Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 744
________________ ज्ञान अध्ययन - ६३७ ) ६३७ १०. विज्जाणुप्पवायस्स णं पुवस्स पण्णरस्स वत्थू पण्णत्ता। ११. अवंझस्स णं पुव्वस्स बारस वत्थू पण्णत्ता। १२. पाणाउस्स णं पुव्वस्स तेरस वत्थू पण्णत्ता २। १३. किरियाविसालस्स णं पुवस्स तीसं वत्थू पण्णत्ता। १४. लोगबिंदुसारस्स णं पुव्वस्स पणवीसं वत्थू पण्णत्ता। दस चोद्दस अट्ठ अट्ठारसे व बारस दुवे य वत्थूणि। सोलस तीसा वीसा, पण्णरस अणुप्पवायम्मि॥१॥ बारस एक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थूणि। तीसा पुण तेरसमे, चउद्दसमे पण्णवीसाओ॥२॥ चत्तारि दुवालस अट्ठ, चेव दस चेव चूलवत्थूणि। आदिल्लाणं चउण्हं सेसाणं चूलिया णत्थि ॥३॥ १०. विद्यानुप्रवादपूर्व की पन्द्रह वस्तु कही गई है। ११. अबन्ध्यपूर्व की बारह वस्तु कही गई हैं। १२. प्राणायुपूर्व की तेरह वस्तु कही गई हैं। १३. क्रियाविशाल पूर्व की तीस वस्तु कही गई हैं। १४. लोकबिन्दुसार पूर्व की पच्चीस वस्तु कही गई हैं। प्रथम पूर्व में दस, दूसरे में चौदह, तीसरे में आठ, चौथे में अठारह, पांचवें में बारह, छठे में दो, सातवें में सोलह, आठवें में तीस, नवमे में बीस, दसवें में पन्द्रह ॥१॥ ग्यारहवें में बारह, बारहवें में तेरह, तेरहवें में तीस, और चौदहवें में पच्चीस वस्तु नामक महाधिकार हैं ॥२॥ आदि के चार पूर्त में क्रम से चार, बारह, आठ और दस चूलिका वस्तु नामक अधिकार हैं। शेष दस पूर्वी में चूलिका नामक अधिकार नहीं हैं ॥३॥ यह पूर्वगत का वर्णन है। (४) वीर्यप्रवाद पूर्व के प्राभृतवीर्य प्रवाद पूर्व के इकहत्तर प्राभृत कहे गए हैं। से तं पुव्वगयं। -सम., सु.१४७(३) (४) वीरिप्पवाय पुव्वस्सपाहुडावीरिप्पवायस्स णं पुव्वस्स एकसत्तरं पाहुडा पण्णत्ता। -सम.सम.७१,सु.२ अणुओगेप. से किं तं अणुओगे? उ. अणुओगे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. मूलपढमाणुओगे य, गंडियाणुओगे य। प. से किं तं मूलपढमाणुओगे? उ. मूलपढमाणुओगे एत्थ णं अरहताणं भगवंताणं पुब्वभवा, देवलोगगमणाणि, आउं, चवणाणि, जम्मणाणि य, अभिसेया, रायवरसिरीओ, सीयाओ, पव्वज्जाओ, तवा य भत्ता, केवलणाणुप्पया तित्थपवत्तणाणि य, संघयणं संठाणं उच्चत्तं आउं वण्णविभागो सीसा गणा गणहरा य अज्जा पवत्तणीओ संघस्स चउव्विहस्स जं वा वि परिमाणं जिण-मणपज्जव-ओहिनाणी-सम्मत्त-सुयनाणिणो य वाई जत्तिया अणुत्तरगई य जत्तिया, जत्तिया सिद्धा, पाओवगआ य जो जहिं जत्तियाई भत्ताई छेयइत्ता अंतगडो मुणिवरुत्तमो तिमिरओघविप्पमुक्का सिद्धिपहमणुत्तरं च पत्ता, अन्ने य एवमाइया भावा मूलपढमाणुओगे कहिआ। से तं मूलपढमाणुओगे। अनुयोगप्र. अनुयोग कितने प्रकार का है ? उ. अनुयोग दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. मूलप्रथमानुयोग, २. गंडिकानुयोग। प्र. मूलप्रथमानुयोग में क्या है? उ. मूलप्रथमानुयोग में अरहन्त भगवन्तों के पूर्वभव, देवलोक-गमन, देवायु, च्यवन, जन्म, अभिषेक, राज्यवरश्री, शिविका, प्रव्रज्या, तप, भक्त (आहार के समय), केवलज्ञानोत्पत्ति, तीर्थ-प्रवर्तन, संहनन, संस्थान, शरीर की ऊंचाई, आयु, वर्ण विभाग, शिष्य, गण, गणधर, आर्या, प्रवर्तिनी, चतुर्विध संघ का परिमाण, जिन-केवलि, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, सम्पूर्ण श्रुतज्ञानी, वादी, अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले साधु, सिद्ध, पादपोपगत, जितने समयों का भोजन त्यागकर सिद्ध हुए ऐसे उत्तम मुनिवरों का अज्ञानांधकार समूह से विप्रमुक्त और अनुत्तर सिद्धिपद को प्राप्त हुए महापुरुषों का वर्णन है। इसी प्रकार के अन्य भाव मूलप्रथमानुयोग में कहे गए हैं। यह मूलप्रथमानुयोग का वर्णन है। १. विज्जाणुप्पवायस्स णं पुव्वस्स पण्णरस वत्यू पण्णत्ता। -सम.सम.१५,सु.६ २. पाणाउस्स णं पुव्वस्स तेरस वत्थू पण्णत्ता। -सम.सम.१३,सु.६ ३. (क) लोगबिंदुसारस्स णं पव्वस्स पणवीसं वत्थ पण्णत्ता। -सम.,सम.२५,सु.९ (ख) उप्पायस्स णं पुव्वस्स दस वत्थु, चत्तारि चुल्लयत्यु पण्णत्ता जाव लोगबिंदुसारस्सणं पुवस्स पणवीसं वत्थु पण्णत्ता। -नंदी सु.१०९(२-३) ४. प. से किं तं अणुओगे? उ. अणुओगे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. मूलपढमाणुओगे य, २. गंडियाणुओगे य। प. से किं तं मूलपढमाणुओगे? मूलपढमाणुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा देवलोगगमणाई आउंचवणाई जम्मणाणि य अभिसेया रायवरसिरीओ पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ तित्थपवत्तणाणि य सीसा गणा गणधरा य, अज्जा य पवत्तिणीओ य, संघस्स चउव्धिहस्स जंच परिमाण, जिण-मणपज्जव-ओहिणाणिसमत्तसुयणाणिणो य, वादी य,अणुत्तरगई य उत्तरवेउव्विणो य मुणिणो जत्तिया,जत्तिया सिद्धा, सिद्धिपहो जह य देसिओ, जच्चिरं च कालं पादोवगओ, जो जहिं जत्तियाई भत्ताई छेयइत्ता अंतगडो मुणिवरुत्तमो तिमिरओघविष्पमुक्को मुक्खसुहमणुत्तरं च पत्तो। अन्ने य एवमाइया भावा मूलपढमाणुओगे कहिया। से तं भूलपढमाणुओगे। -नंदी सु.११०-१११

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