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१८. उच्चत्ते, १९. सूरिया कह आहिया। २०. अणुभावे के व संवुत्ते, एवमेयाई वीसई ॥५॥
-सूरिय. पा.१, सु.३ ४९. पढमपाहुडगय अट्ठपाहुडपाहुडाणं विसयं पडिवत्ति संखा य
परूवणं१. वड्ढो वड्ढी मुहूत्ताण, २. मद्धमंडल संठिई॥ ३. के ते चिण्णं परियरइ, ४. अंतरं किं.चरंति य॥१॥ ५. ओगाहइ केवइयं, ६. केवइयं य विकंपइ॥ ७. मंडलाण य संठाणे, ८. विक्खंभो-अट्ठ पाहुडा॥२॥
४. छ,
५. पंच य,
६. सत्तेव य,
द्रव्यानुयोग-(१) १८. समभूतल से चन्द्रादि की ऊँचाई कितनी है? १९. जम्बूद्वीप आदि में सूर्यादि की संख्या कितनी है? २०. चन्द्रादि का प्रभाव कैसा है?
बीस प्राभृतों में इन विषयों का वर्णन किया गया है। ४९. प्रथम प्राभृतगत आठ प्राभृत प्राभृतों के विषय और प्रतिपत्ति
संख्या का प्ररूपण१. नक्षत्र मासों के मुहूर्तों की हानि-वृद्धि किस प्रकार है ? २. सूर्यों की अर्द्ध मण्डल संस्थिति किस प्रकार है ? ३. कौनसा सूर्य किस सूर्य के संचरित क्षेत्र में संचरण करता है ? ४. एक सूर्य दूसरे सूर्य से कितने अन्तर पर गति करता है ? ५. 'कितने द्वीप समुद्रों का अवगाहन करके सूर्य गति करता है? ६. प्रत्येक सूर्य कितने क्षेत्र को छोड़कर गति करता है? ७. सूर्यमण्डलों के संस्थान कैसे हैं ? । ८. सूर्यमण्डलों का विष्कम्भ कितना है?
ये प्रथम प्राभृत के अन्तर्गत आठ प्राभृत प्राभृतों के विषयों का
प्ररूपण है। ४. प्रथम प्राभृत के चतुर्थ प्राभृत-प्राभृत में 'सूत्र १५ में'६
प्रतिपत्तियां हैं। ५. प्रथम प्राभृत के पंचम प्राभृत-प्राभृत में "सूत्र १६ में" ५
प्रतिपत्तियां हैं। ६. प्रथम प्राभृत के छठे प्राभृत-प्राभृत में "सूत्र ८ में" ७
प्रतिपत्तियां है। ७. प्रथम प्राभृत के सातवें प्राभृत-प्राभृत में "सूत्र ९ में "८
प्रतिपत्तियां है। ८. प्रथम प्राभृत के आठवें प्राभृत-प्राभृत में "सूत्र २० में" ३
प्रतिपत्तियां हैं। ९. प्रथम प्राभृत के पांच प्राभृत-प्राभृत में “सूत्र १५ से २० में"
ये २९ प्रतिपत्तियां हैं। ५०. द्वितीय प्राभृत के विषय और प्रतिपत्ति संख्या का प्ररूपण१. द्वितीय प्राभृत के प्रथम प्राभृत-प्राभृत में "सूर्य के उदय अस्त
से सम्बन्धित प्रतिपत्तियां हैं। २. द्वितीय प्राभृत के द्वितीय प्राभृत-प्राभृत में भेदधात और कर्ण
कला का कथन है। ३. द्वितीय प्राभृत के तृतीय प्राभृत-प्रांभृत में एक मूहूर्त में होने
वाली सूर्य की गति का वर्णन है। सर्वाभ्यन्तर मण्डल से निकलते हुए सूर्य की शीघ्र गति होती है। आभ्यन्तर मण्डलों में प्रवेश करते हुए सूर्य की मन्द गति होती है। सूर्य के एक सौ चौरासी मण्डलों में सूर्य का पुरुष चक्षु द्वारा
दर्शन और उनकी प्रतिपत्तियां हैं। १. द्वितीय प्राभृत के प्रथम प्राभृत-प्राभृत में "सूर्योदय सूर्यास्त"
से सम्बन्धित आठ प्रतिपत्तियां हैं।
७. अट्ठ,
८. तिन्नि य हवंति पडिवत्ती॥
९. पढमस्स पाहुडस्स, हवंति एयाउ पडिवत्ती॥१॥
-सूरिय. पा. १, सु.४-५ ५०. बिइयपाहुडस्स विसयं पडिवत्ति संखाय परूवणं
१. पडिवत्तीओ उदए, तह अस्थमणेसु य॥
२. भेयग्घाए कण्णकला,
३. मुहुत्ताणं गती ति य॥
निक्खममाणे सिग्घगई,
पविसंते मंदगई इय।
चुलसीइ सयं पुरिसाणं, तेसिंच पडिवत्तीओ॥२॥
१. उदयंमि अट्ठ भणिया,