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ज्ञान अध्ययन
एवामेव अणाणुगामियं ओहिनाणं जत्थेव समुप्पज्जइ तत्थेव संखेज्जाणिवा, असंखेज्जाणि वा संबद्धाणि वा, असंबद्धाणि वा जोयणाई जाणइ पासह, अण्णत्य गए जाणइ ण पासइ ।
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सेतं अणाणुगामियं ओहिनाणं ।
(३) वड्ढमाण - ओहिनाणस्स परूवणंप से किं तं वड्ढमाणय ओहिनाणं ?
उ. वड्ढमाणयं ओहिनाणं-पसत्थेसु अज्झवसायणट्ठाणेसु वड्ढमाणस्स वड्ढमाणचरितस्स विसुज्झमाणस्स, विसुज्झमाणचरित्तस्स सव्वओ समंता ओही वड्ढइ ।
- नंदी. सु. १३
से तं वड्ढमाणयं ओहिनाणं ।
(४) हीयमाण- ओहिनाणस्स परूवणंप. से किं तं हीयमाणयं ओहिनाणं ?
उ. हीयमाणयं ओहिनाणं अप्पसत्थेहिं अज्झवसायट्ठाणेहिं वट्टमाणस्स, वट्टमाणचरित्तस्स, संकिलिस्समाणस्स, संकिलिस्समाणचरित्तस्स, सव्वओ समंता ओही परिहीयइ ।
सेतं हीयमाणयं ओहिनाणं ।
- नंदी. सु. २५
(५) पडिवाइ- ओहिनाणस्स परूवणं
प से किं तं पडिवाइ ओहिनाणं ?
उ. पडिवाइ ओहिनाणं जण्णं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जभागं वा संखेज्जइभागं वा,
वालग्गं वा वालग्गपुहतं वा
,
लिक्खं वा, लिक्खपुहत्तं वा,
जूयं वा, जूयपुहत्तं वा,
जब था, जयपुहतं वा,
मंदी सु. १२
अंगुलं वा, अंगुलपुहत्तं वा,
पायं वा, पायपुहत्तं वा, वियत्थिं वा, वियत्थिपुहत्तं वा, रयणि वा रचणिपुहतं वा कुच्छिं वा, कुच्छिपुहत्तं वा, धयं वा, धणुपुहत्तं वा,
गाउयं वा गाउयपुहतं वा,
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जोय वा जोयणपुरुवा,
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जोयणसयं वा जोयणसयपुहत्तं वा,
जोयणसहस्सं वा, जोयणसहस्सपुहत्तं वा,
,
जोयणसयसहस्सं या जोयणसयसहस्सपुहतं वा, जोयणकोडिया, जोयणकोडिपुहतं था, जोयणकोडाकोडिया, जोयणकोडाकोडिपुहतं था, जोयण संखेज्जं वा, जोयणसंखेज्जपुहत्तं वा,
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इसी प्रकार अनानुगामिक अवधिज्ञान जिस क्षेत्र में जिसको उत्पन्न होता है, वह उसी क्षेत्र में स्थित होकर संख्यात एवं असंख्यात योजन तक, स्वावगाढ़ क्षेत्र से अन्तर रहित या अन्तर सहित रहे हुए द्रव्यों को विशेष रूप से और सामान्य रूप से जानता-देखता है, परन्तु अन्यत्र जाने पर नहीं जानता है और नहीं देखता है।
यह अनानुगामिक अवधिज्ञान का स्वरूप है।
(३) वर्द्धमान अवधिज्ञान का प्ररूपण
प्र. वर्द्धमान अवधिज्ञान क्या है?
उ. अध्यवसायों (विचारों) के विशुद्ध एवं प्रशस्त होने पर और चारित्र की वृद्धि होने पर तथा विशुद्ध चारित्र के द्वारा कर्म मल से रहित होने पर आत्मा का ज्ञान दिशाओं एवं विदिशाओं में चारों ओर बढ़ता है, उसे वर्द्धमान अवधिज्ञान कहते हैं। यह वर्द्धमान अवधिज्ञान का स्वरूप है।
(४) हीयमान अवधिज्ञान का प्ररूपणप्र. हीयमान अवधिज्ञान क्या है ?
उ. अशुभ अध्यवसायों में विद्यमान चारित्र वाले और संक्लेश को प्राप्त संक्लिष्ट चारित्र वाले के जो सर्वतः एवं सब ओर से अवधिज्ञान का ह्रास होता है उसे हीयमान अवधिज्ञान कहते हैं।
यह हीयमान अवधिज्ञान का स्वरूप है।
(५) प्रतिपाति अवधिज्ञान का प्ररूपण
प्र. प्रतिपाति अवधिज्ञान का क्या स्वरूप है?
उ प्रतिपाति अवधिज्ञान जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग या संख्यातवें भाग
बालाग्र, बालाग्रपृथक्त्व,
सीख या
पृथक्त्व
यूका (जूँ) या यूकापृथक्त्व,
यव (जी) या यवपृथक्त्व,
अंगुल या अंगुल पृथक्त्व,
पाद या पादपृथक्त्व, वितस्ति या वितस्तिपृथक्त्व
रनि (हाथ परिमाण) या रनिपृथक्त्व,
कुक्षि (दो हस्तपरिमाण) या कुशिपृथक्त्व,
धनुष (चार हाथ परिमाण) या धनुष पृथक्त्व,
गव्यूति या गव्यूति पृथक्त्व
योजन या योजनपृथक्त्व.
योजनशत या योजनशतपृथक्त्व,
योजन - सहस्र (एक हजार योजन) या योजन- सहस्रपृथक्त्व, लाख योजन या लाख योजनपृथक्त्य
योजनकोटि (एक करोड़ योजन) या योजन कोटिपृथक्त्व, योजन कोटाकोटि या योजनकोटाकोटिपृथक्त्व संख्यात योजन या संख्यातयोजनपृथक्त्व,