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ज्ञान अध्ययन
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अथवा मति चार प्रकार की कही गई है, यथा१. घड़े के पानी के समान, २. गढ़े के पानी के समान, ३. तालाब के पानी के समान, ३. समुद्र के पानी के समान ५
अहवा चउव्विहा मई पण्णत्ता,तं जहा१. अरंजरोदगसमाणा, २. वियरोदगसमाणा, ३. सरोदगसमाणा, ४. सागरोदगसमाणा,
-ठाणं अ.४, उ.४, सु.३६४ (२-३) (क) छव्विहा उग्गहमई पण्णत्ता,तं जहा
१. खिप्पमोगिण्हइ, २. बहुमोगिण्हइ, ३. बहुविहमोगिण्हइ, ४. धुवमोगिण्हइ, ५. अणिस्सियमोगिण्हइ,
६. असंदिद्धमोगिण्हइ। (ख) छव्विहा ईहामई पण्णत्ता,तं जहा
१. खिप्पमीहइ, २. बहुमीहइ, ३. बहुविहमीहइ, ४. धुवमीहइ, ५. अणिस्सियमीहइ,
६. असंदिद्धमीहइ। (ग) छव्विहा अवायमई पण्णत्ता,तं जहा
१. खिप्पमवेइ, २. बहुमवेइ, ३. बहुविहमवेइ ४. धुवमवेइ, ५. अणिस्सियमवेइ,
६. असंदिद्धमवेइ। (घ) छव्विहा धारणा (मई) पण्णत्ता,तं जहा
१. बहुधरेइ, २. बहुविहं धरेइ, ३. पोराणं धरेइ, ४. दुद्धरं धरेइ, ५. अणिस्सियं धरेड,
६. असंदिद्धं धरेइ। -ठाणं अ. ६, सु.५१० (१-४) १३. पगारान्तरेण सुय असुयणिस्सियाणं भेया
सुयनिस्सिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा१. अत्थोग्गहे चेव, २. वंजणोग्गहे चेव। असुयनिस्सिए वि एवमेव।
-ठाणं अ.२, उ.१, सु.६०(१९-२०) १४. वंजणुग्गह परूवगं दिट्ठते
अट्ठावीसइविहस्स आभिणिबोहियनाणस्स वंजणोग्गहस्स परूवणं करिस्सामि-पडिबोहगदिद्रुतेणं, मल्लगदिळेंतेण य।
(क) अवग्रहमति छह प्रकार की कही गई है, यथा
१. शीघ्र ग्रहण करना, २. बहुत ग्रहण करना, ३. बहुत प्रकार की वस्तुओं को ग्रहण करना ४. ध्रुव ग्रहण करना, ५. अनिश्रित (सहारा लिए बिना) ग्रहण करना,
६. असंदिग्ध ग्रहण करना। (ख) ईहामति छह प्रकार की कही गई है, यथा
१. शीघ्र ईहा करना, २. बहुत ईहा करना, ३. बहुत प्रकार की वस्तुओं की ईहा करना, ४. ध्रुव ईहा करना, ५. अनिश्रित ईहा करना,
६. असंदिग्ध ईहा करना। (ग) अवायमति छह प्रकार की कही गई है, यथा
१. शीघ्र अवाय करना, २. बहुत अवाय करना, ३. बहुत प्रकार की वस्तुओं का अवाय करना, ४. ध्रुव अवाय करना, ५. अनिश्रित अवाय करना,
६. असंदिग्ध अवाय करना। (घ) धारणा (मति) छह प्रकार की कही गई है, यथा
१. बहुत धारणा करना, २. बहुत प्रकार की वस्तुओं की धारणा करना, ३. पुरानी वस्तुओं की धारणा करना, ४. दुर्द्धर की धारणा करना, ५. अनिश्रित की धारणा करना,
६. असंदिग्ध की धारणा करना। १३. प्रकारान्तर से श्रुत-अश्रुत निश्रितों के भेद
श्रुतनिश्रित दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. अर्थावग्रह,
२. व्यंजनावग्रह, अश्रुतनिश्रित भी इसी तरह दो प्रकार का है।
१४. व्यंजनावग्रह प्ररूपक दृष्टांत
प्रतिबोधक दृष्टांत और मल्लक दृष्टांत द्वारा अट्ठाईस प्रकार के आभिनिबोधिक-ज्ञान (मतिज्ञान) के व्यंजनावग्रह की प्ररूपणा करूँगा। प. (क) प्रतिबोधक (जगाने वाले) का दृष्टान्त क्या है?
प. (क) से किं तं पडिबोहगदिद्रुतेणं?