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ज्ञान अध्ययन
गमियाणं आइमाई सत्तसयाइं एक्कक्कदिवसेण उद्दिसिज्जति। एगिंदिय-सयाइं बारस एगेण दिवसेण उद्दिसिज्जंति। सेढिसयाई बारस एगेण दिवसेण उद्दिसिज्जति। एगिंदियमहाजुम्मसयाई बारस एगेण दिवसेण उद्दिसिज्जति। एवं बेइंदियाणं बारस, तेइंदियाणं बारस, चउरिदियाणं बारस, असन्निपंचिंदियाणं बारस, सन्निपंचेंदियमहाजुम्मसयाइं एक्कवीसं एगदिवसेणं उदिसिज्जति।
- ६०९) एक समान पाठ वाले बन्धीशतक आदि सात शतकों का वांचन एक दिन में पूर्ण करना चाहिए। बारह एकेन्द्रियशतकों का वाचन एक दिन में करना चाहिए। बारह श्रेणी शतकों का वांचन एक दिन में करना चाहिए। एकेन्द्रिय के बारह महायुग्मशतकों का वाचन एक ही दिन में करना चाहिए। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय के बारह, त्रीन्द्रिय के बारह, चतुरिन्द्रिय के बारह, असंज्ञीपंचेन्द्रिय के बारह शतकों का तथा इक्कीस संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्म शतकों का वांचन भी एक-एक दिन में करना चाहिए। इकतालीसवें राशियुग्मक की वांचना भी एक दिन में दी जानी चाहिए। व्याख्याप्रज्ञप्ति के शतक और उद्देशकों की संख्यासम्पूर्ण भगवती सूत्र के कुल एक सौ अड़तीस (१३८) शतक हैं, तथाउन्नीस सौ पच्चीस (१९२५) उद्देशक हैं।
रासीजुम्मसयं एगदिवसेणं उदिसिज्जंति।
-विया. उपसंहार सूत्र (ख) वियाहपण्णत्तीए सयगुदेगणिय संखा
सव्वाए भगवईए अट्ठतीसं सयं सयाणं (१३८)
(ख)
व्याख्याप्रज्ञप्ति में इक्यासी महायुग्मशतक कहे गए हैं।
उद्देसगाणं एगूणविसइ सयाणी पंचविसइ अहियाणी (१९२५)
-विया. उपसंहार वियाहपण्णत्तीए एकासीइ महाजुम्मसया पण्णत्ता।
-सम.सम.८१,सु.३ (ग) वियाहपण्णत्तीए पया
चुलसीइसयसहस्सा पयाणं पवरवरणाण-दंसीहिं। भावाभावमणंता पण्णत्ता एत्थमंगम्मि ॥१॥
-विया. पृ.११८३ सु.२ वियाहपण्णत्तीए णं भगवतीए चउरासीइं पयसहस्सा पदग्गेणं पण्णत्ता।
-सम. सम. ८४, सु. १० (घ) वियाहपण्णत्तीए सयगुदेसगाणं संगहणी गाहाओ
(ग) व्याख्याप्रज्ञप्ति के पद
सर्वश्रेष्ठ ज्ञान और दर्शन के धारक महापुरुषों ने इस अंगसूत्र में ८४ लाख पद कहे हैं तथा विधि-निषेधरूप भाव तो अनन्त कहे गए हैं। व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक भगवती सूत्र के पद-गणना की अपेक्षा
चौरासी हजार पद कहे गए हैं। (घ) व्याख्याप्रज्ञप्ति के शतकों के उद्देशकों की संग्रहणी
गाथाएं१. राजगृह नगर में “चलन", २. दुःख, ३. कांक्षा-प्रदोष, ४.(कर्म) प्रकृति, ५. पृथ्वियां, ६. यावत् (जितनी दूर से), ७.नैरयिक,८.बाल,९.गुरुक,१०.चलनादि। प्रथम शतक में ये दस उद्देशक हैं। १. श्वासोच्छ्वास, २. समुद्घात, ३. पृथ्वी, ४. इन्द्रियां, ५. निर्ग्रन्थ, ६. भाषा, ७. देव, ८.(चमरेन्द्र) सभा, ९. द्वीप (समय क्षेत्र का स्वरूप), १०. अस्तिकाय। दूसरे शतक में ये दस उद्देशक हैं।
१ रायगिह चलण २ दुक्खे ३ कंखपओसे य ४ पगइ ५ पुढवीओ। ६ जावंते ७ नेरइए ८ बाले ९ गुरुए य १० चलणाओ॥१॥ __-विया.स.१, उ.१,सु.२
१ आणमइ २ समुग्घाया ३ पुढवी ४ इंदिय ५ णियंठ ६ भासा य। ७ देव ८ सभा ९ दीव १० अत्थि य बीयम्मि सए दसुद्देसा ॥२॥ -विया. स. २, उ.१, सु.१
१. तवनियमविणयवेलो, जयइ सदा नाणविमलविपुलजलो।
हेउसयविपुलवेगो, संघसमुद्दो गुणविसालो॥२॥ णमो गोयमाईणं गणहराणं, णमो भगवईए वियाहपण्णत्तीए, णमो दुवालसंगस्स गणिपिडगस्स। कुम्मुयसुसंठियचलणा, अमलियकोरेटबिंटसंकासा। सुयदेवया भगवई, मम मतितिमिरं पणासेउ ॥१॥ वियसियअरविंदकरा, नासियतिमिरा सुयाहिया देवी। मज्झं पि देउ मेहं, बुहविबुहणमंसिया णिच्चं ॥१॥ सुयदेवयाए पणमिमो, जीए पसाएण सिक्खियं नाणं। अण्णं पवयणदेविं,संतिकरिं तं नमसामि ॥२॥
सुयदेवया यजक्खो, कुंभधरो बंभसंतिबेरोट्टा। विज्जा य अतंर्गुडी, देउ अविग्घं लिहंतस्स ॥३॥ -विया. उपसंहार सूत्र यह अंश लेखनकर्ता आदि के द्वारा परिवर्धित है ऐसा व्याख्याकार
पूर्वाचार्यों का मंतव्य है। २. (क) १ उस्सास खंदए वि य २ समुग्धाय ३-४ पुढविदिय ५ अण्णउत्थि
६ भासाय।
७ देवा य ८ चमरचंचा, ९-१० समयक्खित्तत्थिकाय बीय सए॥१॥ (ख) बीए १ खंदए २ समुग्घाय ३ पुढवि तह ४ इन्दिय ५ अण्णउत्थिय। ६ मण्णामि ७ देव ८ नयरी ९-१० समयक्रवेत्त अण्णउत्थिय॥
-विया.स.२,उ.१.सु.१का पाठान्तर