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ज्ञान अध्ययन
२१.(३) ठाणं
प. से किं तं ठाणे? उ. ठाणे णं ससमया ठाविज्जति जाव लोगालोगे वा
ठाविज्जति, ठाणे णं दव्य-गुण-खेत्त-काल-पज्जव-पयत्थाणं
सेला सलिला य समुद्दा, सुरभवण-विमाण-आगरणदीओ। णिहिओ पुरिसज्जाया,सरा य गोत्ता य जोइसंचाला ॥१॥
एक्कविहवत्तव्वयं जाव दसविहवत्तव्वयं, जीवाणं पोग्गलाण य लोगट्ठाई च णं परूवणया आघविज्जति। ठाणस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तिओ, संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए तइए अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, एक्कवीसं उद्देसणकाला, एक्कवीसं समुद्देसणकाला, बावत्तरं पयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ताई। संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया,
[ ६०५ ) २१.(३) स्थानांग सूत्र
प्र. स्थान (स्थानांग सूत्र) में क्या है? उ. स्थानांग में स्व-सिद्धांत स्थापित किया जाता है यावत्
लोकालोक स्थापित किया जाता है। स्थानांग में जीव आदि पदार्थों के द्रव्य, गुण, क्षेत्र, काल और पर्यायों का निरूपण किया गया है। तथा शैलों (पर्वतों) का, गंगा आदि महानदियों का, समुद्रों, देव भवनों, विमानों, आकरों, सामान्य नदियों, चक्रवर्ती की निधियों एवं पुरुषों की अनेक जातियों का, स्वरों के भेदों, गोत्रों और ज्योतिष्क देवों के संचार का वर्णन किया गया है। एक से दश पर्यन्त की संख्या को लेकर, जीवों का, पुद्गलों का तथा लोक में अवस्थित (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि) द्रव्यों का भी प्ररूपण किया गया है। स्थानांग की वाचनाएं परिमित हैं, संख्यात अनुयोगद्वार हैं, संख्यात प्रतिपत्तियां हैं, संख्यात वेष्टक (छंद) हैं, संख्यात श्लोक हैं, संख्यात नियुक्तियां हैं, संख्यात संग्रहणियां हैं अंगों की अपेक्षा यह तीसरा अंग है, इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, दस अध्ययन हैं, इक्कीस उद्देशन काल हैं, इक्कीस समुद्देशन काल हैं। पद-गणना की अपेक्षा इसमें बहत्तर हजार पद हैं। संख्यात अक्षर हैं यावत् उदाहरण देकर समझाए गए हैं। इसका अध्ययन करने वाला तदात्म रूप ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार इसमें चरण करण की प्ररूपणा की गई है यावत् उपदर्शन किया गया है।
यह स्थानांग सूत्र का वर्णन है। (क) आचार, सूत्रकृत और स्थानांग के अध्ययनआचार चूलिका को छोड़कर तीन गणिपिटकों के सत्तावन अध्ययन कहे गए हैं, यथा
१.आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग। २२.(४) समवायांग सूत्र
प्र. समवाय (समवायांग सूत्र) में क्या है? उ. समवायांग में स्व सिद्धांतों का कथन किया गया है यावत
लोक-अलोक का कथन किया है।
एवं चरण करण परूवणा आघविज्जइ जाव उवंदसिज्जइ। से तं ठाणे।
-सम. सु. १३८ (क) आयार-सूयगड-ठाणाणं अज्झयणातिण्हं गणिपिडगाणं आयारचलिया वज्जाणं सत्तावन्नं अज्झयणा पण्णत्ता,तं जहा
१.आयारे, २.सूयगडे, ३.ठाणे। -सम. सम.५७, सु.१ २२.(४) समवाओ
प. से किं तं समवाए? उ. समवाए णं ससमया समासिज्जति जाव लोगालोगे
समासिज्जइ।
से किं तं ठाणे? ठाणे णं जीवा ठाविति, अजीवा ठाविज्जंति,जीवाजीवा ठाविजंति, लोए ठाविज्जइ, अलोए ठाविज्जइ, लोयालोए ठाविज्जइ, ससमए ठाविज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमय-परसमए ठाविज्जइ। ठाणे णं टंका कूडा सेला सिहरिणो पब्भारा कुंडाई गुहाओ आगरा दहा णदीओ आघविजंति, ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्ढीए दसट्ठाणविवड्ढियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ।
ठाणे णं परित्ता वायणा जाव संखेज्जाओ संगहणिओ। से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे, एगे सुयक्बंधे, दस अज्झयणा, एक्कवीस उद्देसणकाला, एक्कवीसं समुद्देसणकाला, बावत्तरि पदसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण करण परूवणा आघविज्जइ। से तंठाणे।
-नंदी. सु. ८५