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ज्ञान अध्ययन
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दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता। संखेज्जाइं अक्खराइं जाव उवदंसिज्जंति। से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया
दस उद्देशन-काल हैं, दस समुद्देशन-काल हैं, पद गणना की अपेक्षा संख्यात लाख पद हैं, संख्यात् अक्षर हैं यावत् उदाहरण देकर समझाए गये हैं। इसका सम्यक् अध्ययन करने वाला तदात्मरूप ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार इस अंग में चरण करण की विशिष्ट प्ररूपणा की
है यावत् उपदर्शन किया है। यह उपासकदशा का वर्णन है। (क) उपासकदशांग का उपोद्घातप्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगतिनामक
शाश्वत स्थान प्राप्त द्वारा छठे अंग ज्ञाताधर्मकथा का यह अर्थ कहा है तोभन्ते ! सातवें अंग उपासकदशा का क्या अर्थ कहा है?
एवं चरण करण परूवणया आघविज्जंति जाव
उवदंसिज्जंति से तं उवासगदसाओ। -सम., सु. १४२ (क) उवासगदसांगस्स उक्खेवोप. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स नायाधम्मकहाणं अयमढे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भन्ते ! अंगस्स उवासगदसाणं के अट्ठे
पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता,तं जहा१.आणंदे,२.कामदेवे य,३.गाहावइचुलणीपिया, ४.सुरादेवे, ५. चुल्लसयए, ६. गाहावइकुंडकोलिए। ७. सद्दालपुत्ते, ८. महासयग, ९. नंदिणीपिया,
१०.सालिहीपिया।।१।। प. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता,
पढमस्सणं भन्ते ! अज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू !
-उवा.सु.२ (ख) पढमज्झयणस्स निक्खेवो
एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाय सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि।
-उवा. अ.१,सु.८६ (ग) बिईयज्झयणस्स उक्खेवोप. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भन्ते ! अज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते?
उ. जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगतिनामक
शाश्वत स्थान प्राप्त द्वारा सातवें अंग उपासकदशा के दस अध्ययन कहे हैं, यथा१.आनन्द, २. कामदेव, ३. गाथापति चुलनीपिता, ५. सुरादेव, ५. चुल्लशतक, ६. गाथापति कुण्डकोलिक, ७. सकडालपुत्र, ८. महाशतक, ९. नन्दिनीपिता,
१०. शालिहीपिता। प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवन्त महावीर यावत् सिद्धगति नामक
शाश्वत स्थान प्राप्त द्वारा सातवें अंग उपासक दशा के दस अध्ययन कहे हैं तो
भन्ते ! प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? उ. जम्बू !(आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें) (ख) प्रथम अध्ययन का निक्षेप
जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक शाश्वत स्थान प्राप्त द्वारा उपासकदशा के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है ऐसा मैं कहता हूँ।
(ग) द्वितीय अध्ययन का उपोद्घातप्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक
शाश्वत स्थान प्राप्त द्वारा सातवें अंग उपासकदशा के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो भन्ते ! द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ कहा है?
१. से किं तं उवासगदसाओ?
उवासगदसासु णं समणोवासगाणं णगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाइं समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मकहाओ धम्मायरिया इहलोग-परलोइया रिद्धिविसेसा भोगपरिच्चाया परियागा सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई सीलब्बय-गुण-वेरमण-पच्चक्रवाण-पोसहोववासपडिवज्जणया पडिमाओ, उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाईओ पुण बोहिलाभा अंतकिरियाओ य आघविज्जति जाव उवदंसिज्जति। उवासगदसासु णं परित्ता वायणा जाव संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्ठयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयक्वंधे, दस अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेज्जाई पदसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरण करण परूवणा आघविज्जइ से तं उवासगदसाओ।
-नंदी.सु.८९ . २. इसी प्रकार सभी (२-१०) अध्ययनों का उपसंहार सूत्र है।