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दं. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं।
-पण्ण.प. ३३, सु. २०२२-२०२६ ९३. चउवीसदंडएसुओहिणाणेण जाणण पासण खेत्त परूवणं-
प. दं.१.णेरइया णं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणंति
पासंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अद्ध गाउयं,
उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई ओहिणा जाणंति पासंति। प. रयणप्पभापुढविणेरइया णं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा
जाणंति पासंति? उ. गोयमा !जहण्णेणं अद्भुट्ठाई गाउयाई,
उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई ओहिणा जाणंति पासंति। प. सक्करप्पभापुढविणेरइया णं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा
जाणंति, पासंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं तिण्णि गाउयाई,
उक्कोसेणं अद्भुट्ठाइं गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति। प. वालुयप्पभापुढविणेरइया णं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा . ____जाणंति पासंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अड्ढाइज्जाई गाउयाई,
उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति। प. पंकप्पभापुढविणेरइया णं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा
जाणंति पासंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दोण्णि गाउयाइं,
उक्कोसेणं अड्ढाइज्जाई गाउयाई ओहिणा जाणंति
द्रव्यानुयोग-(१)) द. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का
अवधिज्ञान नारकों के समान देशावधि है। ९३. चौबीस दंडकों में अवधिज्ञान द्वारा जानने-देखने के क्षेत्र का
प्ररूपणप्र. दं. १. भंते! नैरयिक अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को
जानते-देखते हैं ? उ. गौतम! वे अवधिज्ञान से जघन्य आधा गाऊ पर्यन्त,
उत्कृष्ट चार गाऊ पर्यन्त जानते-देखते हैं। प्र. भन्ते ! रत्नप्रभापृथ्वी के नारक अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को
जानते-देखते हैं? उ. गौतम ! वे अवधिज्ञान से जघन्य साढ़े तीन गाऊ, ___उत्कृष्ट चार गाऊ पर्यन्त जानते-देखते हैं। प्र. भन्ते ! शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र
को जानते-देखते हैं? उ. गौतम ! वे अवधिज्ञान से जघन्य तीन गाऊ,
उत्कृष्ट साढ़े तीन गाऊ पर्यन्त जानते-देखते हैं। प्र. भन्ते ! बालुकाप्रभापृथ्वी के नारक अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र
को जानते-देखते हैं? उ. गौतम ! वे अवधिज्ञान से जघन्य ढाई गाऊ,
उत्कृष्ट तीन गाऊ पर्यन्त जानते-देखते हैं। प्र. भन्ते ! पंकप्रभापृथ्वी के नारक अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को
जानते-देखते हैं ? उ. गौतम ! वे अवधिज्ञान से जघन्य दो गाऊ,
उत्कृष्ट ढाई गाऊ पर्यन्त जानते-देखते हैं।
पासंति।
प. धूमप्पभापुढविणेरइया णं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा
जाणंति पासंति? उ. गोयमा !जहण्णेणं दिवड्ढे गाउयं,
उक्कोसेणं दो गाउयाई ओहिणा जाणंति पासंति। प. तमापुढविणेरइया णं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणंति
पासंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं गाउयं,
उक्कोसेणं दिवढे गाउयं ओहिणा जाणंति पासंति। प. अहेसत्तमापुढविणेरइया णं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा
जाणंति पासंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अद्धगाउयं,
उक्कोसेणं गाउयं ओहिणा जाणति पासंति। प. दं. २. असुरकुमारा मं भंते ! केवइयं खेत्तं ओहिणा
जाणंति पासंति? उ. गोयमा! जहण्णेणं पणुवीसं जोयणाई,
उक्कोसेणं असंखेज्जे दीव-समुद्दे ओहिणा जाणंति
पासंति। प. दं.३. णागकुमारा णं भंते! ओहिणा केवइयं खेत्तं जाणंति
पासंति १. जीवा. पडि.३, सु. ८८(२)
प्र. भन्ते ! धूमप्रभापृथ्वी के नारक अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को
जानते-देखते हैं? उ. गौतम ! वे अवधिज्ञान से जघन्य डेढ़ गाऊ,
उत्कृष्ट दो गाऊ पर्यन्त जानते-देखते हैं। प्र. भन्ते! तमःप्रभापृथ्वी के नारक अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को
जानते-देखते हैं ? उ. गौतम! वे अवधिज्ञान से जघन्य एक गाऊ, ___उत्कृष्ट डेढ़ गाऊ पर्यन्त जानते-देखते हैं। प्र. भन्ते! अधःसप्तम पृथ्वी के नारक अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र
को जानते-देखते हैं ? उ. गौतम! वे अवधिज्ञान से जघन्य आधा गाऊ,
उत्कृष्ट एक गाऊ पर्यन्त जानते-देखते हैं। प्र. दं.२. भन्ते! असुरकुमारदेव अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को
जानते-देखते हैं? उ. गौतम! वे अवधिज्ञान से जघन्य पच्चीस योजन,
उत्कृष्ट असंख्यात द्वीप समुद्रों को जानते-देखते हैं।
प्र. दं. ३. भन्ते! नागकुमारदेव अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को
जानते-देखते हैं?