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द्रव्यानुयोग-(१)
भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक शाश्वत स्थान प्राप्त द्वारा ज्ञाता के प्रथम श्रुतस्कन्ध में कितने
अध्ययन कहे हैं? उ. जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक
शाश्वत स्थान प्राप्त द्वारा ज्ञातों (उदाहरणों) के उन्नीस अध्ययन कहे हैं, यथा१.उत्क्षिप्तज्ञात, २. संघाटक, ३.अंडक,४. कूर्म, ५.शैलक राजर्षि ६. तुंब,७. रोहिणी (पुत्रवधु), मल्ली (राजकुमारी) ९. माकंदी पुत्र, १०. चन्द्र (कृष्ण-शुक्ल पक्ष की वध-घट)। ११. दावद्रव (वृक्ष), १२. उदक ज्ञात १३. मेंढक (दर्दुर), १४. तेतली पुत्र, १५. नंदी फल, १६. अवरकंका (नगरी) १७. आकीर्ण अश्व, १८.सुसमा दारिका।
१९. पुंडरीक (राजा)। ये उन्नीस नाम हैं। प्र. भन्ते ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक
शाश्वत स्थान प्राप्त द्वारा ज्ञाता के उन्नीस अध्ययन कहे हैं तो
पढमस्स णं भंते ! सुयक्खंधस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं नायाणं
कइ अज्झयण पण्णत्ता? उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं नायाणं एगूणवीसं अज्झयणा पण्णता,तं जहा१. उक्खित्तणाए २, संघाडे, ३. अंडे ४. कुम्मे य ५. सेलगे। ६.तुंबे य ७.रोहिणी ८. मल्ली, ९. मायंदी १०. चंदिमा इय॥ . . ११. दावद्दवे १२. उदगणाए, १३. मंडुक्के १४. तेयली विय। १५.नंदीफले १६. अवरकंका १७. आइण्णे १८. सुंसुमा इय॥
१९.अवरे य पुंडरीए, नामा एगूणवीसमे॥१ प. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइनाधेयं ठाणं संपत्तेणं नायाणं एगूणवीसं अज्झयणा पण्णत्ता,
पढमस्स णं भन्ते! अज्झयणस्स के अढे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू! -णाया. सुय. १, अ.१, सु.१-१३ (ख) पढमज्झयणस्स निक्खेवो
एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं (अप्पोपालंभ निमित्त) पढमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। त्ति बेमि।
-णाया.सुय. १, अ.१, सु.२१ (ग) बिईज्झयणस्स उक्खेवोप. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं पढमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते,
बिइयस्स णं भन्ते ! नायज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जम्बू।३ -णाया. सुय. १, अ. २, सु. १-२ (घ) छट्ठज्झयणस्स उक्खेवोप. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवां महावीरेणं जाव
सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्तेणं पंचमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते,
छट्ठस्स णं भन्ते ! णायज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं
नयरे होत्था। तत्थ णं रायगिहे णयरे सेणिए नाम राया होत्था। तस्स णं रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरित्थमे दिसीभाए एत्थ णं गुणसिलए नामं चेइए होत्था। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे जाव जेणेव रायगिहे णयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव समोसढे अहापडिरूवं
भन्ते ! प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है? उ. जम्बू ! (आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें) (ख) प्रथम अध्ययन का निक्षेप
जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा (अल्प उपालंभ देने रूप) प्रथम ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ कहा है। ऐसा मैं कहता हूँ।
(ग) दूसरे अध्ययन का उपोद्घातप्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक
स्थान प्राप्त द्वारा प्रथम ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ कहा है तो
भन्ते ! द्वितीय ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ कहा है? उ. जम्बू ! (आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें) (घ) छठे अध्ययन का उपोद्घातप्र. भन्ते ! यदि भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक शाश्वत
स्थान प्राप्त द्वारा पाँचवें ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ कहा गया है तो?
भंते ! छठे ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ कहा है? उ. जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था,
उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा रहता था, उस राजगृह नगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में (ईशान कोण में) गुणशीलनामक चैत्य (उद्यान) था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर अनुक्रम से विचरते हुए यावत् जहां राजगृह नगर था और जहां गुणशील नामक चैत्य था, वहां पधारे।
१. सम. सम., १९, सु. १ २. सभी अध्ययनों (२-१९) के उपसंहार सूत्र इसी प्रकार है।
३. सभी अध्ययनों (३-१९) के उपोद्घात सूत्र इसी प्रकार है।