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१ केरिस विउव्वणा २ चमर ३ किरिय ४-५ जाणित्थि ६ नगर ७ पाला य। ८ अहिवइ ९ इंदिय १० परिसा तइयम्मि सए दसुदेसा ॥१॥ -विया. स.३,उ.१, सु.१
१-४ चत्तारि विमाणेहिं ५-८ चत्तारि य होंति रायहाणीहिं। ९ नेरइए १० लेस्साहि य दस उद्देसा चउत्थसए॥१॥
-विया.स.४,उ.१.सु.१
१ चंप रवि २ अणिल ३ गंठिय ४ सद्दे ५-६ छउमायु ७ एयणं ८ णियंठे। ९ रायगिह १० चंपाचंदिमा य दस पंचम्मि सए॥१॥
-विया. स. ५, उ.१, सु.१
१ वेयणं २ आहार ३ महस्सवे य ४ सपदेस ५ तमुयए ६ भविए।७ साली ८ पुढवी ९-१० कम्मऽन्नउत्थि दस छट्ठगम्मि सए॥१॥ -विया. स. ६, उ. १, सु. १ १ आहार २ विरइ ३ थावर ४ जीवा ५ पक्खी य ६ आउ ७ अणगारे। ८ छउमत्थ ९ असंवुड १० अन्नउत्थि दस सत्तमम्मि सए॥१॥
-विया. स.७, उ.१,सु.१ १ पोग्गल २ आसीविस ३ रुक्ख, ४ किर्यि ५ आजीव ६-७ फासुगमदत्ते। ८ पडिणीय ९ बंध १० आराहणा य दस अट्ठमम्मि सए॥१॥ -विया. स. ८, उ.१, सु. १ १ जंबुद्दीवे २ जोइस ३-३० अंतरदीवा ३१ असोच्च ३२ गंगेय। ३३ कुंडग्गामे ३४ पुरिसे नवमम्मि सयम्मि चोत्तीसा ॥१॥
-विया. स.९, उ.१,सु.१
द्रव्यानुयोग-(१) १.विकुर्वणा-शक्ति,२.चमरेन्द्र का उत्पात, ३. क्रिया, ४. देव द्वारा विकुर्वित यान, ५. साधु द्वारा स्त्री आदि के रूपों की विकुर्वणा, ६. नगर,७. लोकपाल, ८. अधिपति, ९. इन्द्रिय, १०. परिषद् । तीसरे शतक में ये दस उद्देशक हैं। एक से चार उद्देशकों में विमान सम्बन्धी, पांच से आठ उद्देशकों में राजधानियों का, नवमें उद्देशक में नैरयिकों का
और १०. दसवें उद्देशक में लेश्याओं सम्बन्धी वर्णन है। चौथे शतक में ये दस उद्देशक हैं। १. चम्पा नगरी में सूर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर, २. वायु सम्बन्धी प्ररूपण, ३. जालग्रन्थी का उदाहरण, ४. शब्द, ५. छद्मस्थ, ६. आयु, ७. पुद्गलों के कम्पन, ८. निर्ग्रन्थी-पुत्र अनगार, ९. राजगृह, १०. चम्पानगरी में चन्द्र। पांचवें शतक में ये दस उद्देशक हैं। १. वेदना, २. आहार, ३. महाश्रव, ४. सप्रदेश, ५. तमस्काय, ६. भव्य, ७. शाली, ८. पृथ्वी, ९. कर्म, १०. अन्यतीर्थिक। छठे शतक में ये दस उद्देशक हैं। १. आहार, २. विरति, ३. स्थावर, ४. जीव, ५. पक्षी, ६. आयुष्य, ७. अनगार, ८. छद्मस्थ, ९. असंवृत, १०. अन्यतीर्थिक। सातवें शतक में ये दस उद्देशक हैं। १. पुद्गल, २. आशीविष, ३. वृक्ष, ४. क्रिया, ५. आजीव, ६. प्रासुक, ७. अदत्त, ८. प्रत्यनीक, ९. बन्ध, १०. आराधना। आठवें शतक में ये दस उद्देशक हैं। १. जम्बूद्वीप, २. ज्योतिष, ३-३०. (अट्ठाईस) अन्तर्वीप, ३१. अश्रुत्वाकेवली, ३२. गांगेय अनगार, ३३. (ब्राह्मण) कुण्डग्राम, ३४. पुरुष। नौवें शतक में ये चौंतीस उद्देशक हैं। १. दिशा, २. संवृत अनगार, ३. आत्मऋद्धि, ४. श्यामहस्ती, ५. देवी, ६. सुधर्मा सभा और (७ से ३४) उत्तरवर्ती अन्तर्वीप। दसवें शतक में ये चौंतीस उद्देशक हैं। १. उत्पल, २. शालूक, ३. पलाश, ४. कुम्भी, ५. नाडीक, ६. पद्म, ७. कर्णिका, ८. नलिन, ९. शिवराजर्षि, १०. लोक, ११. काल, १२. आलंभिका नगरी। ग्यारहवें शतक में ये बारह उद्देशक हैं। १. शंख, २. जयन्ती, ३. पृथ्वी, ४. पुद्गल, ५. अतिपात, ६. राहू, ७. लोक, ८. नाग, ९. देव, १०. आत्मा। बारहवें शतक में ये दस उद्देशक हैं। १. पृथ्वी, २. देव, ३. अनन्तर, ४. पृथ्वी, ५. आहार, ६. उपपात,७. भाषा, ८. कर्म, ९. अनगार, केयाघटिका, १०. समुद्घात। तेरहवें शतक में ये दस उद्देशक हैं। १. चरम, २. उन्माद, ३. शरीर, ४. पुद्गल, ५. अग्नि, ६. आहारपृच्छा, ७. संश्लिष्ट, ८. अन्तर, ९. अनगार, १०. केवली। चौदहवें शतक में ये दस उद्देशक हैं। १.अधिकरणी, २. जरा, ३. कर्म, ४. यावतीय, ५. गंगदत्त, ६. स्वप्न, ७. उपयोग, ८. लोक, ९. बलि, १०. अवधि, ११. द्वीप, १२. उदधि, १३. दिशा, १४. स्तनित। सोलहवें शतक में ये चौदह उद्देशक हैं।
१ दिसि २ संवुडअणगारे ३ आइड्ढी ४ सामहत्थि ५ देवि ६ सभा। ७-३४ उत्तर अतंरदीवा दसमम्मि सयम्मि चोत्तीसा॥१॥
-विया. स. १०,उ.१, सु.१ १ उप्पल २ सालु ३ पलासे ४ कुंभी ५ नालीय ६ पउम ७ कण्णीय। ८ नलिण ९ सिव १० लोग ११-१२ काला लभिया दस दो य एक्कारे॥१॥ -विया. स. ११, उ.१,सु.१
१ संखे २ जयंति ३ पुढवी ४ पोग्गल ५ अइवाय ६ राहू
७ लोगे य। ८ नागे य ९ देव १० आया आरसमए • दसुद्देसा ॥१॥
-विया. स. १२, उ. १, सु.१ १ पुढवी २ देव ३ मणंतर ४ पुढवी ५ आहारमेव ६ उववाए। ७ भासा ८ कम्म ९ अणगारे केयाघडिया १० समुग्घाए॥१॥ -विया. स. १३, उ.१, सु.१ १. चर, २. उम्माद, ३. सरीरे, ४ पोग्गले, ५. अगणी तहा, ६. किमाहारे। ७-८ संसिट्ठमंतरे खलु, ९. अणगारे,१०.केवली चेव। -विया. स. १४, उ.१, सु.१ १ अहिकरणि २ जरा ३ कम्मे ४ जावतियं ५ गंगदत्त ६ सुमिणे य। ७ उवयोग ८ लोग ९ बलि १० ओहि ११ दीव १२ उदही १३ दिसा १४ थणिए॥
-विया.स.१६,उ.१.सु.१