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दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइं उद्देसणकाला,पंचासीई समुद्देसणकाला, अट्ठारस पदसहस्साई पदग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा,अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासया-कडा-निबद्धा-णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा
१. आघविज्जति, २. पण्णविज्जति, ३. परूविजंति, ४. दंसिज्जति, ५. निदंसिज्जति, ६. उवदंसिर्जति। से एवं आया एंव णाया,एवं विण्णाया।
द्रव्यानुयोग-(१) इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं, पच्चीस अध्ययन हैं, पचासी उद्देशन-काल हैं, पचासी समुद्देशन काल हैं। पद-गणना की अपेक्षा इसमें अट्ठारह हजार पद हैं, संख्यात अक्षर हैं, अनन्त गम आशय हैं पर्याय भी अनन्त हैं, त्रस जीव परिमित हैं, स्थावर जीव अनन्त हैं, शाश्वत (नित्य) कृत (अनित्य) निबद्ध (सम्बद्ध) और निकाचित् (नियमित) जिन प्रज्ञप्त भाव१. सामान्य रूप से कहे गए हैं, २. विशेष रूप से कहे गए हैं, ३. प्ररूपित किए गए हैं, ४. उपमाओं द्वारा दिखाए गए हैं, ५. हेतु-कारण कहकर दिखाए गए हैं, ६. उदाहरण देकर दिखाए गए हैं। आचारांग के अध्ययन से आत्मा वस्तु-स्वरूप का एवं आचार धर्म का ज्ञाता होता है, गुणपर्यायों का विशिष्ट ज्ञाता होता है अथवा अन्य मतों का भी विज्ञाता होता है। इसी प्रकार चरण (आचार) और करण (गोचर) की परूपणा के द्वारा वस्तुओं के स्वरूप सामान्य रूप से कहे गए हैं यावत् उदाहरण देकर समझाए गए हैं।
यह आचारांग का वर्णन है। (क) आचारांग के अध्ययन
ब्रह्मचर्य अर्थात् आचारांग सूत्र के नौ अध्ययन कहे गए हैं,यथा१. शस्त्रपरिज्ञा २. लोकविजय ३. शीतोष्णीय
४. सम्यक्त्व ५. आवन्ती-लोकसार ६. धूत ७. विमोह
८. उपधानश्रुत ९. महापरिज्ञा। भगवान् ने चूलिका-सहित आचारांग सूत्र के पच्चीस अध्ययन कहे हैं। सात सप्तकैक आचारचूला की दूसरी चूलिका के उद्देशक-रहित सात अध्ययन कहे गए हैं। आचार चूला की प्रथम चूलिका के उद्देशक सहित सात महाध्ययन कहे गये हैं।
आघविज्जति जाव
एवं चरणकरणपरूवणया उवदंसिज्जति।
-सम.सु.१३६
सेतं आयारे। (क) आयारस्स अज्झयणा
नव बंभचेरा पण्णत्ता,तं जहा
१. सत्थपरिन्ना, २. लोगविजओ, ३. सीओसणिज्जं, ४. सम्मत्तं, ५. आवंती,
६. धूतं, ७. विमोही,
८. उवहाणसुयं ९. महापरिण्णा।
-ठाणं. अ.९, सु.६६२ आयारस्स णं भगवओ सचूलियागस्स पणवीसं अज्झयणा पण्णत्ता,
-सम.सम.२५,सु.५ सत्त सत्तिकया पण्णत्ता।
सत्तमहज्झयणा पण्णत्ता।
-ठाणं. अ.७, सु. ५४५ (४-५)
१. प. से किं तं आयारे? प. आयारेणं समणाणं णिग्गंथाणं आयार-गोयर-विणय-वेणइय-सिक्खा-भासा-अभासा-चरण-करण-जाया-माया-वित्तीओ आघविज्जति।
से समासओ पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा-१.णाणायारे, २.दसणायारे, ३. चरित्तायारे, ४. तवायारे, ५.वीरियायारे। आयारेणं परित्ता वायणा जावसंखेज्जाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगठ्ठयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीति उद्देसणकाला, पंचासीति समुद्देसणकाला, अट्ठारस पयसहस्साई पदग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया एवं चरणकरण परूवणा आघविज्जइ, सेत्तं आयारे
-नंदी.सु.८३ सम.सम.९,सु.३