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ज्ञान अध्ययन
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दृष्टिवाद के सारभूत एवं विचित्र श्रुतरत्नरूप इस प्रज्ञापनाअध्ययन का श्री तीर्थंकर भगवान् ने जैसा वर्णन किया है उसी
प्रकार मैं भी वर्णन करूंगा। ४४. प्रज्ञापना सूत्र के छत्तीस पद
१. प्रज्ञापना, २. स्थान, ३. बहुवक्तव्य, ४. स्थिति, ५. विशेष, ६. व्युत्क्रान्ति,७. उच्छ्वास, ८. संज्ञा, ९. योनि, १०. चरम,
११. भाषा, १२. शरीर, १३. परिणाम, १४. कषाय, १५. इन्द्रिय, १६. प्रयोग, १७. लेश्या, १८. कायस्थिति, १९. सम्यक्त्व, २०. अन्तक्रिया,
अज्झयणमिणं चित्तं सुयरयणं दिट्ठिवायणीसंद। जह वण्णियं भगवया अहमवि तह वण्णइस्सामि ॥२॥
-पण्ण.प.१,सु.१ ४४. पण्णवणा सुत्तस्स छत्तीसं पया
१.पण्णवणा २ ठाणाई ३ बहुवत्तव्वं ४ ठिई ५ विसेसा य।। ६ वक्कंती ७ उस्साओ ८ सण्णा ९ जोणी य १० चरिमाइं॥६॥ ११ भासा १२ सरीर १३ परिणाम १४ कसाए १५ इंदिए १६ पओगे य। १७ लेसा १८ कायठिई या १९ सम्मत्ते २० अंतकिरिया य ॥७॥ २१ ओगाहणसंठाणे २२ किरिया २३ कम्मे त्ति यावरे। २४ कम्मस्स बंधए २५ कम्मवेदए २६ वेदस्स बंधए २७ वेयवेयए॥८॥ २८ आहारे २९ उवओगे ३० पासणया ३१ सण्णि ३२ संजमे चेव। ३३ ओही ३४ पवियारणा ।
३५ वेयणा य ३६ तत्तो समुग्धाए॥९॥ -पण्ण. प.१, सु.२ ४५. पण्णवणासुत्ते कतिपयपएसुसंगहणी गाहाओ
१दिसि २ गइ ३ इंदिय ४ काए५ जोगे ६ वेदे ७ कसाय ८ लेस्सा य॥ ९सम्मत्त.१० णाण ११ दंसण १२ संजय १३ उवओगे १४ आहारे॥ १५ भासग १६ परित्त १७ पज्जत्त १८ सुहुम १९ सण्णी २०-२१ भवऽथिए २२ चरिमे। २३ जीवे य २४ खेत्त २५ बंधे २६ पोग्गले २७ महदंडए चेव ॥ -पण्ण.प.३,सु.२१२
२१. अवगाहना-संस्थान, २२. क्रिया, २३. कर्म, २४. कर्म का बन्धक,२५. कर्म का वेदक, २६. वेद बन्धक, २७. वेद-वेदक, २८. आहार, २९. उपयोग, ३०. पश्यता, ३१. संज्ञी, ३२. संयम, ३३. अवधि, ३४. प्रविचारणा, ३५. वेदना, ३६. समुद्घात।
(ये छत्तीस पद प्रज्ञापना में हैं) ४५. प्रज्ञापना सूत्र में कतिपय पदों की संग्रहणी गाथायें
१.दिक् (दिशा), २. गति, ३. इन्द्रिय, ४. काय, ५. योग, ६. वेद, ७. कषाय, ८. लेश्या, ९. सम्यक्त्व, १०. ज्ञान, ११. दर्शन, १२. संयत, १३. उपयोग, १४. आहार, १५. भाषक, १६. परीत, १७. पर्याप्त, १८. सूक्ष्म, १९. संज्ञी, २०. भव, २१. अस्तिक, २२. चरम, २३. जीव, २४. क्षेत्र, २५. बन्ध, २६. पुद्गल और २७. महादण्डक, (इन २७ द्वारों के माध्यम से प्रज्ञापना सूत्र के बहुवक्तव्यता पद में जीवों के अल्पबहुत्व का वर्णन किया गया है) १. द्वादश (बारह), २. चतुर्विंशति (चौबीस), ३. सान्तर (अन्तरसहित), ४. एकसमय, ५. कहां से? ६. उद्वर्तना, ७. परभव सम्बन्धी आयुष्य और ८. आकर्ष। (इन आठ द्वारों के माध्यम से प्रज्ञापना सूत्र के व्युत्क्रान्ति पद में जीवों का वर्णन किया गया है) १. संस्थान, २. बाहल्य (स्थूलता), ३. पृथुत्व (विस्तार), ४. कति-प्रदेश (कितने प्रदेश वाली),५.अवगाढ़,६.अल्पबहुत्व, ७. स्पृष्ट, ८. प्रविष्ट, ९. विषय, १०. अनगार, ११.आहार, १२. आदर्श (दर्पण), १३. असि (तलवार), १४. मणि, १५. उदपान (या दुग्धपानक), १६. तैल, १७. फाणित (गुड़राब), १८. वसा (चर्बी), १९. कम्बल, २०. स्थूणा (स्तूप या लूंठ), २१. थिग्गल (आकाश थिग्गल पैबन्द), २२. द्वीप और उदधि, २३. लोक और २४. अलोक (इन चौबीस द्वारों के माध्यम से इन्द्रिय पद के प्रथम उद्देशक में इन्द्रिय संबंधी प्ररूपणा की गई है।)
१ बारस २ चउवीसाई ३ सांतरं, ४ एगसमय ५ कत्तोय। ६ उव्वट्टण परभवियाउयं ७ च अद्वैव आगरिसा ।।
-पण्ण. प.६, सु.५५९
१ संठाण २ बाहल्लं ३ पोहत्तं ४ कतिपएस ५ ओगाढे। ६ अप्पाबहु ७ पुट्ठ ८ पविट्ठ ९ विसय १० अणगार ११ आहारे॥ १२ अद्दाय १३ असी १४ य मणी १५ उडुपाणे १६ तेल्ल १७फाणिय॥ १८ वसा य १९ कंबल २० थूणा २१ थिग्गल २२ दीवोदहि २३-२४ लोगालोगे।
-पण्ण.प.१५, सु. ९७२