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ज्ञान अध्ययन
१. इल्बी वा पुरिसे वा सुविणते एवं महं हयपंति वा गयपति
वा नरपति वा किन्नरपति वा किंपुरिसर्पति था, महोरगपंति या गंधव्वपति वा वसभपति या पासमाणे पासइ दुरूहमाणे दुरूहइ दुरूढमिति अप्पाणं मन्नइ, तक्खणामेव बुज्झइ तेणेय भवग्गहणेण सिन्झइ जाब सव्यदुक्खाणं अंत करे।
२. इत्थी वा पुरिसे या सुविणते एवं महं दामिणि पाईणपडिणायतं दुहओ समुद्दे पुट्ठं पासमाणे पासइ संवेल्लेमाणे संवेल्लइ, संवेल्लियमिति अप्पाणं मन्नइ तक्खणामेव बुज्झइ तेणेव भवग्गहणेण सिज्झद्द जाव सव्यदुक्खाणं अंत करे।
३. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एवं मह रज्जुं पाईणपडिगायत दुहओ लोगते पुढं पासमाणे पासइ, छिंदमाणे छिंद, छिन्नमिति अप्पाणं मन्नइ तक्खणामेव बुज्झइ, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ।
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४. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं किण्हसुत्तगं वा, नीलसुत्तगं वा, लोहियसुत्तगं वा हालिद्दसुत्तगं वा, सुनिलसुत्तगं वा पासमाणे पासह, उग्गोवेमाणे उग्गोड, उग्गोवितमिति अप्पाणं मन्नड, तक्खणामेव बुज्झइ तेणेव भवग्गहणेण सिज्झइ जाय सव्वदुक्खाणं अंत करेइ । ५. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणते एवं महं अयरासि वा तंबरासिं वा तउयरासिं वा सीसगरासिं वा पासमाणे पासइ, दुरूहमाणे दुरूहइ दुरूढमिति अप्पाणं मन्नइ, तक्खणामेव बुज्झइ दोच्चे भवग्गहणे सिझर जाब सव्यदुक्खाणं अंत करे।
६. इत्थी वा पुरिसे या सुविणते एवं महं हिरण्णरासिं था, सुवण्णरासिं था, रयणरासि वा वइररासि वा पासमाणे पासइ, दुरूहमाणे दुरूहइ, दुरूढमिति अप्पाणं मन्नइ तक्खणामेव बुज्झइ, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ जाव सव्यदुक्खाणं अंत करे।
७. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं तणरासिं वा, कट्ठरासिं वा, पत्तरासिं वा, तयरासिं वा, तुसरासिं वा, भुसरासिं वा, गोमयरासिं वा, अवकररासिं वा पासमाणे पास विक्रिमाणे विक्खिरड, विक्ण्णिमिति अप्पाण मन्नइ, तक्खणामेव बुझइ तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ जाय सव्वदुक्खाणं अंत करेइ।
८. इत्थी वा पुरिसे या सुविणंते एगं महं सरबंध था, वीरणथंभं या वसीमूलथभ वा वल्लीमूलयम्भं वा पासमाणे पासइ उम्मूलेमाणे उम्मूलेइ उम्मूलितमिति अप्पाणं मन्नइ तक्खणामेव बुज्झइ, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ जाय सव्यदुक्खाणं अंत करे।
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१. कोई भी स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक बड़ी अश्वपंक्ति, गजपक्ति, मनुष्यपक्ति, किन्नरपंक्ति, किंपुरुषपंक्ति, महोरगपंक्ति, गंधर्वपंक्ति अथवा वृषभपंक्ति को देखे और उसके ऊपर चढ़े और उस पर स्वयं चढ़ा है ऐसा अपने को माने तथा इस प्रकार देखकर यदि तत्क्षण जागे तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है।
२. कोई भी स्त्री या पुरुष यदि स्वप्न के अन्त में समुद्र के दोनों छोरों से अड़ा हुआ और पूर्व तथा पश्चिम की तरफ लम्बा एक बड़ा दामण देखे और उसे लपेटे तथा स्वयं ने उसे लपेटा है। ऐसा स्वयं को माने तथा इस प्रकार देखकर कोई शीघ्र जागता है तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् सर्व दुखों का अन्त करता है।
३. कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में लोक के दोनों छोरों को स्पर्श किया हुआ और पूर्व व पश्चिम लम्बा एक बड़ा रस्सा देखे और उसे काट डाले तथा स्वयं ने उसे काट दिया है, ऐसा स्वयं को माने तथा इस तरह से देखकर तत्क्षण जागे तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है।
४. कोई भी स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक बड़ा लम्बा काले सूत, नीले सूत, लाल सूत, पीले सूत या सफेद सूत का धागा देखे और उसे उकेले और स्वयं ने उसे उकेला है ऐसा स्वयं को माने और ऐसा देखकर वह तत्क्षण जागे तो वह उसी भव सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है।
५. कोई भी स्त्री या पुरुष स्वप्न के अंत में एक बड़े लोहे के ढेर को, तांबे के ढेर को रांगे के ढेर को सीसे के ढेर को देखे
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और स्वयं उस पर चढ़े और स्वयं उस पर चढ़ा है ऐसा स्वयं को माने तथा ऐसा देखकर शीघ्र जागे तो वह दो भव में सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है।
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६. कोई भी स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक विशाल हिरण्य चांदी के ढेर को सुवर्ण के ढेर को रत्न के ढेर को, वज्र के ढेर को देखे और उस पर स्वयं चढ़े और स्वयं उस पर चढ़ा है ऐसा स्वयं को माने तथा उसी क्षण जागे तो वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है।
७. कोई भी स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक बड़े घास के ढेर को, लकड़ियों के ढेर को, पत्तों के ढेर को वृक्ष की छाल या
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तुस के ढेर को भूसे के ढेर को गेहूं के ढेर को या कूड़ा कचरा के ढेर को देखे और उसे बिखेरे और स्वयं ने उसे बिखेरा है। ऐसा स्वयं को माने और तुरन्त जागे तो उसी भव में सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है।
८. कोई भी स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक बड़े शरस्तम्भ को, वीरण स्तम्भ को सीमूलस्तम्भ को अथवा वल्लीमूल स्तम्भ
को देखे और उसे उखाड़े और स्वयं ने उसे उखाड़ा है ऐसा
स्वयं को माने और तत्क्षण जागे तो उसी भव में सिद्ध होता है। यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है।