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दोहिं ठाणेहिं आया केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा,तं जहा
१. सोच्चा चेव, २. अभिसमेच्च चेव। दोहिं ठाणेहिं आया केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा१. सोच्चा चेव, २. अभिसमेच्च चेव। दोहिं ठाणेहिं आया केवलं केवलाणाणं उप्पाडेज्जा,तं जहा
द्रव्यानुयोग-(१) इन दो स्थानों से आत्मा विशुद्ध अवधिज्ञान को उत्पन्न करता है, यथा१. सुनने से,
२. जानने से। इन दो स्थानों से आत्मा विशुद्ध मनःपर्यवज्ञान को उत्पन्न करता है, यथा१. सुनने से,
२. जानने से। इन दो स्थानों से आत्मा विशुद्ध केवलज्ञान को उत्पन्न करता है, यथा१. सुनने से,
२. जानने से। इन दो स्थानों को जानकर और छोड़कर आत्मा आभिनिबोधिक ज्ञान को प्राप्त करता है, यथा१. आरंभ,
२. परिग्रह। इन दो स्थानों को जानकर और छोड़कर आत्मा विशुद्ध श्रुतज्ञान को प्राप्त करता है, यथा१. आरंभ,
२. परिग्रह। इन दो स्थानों को जानकर और छोड़कर आत्मा विशुद्ध अवधिज्ञान को प्राप्त करता है, यथा१. आरंभ,
२. परिग्रह। इन दो स्थानों को जानकर और छोड़कर आत्मा विशुद्ध मनः पयर्वज्ञान को प्राप्त करता है, यथा१. आरंभ, . २. परिग्रह। इन दो स्थानों को जानकर और छोड़कर आत्मा विशुद्ध केवलज्ञान को प्राप्त करता है, यथा१. आरंभ,
२. परिग्रह।
१. सोच्चा चेव, २. अभिसमेच्च चेव। दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा,तं जहा१. आरंभे चेव, २. परिग्गहे चेव। दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तंजहा१. आरंभे चेव, २. परिग्गहे चेव। दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलं ओहिनाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा१. आरंभे चेव, २. परिग्गहे चेव। दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा,तं जहा१. आरंभे चेव, २. परिग्गहे चेव। दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा१. आरंभे चेव, २. परिग्गहे चेव।
-ठाणं. अ.२, उ.१ सु.५५ १११. पंच णाणाणं अणुप्पई हेउ परूवणं
दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा,तं जहा१. आरंभे चेव, २. परिग्गहे चेव। दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा,तं जहा१. आरंभे चेव, २. परिग्गहे चेव। दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा,तंजहा१. आरंभे चेव, २. परिग्गहे चेव। दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा,तं जहा१. आरंभे चेव, २. परिग्गहे चेव। दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा,तं जहा१. आरंभे चेव, २. परिग्गहे चेव।
-ठाण अ.२,उ.१.सु.५५
१११. पांच ज्ञानों की अनुत्पत्ति के हेतुओं का प्ररूपण
इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान को प्राप्त नहीं करता है, यथा१. आरंभ,
२. परिग्रह। इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध श्रुतज्ञान को प्राप्त नहीं करता है, यथा१. आरंभ,
२. परिग्रह। इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध अवधिज्ञान को प्राप्त नहीं करता है, यथा१. आरम्भ,
२. परिग्रह। इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध मनःपर्यवज्ञान को प्राप्त नहीं करता है, यथा१. आरंभ,
२. परिग्रह। इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध केवलज्ञान को प्राप्त नहीं करता है, यथा१. आरंभ,
२. परिग्रह।