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ज्ञान अध्ययन
समाहिमुत्तमं झाणजोगजुत्ता उववण्णा मुणिवरोत्तमा जह अणुत्तरेसु, पावंति जह अणुत्तरं अत्थ विसयसोखं,
तओ य चुआ कमेण काहिंति संजया जह य अंतकिरियं, एए अन्ने य एवमाई अस्था वित्थरेणं परूविज्जंति।
अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा जाव संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, तिण्णि वग्गा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेज्जाई पयसयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ता, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं णाया,एवं विण्णाया,
६२७ समाधि को प्राप्त कर और उत्तम ध्यान-योग से युक्त होते हुए जिस प्रकार अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होते हैं, वहां जैसे अनुपम विषय सुख को भोगते है, उन सबका अनुत्तरोपपातिकदशा में वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् वहां से च्युत होकर वे जिस प्रकार से संयम को धारण कर अन्तक्रिया करेंगे और मोक्ष को प्राप्त करेंगे, इन सबका तथा इसी प्रकार के अन्य अर्थों का विस्तार से इस अंग में वर्णन किया गया है। अनुत्तरोपपातिकदशा में परिमित वाचनाएं हैं यावत् संख्यात संग्रहणियां हैं। अंगों में यह नौवां अंग है, इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, दस अध्ययन हैं, तीन वर्ग हैं, दस उद्देशन-काल हैं, दस समुद्देशन-काल हैं, तथा पद-गणना की अपेक्षा संख्यात लाख पद कहे गए है, संख्यात अक्षर हैं यावत् उदाहरण देकर समझाया गया है। इसका सम्यक् अध्ययन करने वाला तदात्मरूप ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार इस अंग में चरण-करण की विशिष्ट प्ररूपणा की है यावत् उपदर्शन किया है।
यह अनुत्तरोपपातिकदशा का वर्णन है। (क) अनुत्तरोपपातिक दशा का उपोद्घातप्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर वावत् सिद्धगति नामक
स्थान प्राप्त द्वारा आठवें अंग अन्तकृद्दशा का यह अर्थ कहा है तोभन्ते ! नवमे अंग अनुत्तरोपपातिक दशा का क्या अर्थ कहा
एवं . चरणकरण परूवणया आघविज्जति जाव उवदंसिज्जंति
से तं अणुत्तरोववाइयदसाओ। -सम.सु.१४४ (क) अणुत्तरोववाइयदसाणं उक्खेवोप. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडगदसाणं अयमठे पण्णत्ते, नवमस्स णं भन्ते ! अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं के अट्ठे पण्णते? तएणं से सुहम्मे अणगारे जम्बू अणगारं एवं वयासी
उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स
अणुत्तरोववाइयदसाणं तिण्णि वग्गा पण्णत्ता। प. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तओ वग्गा पण्णत्ता,
तब आर्य सुधर्मा अणगार ने जम्बू अणगार से इस प्रकार
कहाउ. जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान
प्राप्त द्वारा नवमे अंग अनुत्तरोपपातिक दशा के तीन वर्ग कहे
गये हैं। प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक
स्थान प्राप्त द्वारा अनुत्तरोपपातिक दशा के तीन वर्ग कहे गए हैं तो
से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ? अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं णगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाइं समोसरणाई। रायाणो अम्मा-पियरो धम्मकहाओ धम्मायरिया इहलोग-परलोइया रिद्धिविसेसा भोगपरिच्चागा पव्वज्जाओ, परियागा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, पडिमाओ, उवसग्गा, सलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, अणुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती सुकुलपच्चायाईओ पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविजंति जाव उवदंसिज्जति। अणुतरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा जाव संखेज्जाओ संगहणीओ, से णं अंगठ्ठयाए णवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, तिण्णि वग्गा, तिण्णि उद्देसणकाला, तिण्णि समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरण करण परूवणया आघविज्जइ। से तं अणुत्तरोववाइयदसाओ।
-नंदी.,सु.९१