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शरीर अध्ययन
तमाए भवधारणिज्जा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं,उक्कोसेण अड्ढाइज्जाइंधणूसयाई,
उत्तरवेउव्विया जहण्णेण अंगुलस्स संखेज्जइभाग,
उक्कोसेण पंच धणुसयाई। प. तमतमापुढविणेरइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१.भवधारणिज्जा य, २.उत्तरवेउव्विया य। १. तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेण अंगुलस्स
असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण पंच धणूसयाई। २. तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेण अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेण धणुसहस्सं।
-अणु. उव. खेत्त. सु. ३४७/१-६ प. तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! के
महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेण
जोयणसयपुहत्तं। प. मणूस-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! के महालिया
सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेण
साइरेगं जोयणसयसहस्स। प. असुरकुमार-भवणवासि-देव पंचेंदिय- वेउव्वियसरीरस्स
णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहा सरीरोगाहणा
पण्णत्ता,तं जहा१.भवधारणिज्जा य, २.उत्तरवेउव्विया य। १. तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेण अंगुलस्स
असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण सत्त रयणीओ। २. तत्थं णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेण अंगुलस्स
संखज्जइभागं, उक्कोसेण जोयणसयसहस्सं। एवं जाव थणियकुमाराणं।
-पण्ण. प.२१,सु. १५३०-१५३२ वाणमंतराणं भवधारणिज्जा उत्तरवेउव्विया य जहा असुरकुमाराणं तहा भाणियव्वं।
४२९ तमःप्रभापृथ्वी में भवधारणीया शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ धनुष प्रमाण है। उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग
और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष प्रमाण है। प्र. भंते ! तमस्तमःपृथ्वी के नैरयिकों की शरीरावगाहना कितनी
कही गई है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार की कही गई है, यथा
१. भवधारणीया, २. उत्तरवैक्रिया। १. उनमें से भवधारणीया शरीर की जघन्य अवगाहना
अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष
प्रमाण की है। २. उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें
भाग और उत्कृष्ट एक हजार धनुष प्रमाण है। प्र. भंते ! तिर्यंञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर की
अवगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट
शतयोजन पृथक्त्व की होती है। प्र. भंते ! मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर की अवगाहना
कितनी कही गई है? उ. गौतम ! वह जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट
कुछ अधिक एक लाख योजन की है। प्र. भंते ! असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर
की अवगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! असुरकुमार देवों की दो प्रकार की शरीरावगाहना
कही गई है, यथा१. भवधारणीया, २. उत्तरवैक्रिया,। १. उनमें से भवधारणीया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के
असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट सात हाथ की है। २. उनमें से उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के
संख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख योजन की है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यंत समझ लेनी चाहिए।
वाणव्यन्तरों की भवधारणीया एवं उत्तरवैक्रियाशरीर की अवगाहना असुरकुमारों जितनी जानना चाहिए।
१. (क) वालुयप्पभाए भवधारणिज्जा बावठिंधणूई एक्का य रयणी,
उत्तरवेउव्विया बावठिंधणूई दोण्णि य रयणीओ। पंकप्पभाए भवधारणिज्जा बावट्ठि धणूई दोण्णि य रयणीओ, उत्तरवेउव्विया पणुवीसं धणुसयं। धूमप्पभाए भवधारणिज्जा पणुवीसंधणुसयं, उत्तरवेउव्विया अड्ढाइज्जाई धणुसयाई। तमाए भवधारणिज्जा अड्ढाइज्जाई धणुसयाई, उत्तरवेउव्विया पंच धणुसयाई।
अहेसत्तमाए भवधारणिज्जा पंच धणुसयाई, उत्तर वेउव्विया धणु सहस्सं, एयं उक्कोसेण। जहण्णेणं भवधारणिज्जा अंगुलस्स असंखेज्जइभार्ग, उत्तर वेउब्विया अंगुलस्स संखेज्जइभागं। _
"-पण्ण.प.२१,सु. १५२९. (ख) जीवा. पडि.३, सु.८६ (३) २. (क) अणु.कालदारे,सु.३४८
(ख) जीवा. पडि.१,सु.४२ (ग) ठाणं.अ.७सु.५७८