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ज्ञान अध्ययन
- ६७३ ) उ. गोयमा!जहण्णेणं पणवीसं जोयणाई,
उ. गौतम! वे अवधिज्ञान से जघन्य पच्चीस योजन, उक्कोसेणं संखेज्जे दीव-समुद्दे ओहिणा जाणंति पासंति। उत्कृष्ट संख्यात द्वीप-समुद्रों को जानते-देखते हैं। दं.४-११.एवं जाव थणियकुमारा।
दं.४-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। प. दं.२०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया णं भंते! केवइयं खेतं प्र. दं. २०. भन्ते! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव अवधिज्ञान से ओहिणा जाणंति पासंति?
कितने क्षेत्र को जानते-देखते हैं ? उ. गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग,
उ. गौतम! वे अवधिज्ञान से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग
क्षेत्र को, उक्कोसेणं असंखेज्जे दीव-समुद्दे ।
उत्कृष्ट असंख्यात द्वीप-समुद्रों को जानते-देखते हैं। प. दं. २१. मणूसा णं भंते! केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणंति प्र. द. २१. भन्ते! मनुष्य अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को पासंति?
जानते-देखते हैं? उ. गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं
उ. गौतम! वे अवधिज्ञान से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग
क्षेत्र को, उक्कोसेण असंखेज्जाइं अलोए लोयपमाणमेत्ताई खंडाई उत्कृष्ट अलोक में लोकप्रमाण असंख्य खण्डों को जानतेओहिणा जाणंति पासंति।
देखते हैं। दं.२२. वाणमंतराजहा णागकुमारा।
द. २२. वाणव्यन्तर देवों के जानने-देखने की क्षेत्र सीमा
नागकुमार देवों के समान है। प, दं.२३.जोइसिया णं भंते! केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणंति प्र. द. २३. भन्ते! ज्योतिष्कदेव अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को पासंति?
जानते-देखते हैं। उ. गोयमा!जहण्णेणं संखेज्जे दीव-समुद्दे,
उ. गौतम! वे अवधिज्ञान से जघन्य संख्यात द्वीप-समुद्रों को, उक्कोसेण वि संखेज्जे दीव-समुद्दे।
उत्कृष्ट भी संख्यात द्वीप-समुद्रों को जानते-देखते हैं। प. दं. २४. सोहम्मदेवा णं भंते! केवइयं खेत्तं ओहिणा प्र. द. २४. भन्ते! सौधर्मदेवकल्प के देव अवधिज्ञान से कितने जाणंति पासंति?
क्षेत्र को जानते-देखते हैं ? उ. गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग,
उ. गौतम! वे अवधिज्ञान से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग
क्षेत्र को और, उक्कोसेणं अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उत्कृष्ट नीचे इस रत्नप्रभापृथ्वी के निचले चरमान्त तक, तिरछे हेट्ठिल्ले चरिमंते, तिरियं जाव असंखेज्जे दीव-समुद्दे, असंख्यात द्वीप-समुद्रों तक और ऊपर अपने-अपने विमानों उड्ढं जाव सगाई विमाणाई ओहिणा जाणंति पासंति।
तक को अवधिज्ञान से जानते-देखते हैं। एवं ईसाणगदेवा वि।
इसी प्रकार ईशानकल्पदेवों के विषय में भी समझना चाहिए। सणंकुमारदेवा माहिंदगदेवा वि एवं चेव।
सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प देवों के विषय में भी इसी प्रकार
कहना चाहिए। णवरं-अहे जाव दोच्चाए सक्करप्पभाए पुढवीए विशेष-ये नीचे दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी के नीचले चरमान्त हेट्ठिल्ले चरिमंते ओहिणा जाणंति पासंति।
तक जानते-देखते हैं। बंभलोग-लंतगदेवा तच्चाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते ब्रह्मलोक और लान्तक देव अवधिज्ञान से तीसरी पृथ्वी के ओहिणा जाणंति पासंति।
नीचे के चरमान्त तक जानते-देखते हैं। (शेष सब पूर्ववत् है।) महासुक्क-सहस्सारगदेवा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए महाशुक्र और सहस्रार कल्प के देव अवधिज्ञान से चौथी हेट्ठिल्ले चरिमंते ओहिणा जाणंति पासंति।
पंकप्रभापृथ्वी के नीचे के चरमान्त तक जानते-देखते हैं। आणय-पाणय-आरण-अच्चुयदेवा अहे जाव पंचमाए
आनत, प्राणत, आरण और अच्युतदेव अवधिज्ञान से नीचे धूमप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते ओहिणा जाणंति पांचवीं धूमप्रभापृथ्वी के नीचले चरमान्त तक जानते-देखते हैं। पासंति। हेट्ठिम-मज्झिमगेवेज्जगदेवा अहे जाव छट्ठाए तमाए
नीचे के और मध्य के ग्रैवेयकदेव अवधिज्ञान से नीचे छठी पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते ओहिणा जाणंति पासंति।
तम प्रभापृथ्वी के नीचले चरमान्त तक जानते-देखते हैं। प. उवरिमगेवेज्जगदेवा णं भंते। केवइयं खेत्तं ओहिणा प्र. भन्ते! ऊपर के ग्रैवेयकदेव अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को जाणंति पासंति?
जानते-देखते हैं? उ. गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं,
उ. गौतम! वे अवधिज्ञान से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग
क्षेत्र को और १. बारहवें दण्डक से उन्नीसवें दण्डक तक के जीवों को अवधिज्ञान नहीं होता। इसलिए उनका यहाँ कथन नहीं किया गया है।