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उ. पडिबोहगदिद्रुतेणं
से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं सुत्तं पडिबोहेज्जा "अमुगा ! अमुग !“त्ति। तत्थ य चोयगे पण्णवर्ग एवं वयासी
प. किं एगसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छंति?
दुसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागछंति जाव दससमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छंति? संखेज्जसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छंति? असंखेज्जसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छंति?
उ. एवं वदंतं चोयगं पण्णवगे एवं वयासी
"णो एकसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छंति, णो दुसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छंति जाव णो दससमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छंति, णो संखेज्जसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छंति, असंखेज्जसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छति।
सेत्तं पडिबोहगदिद्रुतेणं। प. (ख) से किं तं मल्लगदिद्रुतेणं? उ. मल्लगदिद्रुतेणं
से जहाणामए केइ पुरिसे आवागसीसाओ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदु पक्खिवेज्जा, से णठे, अण्णे पक्खित्ते, से विणठे,
द्रव्यानुयोग-(१) उ. प्रतिबोधक का दृष्टान्तजिस प्रकार सोए हुए किसी व्यक्ति को-“हे अमुक ! हे अमुक" इस प्रकार कह कर जगाए वहां पर प्रश्नकर्ता प्ररूपक से इस
प्रकार कहता है किप. क्या (उस पुरुष के कानों में) एक समय में प्रविष्ट पुद्गल
ग्रहण करने में आते हैं ? क्या दो समय में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं यावत् दस समयों में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं ? क्या संख्यात समयों में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं ? क्या असंख्यात समयों में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में
आते हैं? उ. इस प्रकार कहते हुए प्रश्नकर्ता को प्ररूपक इस प्रकार कहे
एक समय में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में नहीं आते हैं, दो समय में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में नहीं आते हैं यावत् दस समय में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में नहीं आते हैं, संख्यात समय में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में नहीं आते हैं। किन्तु असंख्यात समयों में प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं।
यह प्रतिबोधिक का दृष्टान्त हुआ। , प्र. (ख) मल्लक (सिकोरे) का दृष्टान्त क्या है? उ. मल्लक दृष्टान्त
जिस प्रकार कोई व्यक्ति आपाकशीर्ष (कुम्हार के बर्तन पकाने के स्थान “आवा') से एक सिकोरा (प्याला) लेकर उसमें पानी की एक बूंद डाले तो वह नष्ट हो जावे, अन्य बूंद डाले तो वह भी नष्ट हो जावे, इसी प्रकार (पानी की एक-एक बूंद) डालते-डालते पानी की कोई बूंद ऐसी होगी जो प्याले को गीला करेगी। तत्पश्चात् कोई बूंद ऐसी होगी जो उसमें ठहरेगी, कोई बूंद ऐसी होगी जिससे प्याला भर जाएगा, कोई बूंद ऐसी होगी जिससे पानी बाहर गिरने लगेगा। इसी प्रकार वह व्यंजन (शब्द के) अनन्त पुद्गल क्रमशः प्रवेश करते-करते कान में पूरित हो जाते हैं तब वह पुरुष हुंकार करता है, किन्तु यह नहीं जानता कि यह किसकी आवाज है ? जब वह ईहा करता है, तब जानता है कि यह अमुक व्यक्ति आवाज दे रहा है। बाद में वह अवाय करता है, तब वह अच्छी तरह जान लेता है कि अमुक व्यक्ति ही आवाज दे रहा है। बाद में वह धारणा करता है, तब वह संख्यात अथवा असंख्यातकाल पर्यन्त (बहुत समय
तक) धारण किए रहता है (विस्मृत नहीं होता है)। प्र. जैसे किसी पुरुष ने अव्यक्त शब्द को सुनकर "यह कोई शब्द
है" इस प्रकार जाना किन्तु यह नहीं जाना कि "यह शब्द किसका है?"
एवं पक्खिप्पमाणेसु पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगबिंदू, जणं तं मल्लगं रावेहिइ, होही से उदगबिंदू जंणं तंसि मल्लगंसि ठाहिइ, होही से उदगबिंदू, जण्णं तं मल्लगं भरेहिइ, होही से उदगबिंदू, जंणं तं मल्लगं पवाहेहिइ, एवामेव पक्खिप्पमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं अणंतेहि पोग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरित होइ ताहे "हुँ" ति करेइ णो चेवणं जाणइ, के वेस सद्दाइ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ, अमुगे एस सद्दाइ,
तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ,
तओणं धारणं पविसइ तओणं धारेइ संखेज्जं वा कालं,असंखेज वा कालं।
प. से जहाणामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सद्दे सुणेज्जा तेणं सद्दे
त्ति उग्गहिए,णो चेवणं जाणइ, के वेस सद्दाइ?