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ज्ञान अध्ययन
उ. तओ ईहं पविसइ,
तओ जाणइ, अमुगे एस सद्दे, तओणं अवायं पविसइ, तओ से अवगयं हवइ,
तओ धारणं पविसइ, तओणं धारेइ संखेज्जंवा कालं असंखेज्जवा कालं।
एवं अव्वत्तं रूवं, अव्वत्तं गंध, अव्वत्तं रसं, अव्वत्तं फासं,
पडिसंवेदेज्जा। प. से जहाणामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पडिसंवेदेज्जा,
तेणं सुमिणे त्ति उग्गहिए, णो चेव णं जाणइ, के वेसे
सुमिणे ?त्ति, . उ. तओ ईहं पविसइ,
तओ जाणइ, अमुगे एस सुमिणे त्ति, तओ अवायं पविसइ, तओ से अवगयं हवइ, तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ, संखेज्जं वा कालं,असंखेज वा कालं।
से तं मल्लगदिट्ठतेणं से तं सुयणिस्सियं।
-नंदी. सु. ६२-६४ १५. उग्गहाईसु वण्णाइ अभाव परूवणं
प. अह भन्ते !१.उग्गहे,२.ईहा,३.अवाये, ४.धारणा, ___ एस णं कइवण्णा, कइगंधा, कइरसा, कइफासा पण्णता? उ. गोयमा ! उग्गहे जाव धारणा, एस णं अवन्ना जाव
अफासा पण्णत्ता। -विया. स. १२, उ. ५, सु. १० १६. उग्गहाईणं काल परूवणं
उग्गहे एक्कसामइए, अंतोमुहुत्तिया ईहा, अंतोमुहुत्तिए अवाए, धारणा संखेज वा कालं, असंखेज वा कालं।
-नंदी.सु.६१ १७. सुयनाणस्स भेया
प. से किं तं सुयनाणपरोक्खं? उ. सुयनाणपरोक्खं चोद्दसविहं पण्णत्तं, तं जहा
१. अक्खरसुयं, २. अणक्खरसुयं, ३. सण्णिसुयं, ४. असण्णिसुयं, ५. सम्मसुयं, ६. मिच्छसुयं, ७. सादीयं,
८. अणादीयं, ९, सपज्जवसियं, १०. अपज्जवसियं, ११. गमियं, १२. अगमियं, १३. अंगपविजें, १४. अणंगपविट्ठ २
-नंदी.सु.७२
. ५९७ उ. बाद में वह ईहा करता है,
तब यह जानता है कि “यह अमुक शब्द है"। बाद में यह अवाय (निश्चित ज्ञान) करता है, तब उसे पूरी जानकारी हो जाती है, बाद में वह धारणा करता है, तब उसे संख्यातकाल या असंख्यातकाल पर्यन्त धारणा (संस्मृति) बनी रहती है। इसी प्रकार वह अव्यक्त रूप, अव्यक्त गंध, अव्यक्त
रसास्वादन और अव्यक्त स्पर्श को जानता है। प्र. जैसे कोई पुरुष अव्यक्त स्वप्न को देखे, तो उसे “यह स्वप्न
है"ऐसा बोध होता है, किन्तु यह नहीं जानता कि “यह कैसा
स्वप्न है?" उ. बाद में वह ईहा करता है,
तब यह जानता है कि 'यह अमुक स्वप्न है।' बाद में वह अवाय करके पूर्ण रूप में जानता है, बाद में वह धारणा करता है, तब उसे संख्यातकाल या असंख्यातकाल तक धारणा (स्मृति) बनी रहती है। यह मल्लक दृष्टान्त से अवग्रह का स्वरूप है,
यह श्रुतनिश्रित ज्ञान है। १५. अवग्रहादि में वर्णादि के अभाव का प्ररूपण
प्र. भन्ते !१. अवग्रह, २. ईहा, ३. अवाय और ४. धारणा में
कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अवग्रह यावत् धारणा ये चारों वर्ण यावत् स्पर्श से
रहित कही गई हैं। १६. अवग्रह आदि का काल प्ररूपण
अवग्रह (ज्ञान) का काल एक समय है, ईहा का काल अन्तर्मुहूर्त है। अवाय का काल भी अन्तर्मुहूर्त हैं, धारणा का काल संख्यात या
असंख्यात काल है। १७. श्रुतज्ञान के भेद
प्र. श्रुतज्ञान परोक्ष कितने प्रकार का है ? उ. श्रुतज्ञान परोक्ष चौदह प्रकार का कहा गया है, यथा
१. अक्षरश्रुत, २. अनक्षरश्रुत, ३. संज्ञिश्रुत, ४. असंज्ञिश्रुत, ५. सम्यक्श्रुत, ६. मिथ्याश्रुत, ७. सादिकश्रुत, ८. अनादिकश्रुत, ९. सपर्यवसितश्रुत, १०. अपर्यवसितश्रुत, ११. गमिकश्रुत, १२. अगमिकश्रुत, १३. अंगप्रविष्टश्रुत, १४. अनंगप्रविष्टश्रुत।
१. उग्गहो एक्कं समयं, ईहाऽवाया मुहुत्तमद्धंतु।
कालमसंखं संख च,धारणा होंति णायव्वा ।।
२. नंदी.सु.११५
-नंदी स.६८