दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या ।
प्र. कालिकधुतपरिमाणसंख्या कितने प्रकार की है?
उ. कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार की कही गई है, यथा
पर्यवसंख्या, अक्षरसंख्या, संघातसंख्या, पदसंख्या, पादसंख्या, गाथासंख्या इलोकसंख्या, वेष्टकसंख्या, निर्युक्तिसंख्या, अनुयोगद्वारसंख्या उद्देशकसंख्या, अध्ययनसंख्या, श्रुतस्कन्धसंख्या, अंगसंख्या । यह कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या है।
प्र. दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या कितने प्रकार की है ? उ. दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार की कही गई है,
यथा